पड़ोस में भारत न होता तो नेपाल में पत्रकारों को लिखने को समाचार ही नहीं मिलता
बिम्मी शर्मा , वीरगंज, १८ अप्रैल |( व्यग्ँय..) हमारे पड़ोस में यदि भारत नाम का देश न होता तो सच में हम लोग क्या करते ? नौकरी से तो बेरोजगार हैं ही शायद दिमाग से भी बेरोजगार हो जाते । भारत कितना भाग्यशाली देश है कि तीन करोड़ नेपाली नागरिक उठते, बैठते, खाते, पीते, चलते, फिरते हर समय भारत को याद करते हैं । याद करते हैं मतलब कोसते हैं, गाली देते है या श्राप देते हैं । क्योंकि हमने जाना ही इतना है और वही करते हैं जो जानते या मानते है । यदि हम सब सच में भगवान होते तो भारत नाम का देश अब तक खाक हो गया होता । पर क्या करें हम में इतनी शक्ति या औकात नहीं है न इसीलिए जल भुन कर खुद ही खाक हो जाते हैं । हमारा वश चलता तो हम नेपाल को दूर दुर ही महादेश में ले जा कर शिफ्ट कर देते । पर क्या करें भारत कोई संजीवनी पहाड़ नहीं है न हम ही रामभक्त हनुमान है ।
जिस तरह भारत और पाकिस्तान का ३६ का आंकड़ा है हम लोगों के साथ भी वही ३६ का आंकड़ा है । भारतीय पानी पी पी कर पाकिस्तान को कोसते हैं । उन्हे हर पाकिस्तानी आतकंवादी नजर आता है । उसी तरह पाकिस्तान को भी भारत फूटी आंख नहीं सुहाता है । आखिर में दोनो एक ही मां के जाए है । स्वभाव कुछ न कुछ तो मिलेगा ही । पर नेपाल तो पड़ोसी मुल्क है भारत और पाकिस्तान दोनों का । हां भारत से नेपाल की सीमा सटी हुई है इसीलिए हम लोग प्यार और नफरत भी सट कर ही करते हैं भारत से । क्या करे रिश्ता ही ऐसा है बिन देखे रहा नहीं जाए, और देखे तो सहा नहीं जाए ।
यदि हमारे पड़ोस में भारत न होता तो पत्रकारों को लिखने के लिए समाचार नहीं मिलता । सारे लेखक पेन को दांत से कुतरते रह जाते । सारे तथाकथित बुद्धिजीवियों के तर्क और बहस में जगं लग जाता । वह किस के लिए तर्क या विरोध करते ? देश की महिला साड़ी और सलवार कुर्ता खरीदने कहां जाती ? सारी सुहागनें अपने सुहाग का प्रतीक माथे पर बिंदी और मांग में सिंदूर कहां से ला कर लगाती ? पान, गुट्खा, सूर्ती और खैनी हाथ में रगडते हुए क्रिकेट के चौके, छक्के और राजनीति के हक्के, बक्के का नाटक कहां सुनते और सुनाते बेचारे । पड़ोस में भारत है इसी लिए नेपाल की जनता का फोकट का मनोरंजन हो जाता है । अपने से ज्यादा पड़ोस में ताकाझांकी करने की हमारी पुरानी आदत जो है । बतकही करने और दुसरों को लगंड़ी मार कर गिराने में जो आनंद है वह किसी खेल में कहां ? हम खुद आवाद हो न हो पर भारत को बर्बाद होते हुए देखना चाहते हैं ।
जिस दिन भारत किक्रेट में अन्य देशों से हारता है हमारे देश में दिवाली मनाई जाती है । जिस साल भारत की आर्थिक वृद्धि दर कम होती है, महंगाई और गरीबी जब बढ्ती है तब हम यहां पर अपने मन की विकारों के साथ होली खेल कर खुश होते हैं । किसी हिंदी सिनेमा के अभिनेता या अभिनेत्री का विदेश में अपमान होता है हम लोग रसगूल्ला खा कर मूँह मीठा करते हैं । कोई भारतीय नेता परमधाम को सिधारे तो हम लोग इतने खुश हो जाते हैं कि जैसे कि हम लोग सपरिवार अमरिका सिधार रहे हैं । बीजेपी भारत के किसी प्रांत मे चुनाव हार जाती है तो हम लोग इतने खुश हो जाते हैं कि वह चुनाव हमने जीता हो और हमनें ही बीजेपी को हराया हो । गोया भारत की हार में ही हमारी जीत छिपी हों । अगर भारत का दोनों आंख फूटे तो हम अपना एक आंख फोड्ने के लिए तैयार है ।
बच्चे की परवरिश इस तरह से की जाती है कि उसको अर्जुन के लक्ष्य भेदन की तरह भारत को अपना कट्टर दुश्मन मान कर बड़े हो कर उसको भेद्ने के लिए सिखाया जाता है । हर बच्चा बड़ा हो कर दक्षिण कि तरफ मूहं कर के ऐसे गाली देता है जैसे कि वह सूसू कर रहा हो । सवा अर्ब भारतियों में से बहुतों को अपने देश के उक्त में नेपाल नाम का कोई देश है यह भी पता नही होगा । पर हम तीन करोड़ नेपालियों को भारत कौन है, क्या है और कैसा है यह सब कठंस्थ है । यहां का बच्चा गायत्री मंत्र का जाप करने से पहले ही भारत के विरोध करने का मंत्र जाप करने लगता है । हम नेपालियों का जन्मजात कोई दुश्मन है तो सिर्फ भारत है बांकी सब देश तो हमारे दोस्त या प्रेमी है ।
हम आगा पीछा कुछ नहीं देखते न कुछ सोचते है बस विरोध करना शुरु कर देते है । अश्वत्थामा हतो हत कि तरह हम शंख की ध्वनि में दबे सच को नहीं देख पाते बस विरोध करना शुरु कर देते हैं । हम नेपालियों के नश, नश में खून की जगह भारत विरोध का जहर भरा पडा है । हमें घुट्टी में भारत के विरोध की दवा पिलाई जाती है । हमारे देश में होने वाली हरेक घटना और षडयंत्र में हम भारत का हाथ देखते है और सीधे उसी पर उंगली उठाते हैं पर अपने गिरेबान पर नहीं झांकते हैं । क्योकि हम सब तो दूध के धूले हैं । हम कोई गलत काम कर ही नहीं सकते क्योंकि हम खुद को महान मानते हैं । इसी लिए मान न मान मैं तेरा मेंहमान की तर्ज पर दुसरों से जबरदस्ती सम्मान की उम्मीद करते हैं । गंभीर रुप से बिमार पड़ने पर भारत की ही दौड़ लगाते हैं जब तबीयत ठीक हो जाती है उसी को आंख दिखा कर और लात मार कर अपने देश वापस आ जाते हैं और वहां के डाक्टरों को कोसते हैं ।
भारत खराब है अच्छा है जैसा है वह वह है । हम हम है, हम क्यों हर समय उसी को कोस कर अपनी उर्जा और समय नष्ट करते हैं ? क्यों नहीं हम उस की अच्छी आदतों और विचारों को अपनाएं और गंदगी को वहीं छोड दें । पर नही हम तो घाव, पीप और गंदगी मे भिनभिनाने वाले उस मक्खी की तरह बनते जा रहे हैं जो साफ जगह पर नहीं रहती । भारत हमसे ज्यादा विकास कर रहा है । विकास की राह में वह हम सें कंही ज्यादा आगे हैं इसी लिए हम फ्रस्ट्रेडेड हैं । हम अपने देश की राजनीति, विभिन्न राजनीतिक दल और नेताओं के कारण उतने विकसित नहीं हो सके जितने होने चाहिए थे । बस उसी का गुस्सा हम भारत को गाली दे कर या कोस कर निकाल रहें है । दोष हमारे अपने चेहरे में हैं और फोड हम आईना रहे हैं । भारत को कोसना या उस पर ध्यान देना छोड कर हम कब खुद पर ध्यान देगें ? भारत पडोसी है उसके चूल्हे पर आग मत लगाइए कहीं हमारा अपना ही घरौंदा न जल जाएं ? क्योंकि पडोस में लगी हुई आग की लपटें जल्द ही अपने घर में भी आ जाती है ।