देश में पसरा भ्रष्टाचार : विनोदकुमार विश्वकर्मा
घूस लेना कमीशन खाना और अवैध तरीके से धन इकठ्ठा करना ही एक मात्र भ्रष्टाचार नहीं है । व्यक्ति के आचरण से जुड़े कृत्यों को भी भ्रष्टाचार कहा जाता है । सामाजिक, आर्थिक, राष्ट्रीय और नैतिक उत्तरदायित्वों के प्रति उदासीनता और उनके उल्लघंन को भी भ्रष्टाचार माना जाता है । सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों की कार्य संस्कृति भी भ्रष्टाचार से ओत–प्रोत है । निजी फायदे के लिए सार्वजनिक कार्यदल एवं पद का दुरुपयोग भी भ्रष्टाचार की परिधि में आता है ।
आज चारों तरफ भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार नजर आता है । कॉरपोरेट, रोड का ठेक्का, दूरसंचार, डिग्री, ट्रांसफर, विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति, गांवपालिका व नगरपालिकाओं के द्वारा संचालित परियोजनाओं व नियुक्तिओं में भ्रष्टाचार देखा ही जा रहा है । इनके अतिरिक्त भ्रष्टाचार का कैंसर निजी क्षेत्रों, सामाजिक संस्थाओं में भी तेजी से फलने–फूलने लगा है । भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कड़े वैधानिक प्रावधान भी हैं, पकड़े जाने पर विभिन्न तरह की प्रशासनिक कार्रवाई भी होती है, परंतु दूसरी तरफ भ्रष्टाचार के कुछ ऐसे भी स्वरुप हैं जो अदृश्य तौर पर हमारे दैनिक जीवन में विद्यमान हैं और दीमक की तरह हमारे समाज को चाट रहे हैं । थोड़ी गंभीरता से हम सोचे तो यह जान पड़ता है इस तरह के भ्रष्टाचार ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि यह आदमी की जिंदगी को प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित करता है । इसे पकड़ना या प्रकाश में लाना बड़ा दुरुह कार्य है । इसके उदाहरण हैं– दूध में पानी मिलाना, नुक्कड़ के ठेले पर गलत खाद्य–पदार्थ बेचना, डाक्टर द्वारा गलत इलाज कर पैसा लूटना, कमीशन के लिए किसी का पैसा गलत जगह निवेश करना । ऐसे अनगिनत भ्रष्टाचार के उदाहरण अपने समाज में विद्यमान हैं, जो आम आदमी की जिंदगी में घून की तरह शामिल होकर हमें खोखला कर रहे हैं ।
घूस लेने के साथ घूस देना भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है । भ्रष्टाचार की रोकथाम की राह में बड़ा अवरोध कानूनी प्रक्रिया की बेहद धीमी गति है । यह भी रेखांकित किया जाना चाहिए कि अदालतें भी इस रोग से मुक्त नहीं हैं । भ्रष्टाचार ने सिर्फ शासन–प्रशासन को पंगु बना दिया है, बल्कि अब यह लोकतन्त्र के लिए भी बड़ा खतरा बन गया है । वैसे हम देखते हैं कि सार्वजनिक जीवन से लेकर प्रशासनिक और व्यापारिक तंत्र तक पसरा भ्रष्टाचार हमारे देश के लिए नयी बात नहीं है । पिछले कुछ सालों से शुचिता और ईमानदारी की मांग के बाद यह उम्मीद बंधी थी कि कदाचार और अनैतिकता में कमी आएगी, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है । इसलिए बहरहाल यह जरुरी है कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सरकार सख्त कदम उठाए या सरकार को ठोस योजना बनानी चाहिए । रिश्वत लेकर काम करने वालों पर भी कड़ी नजर रखी जाए ।
