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बिन मौसम बरसात, लोकमान की नियुक्ति भी विवादित और पदच्यूत प्रक्रिया भी : श्वेता दीप्ति

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श्वेता दीप्ति , काठमांडू, २७ अक्टूबर | कल जिसे सर पर चढाया गया था, आज उसे ही उतारने की पुरजोर कोशिश की जा रही है । ये बिल्कुल वैसा ही है जैसा कि अमेरिका ने आतंकवाद को कभी प्रश्रय दिया था और आज जब उसका भुक्तभोगी स्वयं हुआ तो उसके उन्मूलन का बीड़ा उठा लिया । खैर, नेपाल की राजनीति में एक दिलचस्प बात जो देखने को मिलती है, वो है बिन मौसम बरसात की । गौरतलब है कि जब भूकम्प की भीषण त्रासदी से देश गुजर रहा था, तो नेतागण को अचानक फास्टट्रैक से संविधान बनाने का भूत सवार हो गया और तमाम विरोध को नजरअंदाज करते हुए खूनी इबारत के साथ संविधान निर्माण किया गया । उस वक्त बहुमत के नशे में और आन्तरिक फायदे को ध्यान में रखते हुए तीन विपरीत दिशा एक हो गए और देश को एक नया संविधान मिला । वो संविधान जिसे उत्कृष्ट संविधान का तमगा तो मिला किन्तु उसका कार्यान्वयन आज तक संभव नहीं हो पाया है । जिसके कार्यान्वयन के लिए संविधान संशोधन का होना आवश्यक है और वत्र्तमान सरकार इसी शर्त पर सत्तानशीन हुई है । किन्तु महीनों गुजरने के बावजूद इस ओर सरकार की ओर से कोई पुख्ता कदम नहीं उठाया गया है । देश पर आन्दोलन का दवाब बना हुआ है, एक बार फिर अस्थिरता की पूरी सम्भावना है । पिछले वर्ष हुए आन्दोलन से हुई क्षति से देश अब तक उबर नहीं पाया है । जहाँ अभी इस समस्या को सुलझाने की भरपूर कोशिश की जानी चाहिए थी वहाँ इस मुद्दे को पीछे करते हुए सत्तानशीन अपने भय के भूत को हटाने के लिए तत्पर हैं । मधेश के असंतोष को किनारे करते हुए ऐन इसी मौके पर लोकमान प्रकरण को सामने लाकर देश का ध्यान बाँट दिया गया है ।

ये वही लोकमान हैं जो रातोंरात बिना किसी योग्यता के अख्तियार दुरुपयोग अनुसन्धान आयोग के प्रमुख बनाए गए । व्यापक जनविरोध को नजरअंदाज कर राजनीतिक दल के नेताओं ने २०७० में लोकमान सिंह कार्की को नियुक्त किया । उस वक्त इन्हें नियुक्त करने के लिए कई दल ऐसे थे जो कुछ भी करने के लिए तैयार थे और आज वही इन्हें किसी भी हालत में हटाने के लिए तत्पर हैं । संविधान की धारा १०१(२) के अनुसार व्यवस्थापिका संसद में महाभियाग का प्रस्ताव पेश किया गया और इस क्रम में काँग्रेस को हाशिए पर रखा गया । काँग्रेस को अन्धेरे में रखकर यह प्रस्ताव लाया गया । सवाल यह है कि अपने ही एक सहयोगी दल को क्यों इस बात से अनभिज्ञ रखा गया ? इस बात से यह तो तय है कि माओवादी और एमाले की पृष्ठभूमि एक है और इसके लिए ये कभी भी हाथ मिला सकते हैं और काँग्रेस को दरकिनार कर सकते हैं ।

जाहिर सी बात है कि महाभियोग का यह प्रकरण जितना धरती के उपर दिखाई दे रहा है उतना ही धरती के नीचे भी इसकी जड़ें हैं । यह प्रकरण कहीं ना कहीं अपने सर पर लटकी हुई तलवार को हटाने की कोशिश भी है । लोकमान सिंह कार्की के विगत और वर्तमान पर अगर ध्यान दिया जाय तो यह सर्वविदित है कि कार्की का विगत अप्रजातान्त्रिक और भ्रष्ट रहा है और वर्तमान की कार्यशैली हिटलरशाही की रही है । उनके उपर जनआन्दोलन दमन, भ्रष्टाचार आदि के आरोप होने के बावजूद भी उन्हें प्रमुख आयुक्त पद पर नियुक्त किया गया था । इस पद पर आसीन होने की कोई योग्यता उनमें नहीं थी इसके बावजूद इनकी नियुक्ति ने इन्हें निरकुंश और गैरजिम्मेदार बनाया । इनकी कार्यशैली बिल्कुल दबंगीय स्टाइल की रही । अख्तियार का कुछ ऐसा हौव्वा खड़ा हुआ कि कई संस्थाओं में सही काम करने वालों ने भी अपने हाथ पीछे कर लिए । विद्युत प्राधिकरण जैसी और भी कई संस्थाओं में त्राहिमाम की स्थिति बन गई थी । लोकमान की बनाई हुई मनमर्जी की नीति का लोगों ने गलत फायदा उठाया । सही जगह पर कम और गलत जगहों पर अख्तियार ने अपना निरंकुश रूप दिखाया और आतंक का वातावरण कायम करने में कामयाब भी हुआ । व्यक्तिगत कारणों की वजह से शिकायतें दर्ज होती थीं और सही व्यक्ति भी शारीरिक मानसिक और आर्थिक पीड़ा का शिकार हो रहा था । इनकी कार्यशैली का असर तो ऐसा था कि पूर्व प्रधानमंत्री ओली भी अपने कार्यकाल में यह कहने से नहीं चूके कि “ये हमें भी तो बन्द नहीं करवा देगा”। सचिव जैसे मर्यादित और उच्च पद का भी कार्की ने ख्याल नहीं किया और उनपर यह प्रभाव डालने की कोशिश की सर्वोच्च मैं हूँ और आप सब मेरे मातहत हैं । लोकमान सिंह की कार्यशैली और बदमिजाजी के कारण उनकी बिगड़ी हुई छवि और भी स्तरहीन होती चली गई । उन्होंने राजनीतिक नेतृत्व, न्यायपालिका, प्रशासन, संवैधानिक एवं कानूनी व्यवस्था सभी की धज्जियाँ उड़ा दी । जिसे मन हुआ उसपर भ्रष्टाचार का आरोप लगाना, पकड़ना, अनुसन्धान के नाम पर हिरासत में रखना जैसे काम ने अधिकता पाई । इस तरह अख्तियार एक आतंक की तरह हो गया जिसके नाम से घबराहट हाने लगी थी । लोकमानसिंह के पक्षधर भी हैं और वो ऐसे लोग हैं जिन्हें लोकमान का संरक्षण प्राप्त हुआ ।

प्रस्ताव पेश होने के बाद भी काँग्रेस असमंजस की स्थिति में रही । क्योंकि ये वही काँग्रेस है जिसके प्रमुख गिरिजाप्रसाद कोईराला ने लोकमान को पाला था । यही वजह है कि काँग्रेस में इस स्थिति पर असमंजस था, किन्तु उसमें भी दो खेमे थे जिसमें कुछ महाभियोग के पक्ष में थे तो कुछ अपनी पहले की निकटता को बरकरार रखना चाह रहे थे । और अंततः काँग्रेस ने भी महाभियोग के पक्ष में अपनी उपस्थिति दर्ज करा ली है । देर से ही सही किन्तु अब देउवा का वक्तव्य सामने आ रहा है कि कार्की ने शाही आयोग से भी अधिक आतंक का साम्राज्य खड़ा किया ।

महाभियोग एक ऐसी संवैधानिक प्रक्रिया है जो ऐसे व्यक्ति पर लगाया जाता है, जिसने कानून का गम्भीर उल्लंघन किया हो, जिसमें कार्यक्षमता का अभाव हो, जिसका खराब आचरण हो, जिसने इमानदारीपूर्वक अपने पदीय कर्तव्य का पालन न किया हो या आचारसंहिता का गम्भीर उल्लघंन किया हो । कार्की विरुद्ध यह प्रस्ताव यों तो पहले एमाले पार्टी और माओवादी केन्द्र के कुछ साँसदों ने पेश किया था, किन्तु अब इसे सत्ता गठबन्धन का समर्थन प्राप्त हो गया है । सामान्यतया महाभियोग का प्रस्ताव संविधान के धारा १० १(२) में उल्लेखित आधार पर लगाया गया है, जिनमें मुख्य है, संसद के विशेषाधिकार का हनन, अदालत की अवहेलना, पदीय शक्ति और अख्तियार का दुरुपयोग, राज्यविरुद्ध जासूसी, प्रहरी प्रशासन और गुप्तचरों को स्वार्थपूर्ति में लगाना, भ्रष्टाचार के आरोपियों के साथ सौदेबाजी, बड़े मुद्दों को छोड़कर छोटे छोटे मुद्दों पर कार्यवाही करना ।

किन्तु क्या यही कारण है महाभियोग की ? महाभियोग लगाने के पीछे जो एक छिपा हुआ कारण नजर आ रहा है वह यह कि लोकमान द्वारा उठाए गए कदम से पार्टी विशेष पर क्या असर पड़ने वाला था ? माओवादी प्रमुख पर अख्तियार की लटकती तलवार का भय यह वो गौण तत्व हैं जो गौण होते हुए भी इस महाभियोग के पीछे एक सशक्त कारण है । यह कारण एक भयावह प्रश्न खड़ा करता है । अगर महाभियोग जैसा गम्भीर प्रस्ताव सिर्फ रोष और डर की वजह से लगाया जा रहा है तो यह भविष्य के लिए एक दुष्परिणाम के रूप में सामने आएगा जो एक गलत परम्परा को जन्म देगा । लोकमान की नियुक्ति भी विवादित थी और आज उन्हें पदच्यूत करने की प्रक्रिया भी ।

फिलहाल कार्की द्वारा नियुक्ति किए गए सभी विज्ञों को कार्यवाहक प्रमुख आयुक्त दीप वस्न्यात के निर्णयानुसार हटा दिया गया है । इन सबकी नियुक्ति में कार्की ने अपनी मर्जी चलाई थी, जिसमें उनकी बेटी आध्याश्री भी शामिल है । इन सबको आकर्षक वेतन और सुविधा मुहैया कराई गई थी । विवादों के कई परत खुल रहे हैं । एनसेल लाभांश प्रकरण, प्रहरी दुरुपयोग प्रकरण, नियुक्ति प्रकरण जैसे कई विवाद सामने आ रहे हैं बावजूद इसके कुछ ऐसे भी चेहरे हैं जिनका सामने आना भी आवश्यक है । इस ओर स्वयं कार्की चाहें तो कदम उठा सकते हैं और कई चेहरे से नकाब हट सकते हैं ।



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2 thoughts on “बिन मौसम बरसात, लोकमान की नियुक्ति भी विवादित और पदच्यूत प्रक्रिया भी : श्वेता दीप्ति

  1. Dear Ms. Deepti jee!
    But, there are very misunderstandings , due to the corrupts leaders of Maoist, UML the case of Lokman Karki began. You see- I am not supporter of Lokman Karki, but this existing case against him from Supreme Court and Parliament is very biased and it may me trapped by Kanakmani Dixit or such Mafias. From the beginning, before 2063, I had exposed all the corruptions of Lokman and his mater Girija Prasad Koirala and Sujata Jost, but, nobody give their attention. And then, spme years after Gokman Karki appointed Aktiyar Durupayok Anusandhan Aayog, when he appointed as a chairman of this anti-corruption Aayou, He had done best to eradicate the corruption and he captured the great corrupts- Kankmani Dixit who is guided from EU and INGO who are totally anti Hindu kingdom and monarchy for his benefits and security. It is very suspicious that why Dr. Govinda KC and Gagan Thapa became dis-angry? They may joined their black hands with Kanakmani Dixit. And then, now- all the international groups and Mafias became active to punish him forcefully which will be suicidal in future in Judiciary, Parliament and Govt. So, the case against must be canceled immediately for the sake of goodness.
    Thank you
    Dirgha Raj Prasai

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