एना किए …
भाषा जो हो , साहित्य उस भाषा के माध्यम से कवि तथा र चनाकार की सामाजिक, सांस् कृतिक, धार्मिक आदि आन्तरि क अनुभूति का स् पष्टतः अभिव्यक्त कर ता है । इसलिए साहित्य को दर्पण माना गया है । दर्पण स् वरुप साहित्य ही समाज मे ं व्याप्त रुढियो ं एवं कुप्रथाओ ं की ओ र पाठको ं के मन को झकझो र ता हुआ सन्मार्ग की ओ र प्रे रि त कर ता है ।
दे वनागर ी औ र तिरुहुता दो नो ं लिपी के माध्यम से लिपिबद्ध की गई कविताएँ ‘ए ना किए… -‘ मै थिली पुस् तक र चना मे ं संग्रहित है , जो गद्यात्मक शै ली मे ं किया गया प्रयास है । इस प्रयास के माध्यम से कवि संतो ष मिश्र जी आज के सामाजिक जीवन मे ं जो भी अव्यवस् थाएँ या कमजो रि याँ व्याप्त हो ती जा र ही है , उनकी ओ र संके त कर ना उनका मुख्य उद्दे श्य है , जो इस र चना का सबल पक्ष लगता है । एना किए… – र चना मे ं समाविष्ट कविताओ ं को पढÞने से लगता है कि कवि मिश्र जी पुरुषो ं की प्रताडÞना, छद्म भे ष वाला चरि त्र, महिलाओ ं की बाध्यात्मक दशा, समाज मे ं व्याप्त दहे जजन्य कुष्ठर ो ग पुरुष समाज का द्वै ध चरि त्र, बाजार ी वबस् तुओ ं पर लगे कर की भाँति दहे ज प्रथा भी कर लगाने के लिए सर कार से अनुर ो ध कर ने के साथ-साथ मातृभूमि मिथिला औ र मै थिली भाषा संस् कृति के प्रति विश्वस् तर पर सम्मान या प्रष्तिण बढÞाने की उच्चाकांक्षा आदि निश्चय ही कवि संतो ष जी मै थिली के प्रति समर्पित व्यक्ति की ओ र संके त कर ता है ।
एना किए… – काव्य संग्रह का आवर ण पृष्ठ आकर्ष है । शर्ीष्ाक से तादात्म्य स् थापिता किया हुआ है । पर जगह जगह पर भाषागत औ र शब्दगत त्रुटियाँ दृष्टिगत हो ने के साथ-साथ मात्रागत अशुद्धियाँ भी दिखाई दे ती है । ये बात समीक्षक की दृष्टि से कहना उपयुक्त समझता हूँ । ताकि कवि को अगला संस् कर ण निकालते समय सही मार्गदर्शन हो सके । काल्पनिक सत्य विता मे ं कुछ शब्द औ र वाक्यो ं का प्रयो ग अनुचित लगा, जिससे कविता की स् तर गिर ती नजर आती है । सो चली, छो डÞली, सबहे के , पर ली शब्द प्रयो ग भाषा की न्यूनता को दर्शाती है , जिसे सुधार ा जा सकता है । संक्षे प मे ं काव्य संग्रह पठनीय औ र विचर णीय है । कवि संतो ष बधाई के पात्र है ं । -समीक्षक रमेश झा