शर्मनाक वरिष्ठता विवाद -लिलानाथ गौतम
वर्तमान सरकार में तीन उप–प्रधानमंत्री हैं– विमलेन्द्र निधि, कृष्णबहादुर महरा और कमल थापा । इन तीन में से विमलेन्द्र निधि और कमल थापा में कौन वरिष्ठ है, इस सवाल को लेकर सियासी राजनीति के अन्दर हंगामा हो गया है । जिसके चलते चीन भ्रमण के वक्त प्रधानमंत्री पुष्पकमल दाहाल निरीह साबित हो गए थे ।
जब देश के कार्यकारी प्रधानमंत्री कुछ दिनों के लिए विदेश जाते हैं, तो किसी दूसरे व्यक्ति को कार्यवाहक प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी दी जाती है । सामान्यतः कार्यवाहक वही होते हंै, जो मन्त्रिपरिषद् में प्रधानमंत्री के बाद सबसे वरिष्ठ अर्थात् मर्यादाक्रम में दूसरे स्थान पर होते हैं । लेकिन प्रधानमंत्री दाहाल ने किसी को भी कार्यवाहक प्रधानमंत्री नहीं बनाया । यहां तक कि निधि–थापा विवाद के कारण मन्त्रिपरिषद् बैठक भी अवरुद्ध हो गयी ।
एक स्मरणीय बात है– गत वर्ष श्रावण २० गते जब दाहाल नेतृत्व में सरकार बनी थी, उसी वक्त से ही निधि वरिष्ठ अर्थात् दूसरे मर्यादा क्रम में गृह तथा उपप्रधानमंत्री थे । लेकिन जब गत फाल्गुन २६ गते कमल थापा उपप्रधानमंत्री सहित सरकार में शामिल हो गए, उस वक्त से निधि और थापा के बीच कौन वरिष्ठ हैं ? इस सवाल को लेकर विवाद होने लगा ।
स्मरणीय बात यह भी है कि संसद का सबसे बड़ा दल नेपाली कांग्रेस है । सत्ता के नेतृत्वकर्ता माओवादी केन्द्र तीसरा दल है । पहली राजनीतिक शक्ति को साथ लेकर अगर तीसरी राजनीतिक शक्ति सरकार बनाती है, तो स्वाभाविक दावा होता है कि पहली राजनीतिक शक्ति से नेतृत्व करने वाले व्यक्ति को दूसरा स्थान मिल जाए । इस दृष्टिकोण से निधि जी का दूसरे स्थान पर होना स्वाभाविक भी है । फाल्गुन २६ से पहले ऐसा ही हो रहा था । लेकिन जब कमल थापा उपप्रधानमंत्री के रूप में सरकार में शामिल हुए तो वो खुद को दूसरी वरीयता में रखने लगे । थापा का दावा है कि मैं पार्टी अध्यक्ष भी हूँ और निधि से पहले ही उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री रह चुका हूं ।
सामान्यतः वरीयता अर्थात् सर्वश्रेष्ठता निर्धारण के लिए कुछ मानदण्ड होते हैं । लेकिन जब राजनीति करनेवाले व्यक्ति सत्ता और शक्ति को प्राथमिकता देता है, तब ऐसे मानदण्डों का उलंघन किया जाता है । आज निधि और थापा के बीच जो विवाद दिखाई दे रहा है, इसके पीछे भी नेताओं की व्यक्तिगत महत्वांकाक्षा ही काम कर रही है ।
संसदीय राजनीतिक प्रणाली में जो व्यक्ति बहुमत हासिल करता है, वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार होते हंै, चाहे उनकी पार्टी संसदीय गणित में तीसरा हो या चौथा । इसी तरह अगर प्रधानमंत्री चाहते हैं तो संसद में प्रतिनिधित्व करनेवाले जो कोई व्यक्ति को उप–प्रधानमंत्री बना सकते हैं । विगत के इतिहास में भी हम लोग इस तरह की घटना देख चुके हैं । आज जो विवाद दिखाई दे रहा है, विवादित दो पात्र (निधि और थापा) और उनके निकटस्थ कुछ लोगों के अलावा दूसरे किसी को भी इस मामले में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है ।
हां, जाति और क्षेत्रगत राजनीति करनेवाले कुछ लोगों के लिए भी यह विवाद भाषणबाजी का मसला बन रहा है । उन लोगों का मानना है कि निधि के मधेशी होने के कारण उनको दूसरा स्थान नहीं मिल रहा है । लेकिन ऐसी मानसिकता गलत है । एक सत्य हम सबके सामने है कि निधि और थापा दोनों ही ऐसे पात्र हैं, जिन्होंने जनता के लिए उल्लेखनीय कोई भी सकारात्मक काम नहीं किया है । जिस तरह आज स्वास्थ्य मंत्री गगन थापा और ऊर्जा मंत्री जनार्दन शर्मा के बारे में सकारात्मक चर्चा–परिचर्चा हो रही है, उस तरह निधि और थापा की चर्चा नहीं है । अगर निधि और थापा द्वारा थोड़ा ही सही, जनता के पक्ष में कुछ काम होता तो इनके प्रति भी लोग सकारात्मक हो सकते थे । दोनों के पक्ष में जनमत निर्माण हो सकता था । लेकिन इन दोनों की प्राथमिकता जनपक्षीय काम के लिए नहीं पद और प्रतिष्ठा के लिए दिखाई दे रही है । इसीलिए वरिष्ठता के सम्बन्ध में जो बितंडा हो रहा है, यह स्वीकार्य नहीं हो सकता ।
इस विवाद के लिए प्रधानमंत्री पुष्पकमल दाहाल भी कम जिम्मेदार नहीं हैं । अगर वरीयता में थापा को ही दूसरे स्थान में रखना था तो इसके सम्बन्ध में निधि को पहले ही जानकारी देनी चाहिए थी । नहीं, निधि को ही दूसरे स्थान पर रखना है तो उसकी जानकारी भी थापा को पहले ही देनी चाहिए थी । लेकिन दाहाल ने ऐसा कुछ भी नहीं किया । जब राजनीति में सत्ता और शक्ति महत्वपूर्ण बन जाता है, तब ऐसा ही होता है । यह देश और जनता के लिए शर्म की बात है ।
पहली बात तो हमारे यहां उप–प्रधानमंत्री की कोई आवश्यकता ही नहीं है । राजनीतिक भागहारी और शक्ति संतुलन के लिए हमारे राजनीतिक दल वरिष्ठ उप–प्रधानमंत्री बनाते हैं तो उसमें निधि बने या थापा, इसमें जनता का कोई सरोकार नहीं है । लेकिन इसी के कारण महत्वपूर्ण कामकारवाही रुक जाती है तो उस वक्त यह सरोकार का विषय बन जाता है ।