चुनाव से मधेश की समस्याएं समाधान की कोई सम्भावना नहीं : उमाशंकर प्रसाद
डॉ. उमाशंकर प्रसाद, काठमांडू , २४ जून | मधेश अभी बहुत ही राजनीतिक पेचीदगी अवस्था से गुजर रहा है । संविधान जारी होने के पश्चात् जितनी बार सरकारें बनीं, मधेश के मुद्दों को संबोधन करने हेतु प्रतिबद्धता जतायी, लेकिन कभी गणितीय समीकरण को दिखा कर, तो कभी तिकड़म लगाकर मधेश के मुद्दों को दरकिनार करती रही । जो मुल्क के लिए दुर्भाग्य है, हालांकि सभी जानते हैं कि जब तक संविधान संशोधन नहीं होगा, देश सही रास्ते पर नहीं आ पाएगा । यहां तक कि अंतर्राष्ट्रीय समुदायों को भी यही कहना है कि जब तक संविधान में संशोधन नहीं होगा, तब तक नेपाल की राजनीति सही लिक पर नहीं आ पाएगी ।
जहां तक सवाल है चुनाव का, तो पहले चरण के निकाय चुनाव संपन्न हो चुके हैं, अभी दूसरे चरण का चुनाव होने जा रहा है । इस प्रक्रिया में विभिन्न दल अपने–अपने विचार को लेकर आगे बढ़ रहे हैं, कुछ दल निर्वाचन के पक्ष में हैं, तो कुछ दल विपक्ष में हैं । मेरा मानना है कि निर्वाचन में भाग लेना या न लेना, यह अलग मुद्दा है । देश की मौजूदा राजनीति से चुनावी प्रक्रिया का बहुत ही कम लिंक देख रहा हूँ । चुनाव एक नियमित प्रक्रिया है । चुनाव होने से या न होने से नेपाल की राजनैतिक प्रगति में कोई तात्विक भिन्नता नहीं है । वैसे वृहत्तर रुप में चुनाव से मधेश की समस्याएं समाधान होने की कोई सम्भावना नहीं है । बल्कि मधेश की समस्याएं और गम्भीर बनती जाएंगी ।
वर्तमान में मधेशी जनता को अधिकार विहीन बनाने के लिए राज्य का सम्पूर्ण अंग लगा हुआ है । अर्थात् चारों तरफ से षड़यन्त्र हो रहा है । बहरहाल यह जरुरी है कि मौजूदा षड़यन्त्र में मधेशी जनता रणनीतिक हिसाब से आगे बढ़े ।
(डॉ. उमाशंकर प्रसाद अर्थविद् हैं ।)