संशोधन ! भ्रम तो जनता का टूटा, नेताओं को तो परिणाम पता था : श्वेता दीप्ति
श्वेता दीप्ति, काठमांडू, २१ अगस्त | एक बार वही पूर्व नियोजित खेल संसद में खेला गया जिसका परिणाम सबको पता था । सभी जानते थे कि कौन जीतेगा और कौन हारेगा । पर जहाँ काँग्रेस ने संसद में संविधान संशोधन बिल लाकर अपने सर का बोझ हल्का किया वहीं माओ ने उसका साथ देकर मधेश का शुभचिन्तक बनने का फर्ज पूरा किया । जहाँ तक सवाल मधेशी दलों या राजपा का है तो वो संशोधन विधेयक पेश होने से पहले ही खुद को हार चुके हैं और उन्हें पहले से ही चुनाव के लिए सकारात्मक वातावरण दिखने भी लगा है ।
पर आश्चर्य तो इस बात का है कि सरकार का जब खुद बचना होता है तो साम, दाम, दंड भेद सभी अपनाती है और खुद को बचा भी लेती है, पर यहाँ तो सवाल सिर्फ औपचारिकता पूरी करनी थी सो उसने कर दी कोशिश तो उन्हें करनी ही नहीं थी । अब चुनाव में मधेश के पास जाने के लिए उनके पास पुख्ता ऐजेंडा भी है और वो है कि हमने तो पूरी कोशिश की पर विपक्ष ने साथ नहीं दिया । एमाले ने तो अपनी तयशुदा चरित्र को ही दिखाया है । इसलिए उससे तो कोई उम्मीद भी नहीं थी और शिकायत भी नहीं है । हाँ मधेश की जनता ने एमाले के मधेशी नेताओं से कहीं ना कहीं एक उम्मीद जरुर पाल रखा था कि शायद उनकी मिट्टी उन्हें याद आ जाय और नैतिकता जग जाय । पर ये भावुकता की बातें हैं जिनका राजनीति से कोई दूर दूर तक का सम्बन्ध नहीं है । भ्रम तो जनता का टूटा है, नेताओं को तो परिणाम पता था । क्योंकि जो हुआ वह तो पहले भी से ही तय था । संसद वही, साँसद वही और पक्ष विपक्ष के नेता वही तो किसी नए परिणाम की आशा कैसे की जा सकती थी ? सभी जानते थे कि संविधान संशोधन प्रस्ताव को पास करने के लिए आवश्यक दो तिहाई मत प्राप्त नहीं हो सकते हैं । ५९२ का दो तिहाइ ३९५ चाहिए था । ५५३ साँसदों ने भाग लिया और पक्ष में ३४७ और विपक्ष में २०६ मत मिले और यह आँकड़ा नया नहीं था तो आखिर किस बिला पर यह उम्मीद की गई कि यह विधेयक पास होगा ? जाहिर सी बात है कि यह सिर्फ औपचारिकता पूरी की गई है । राजपा के नेताओं ने पहले ही कह दिया है कि परिणाम जो भी होगा वह उन्हें स्वीकार्य होगा अर्थात् आगामी चुनाव में भाग लेने का रास्ता सहज और सरल पहले ही बनाया जा चुका है । और इन्हें चुनाव में जाना भी चाहिए क्योंकि मधेश की माँग को मजबूती से पेश करने की स्थिति में ये दिखाई नहीं दे रहे तो ऐसे में जो मिल रहा है उसे क्यों छोड़ा जाय ? ऐसे भी यह तो पहले ही जाहिर हो चुका था कि अब दबाब की राजनीति ही होने वाली है । क्योंकि राजपा में ही उनके मत विभक्त हैं ।
पिछले सम्पन्न हुए चुनाव परिणाम के कारण एमाले की मजबूत स्थिति है और यह उसके मनोबल को बढा रहा है । उसकी पूर्व घोषणा है कि दो नम्बर प्रदेश में भी वह पहले स्थान पर है । और यह सम्भव है क्योंकि उनके पास साम भी है और दाम भी जिसका पूरा उपयोग किया गया और किया जाएगा और यह अनुचित भी नहीं है क्योंकि यही तो राजनीति है ।
आज जो हुआ उसने मधेश की जनता को निराश जरुर किया है परन्तु एमाले और राप्रपा की नीति ने एक लकीर जरुर खींच दी है मधेश की जनता के मस्तिष्क में जो आज भले ही नजर ना आए पर गुजरे वक्त के साथ सामने दिखेगा जरुर ।
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