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पड़ोसियों द्वारा संचालित गठबंधन विनाशकारी भी हो सकता है : मुरलीमनोहर तिवारी

मुरलीमनोहर तिवारी ( सिपु), वीरगंज | नेपाल के वर्त्तमान अवस्था पर बात करे तो सबसे प्रमुख है वाम गठबंधन। गठबंधन करना नेपाली राजनीति में नयी संस्कृति है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है, नेपाल में कम्युनिस्ट ताकतों का एकजुट होना है।

इस संबंध में प्रचण्ड ने कहा, वाम गठबंधन बिकाश और समृद्धि के लिए है। प्रचण्ड का यह नजरिया है की, गठबंधन बनाने से नई राजनीतिक संस्कृति की स्थापना के जरिए देश के सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है।

नेपाली कांग्रेस के नेताओं ने वाम गठबंधन को देश और लोकतंत्र के बिरुद्ध बताया। प्रधानमंत्री और कांग्रेस सभापति शेर बहादुर देउबा ने कहा कि वाम गठबंधन के नाम पर देश, राष्ट्रीयता और लोकतंत्र को कमजोर बनाने के प्रयास की शुरुआत हुई है। दूसरी ओर, नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामचंद्र पौडेल ने इस कदम की आलोचना की है, क्योंकि इससे देश में तबाही आ सकती है।

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव नेत्रबिक्रम चंद ‘विप्लव’ ने आरोप लगाया है, की एमाले और माओवादी केंद्र सम्मिलित वाम गठबंधन निर्माण में अमेरिका और भारत का हाथ है। अमेरिका और भारत के डिजाइन अनुसार ही वाम गठबंधन निर्माण हुआ है। नेपाल में पूंजीवादी व्यवस्था लागू करने के लिए भारत और अमेरिका ने वाम गठबंधन को डिजाइन किया है। वाम गठबंधन सिर्फ़ सत्ता के लिए बना है। एमाले और माओवादी में दास मानसिकता और प्रवृत्ति है, इसीलिए यह पार्टी विदेशीयों का दास बनाना चाहता है। इसलिए दो दास के बीच गठबंधन किया गया है।

नेपाली कांग्रेस के महासचिव शशांक कोइराला और राप्रपा  अध्यक्ष कमल थापा का कहना है कि कम्युनिस्ट गठबंधन की ओर से प्रस्तुत चुनौती का सामना करने के लिए लोकतांत्रिक गठबंधन को, नेपाल को फिर से हिंदु राष्ट्र बनाने का मामला उठाना चाहिए।

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मधेशी पार्टियों के नेता भी इस कदम की समान रूप से आलोचना कर रहे हैं। स.स.फोरम के अध्यक्ष उपेन्द्र यादव ने कहा, गठबंधन केवल अवसरवादी नहीं होना चाहिए, वाम गठबंधन का नीति-कार्यक्रम का अब तक कुछ भी पता नहीं है। दूसरी बात, ये लोग वामपंथी या कम्युनिस्ट तो हैं ही नही। कोई कम्युनिस्ट के नाम पर, तो कोई मार्क्सवाद-लेनिनवाद के नाम पर, राजनीति कर रहा है, तो कोई माओवाद के नाम पर। गौर करें तो इनलोगों को मार्क्सवाद-लेनिनवाद या माओवाद के सिद्धांत से कोई लेना-देना नही है। ये सब विशुद्ध रूप से उदारवादी लोकतांत्रिक पार्टी यानी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी जैसों में परिवर्तित हो चुकी है। इन लोगो का कोई सैद्धान्तिक आधार नही है।

वाम गठबंधन के घोषणापत्र को जारी करते हुए केपी शर्मा ओली ने कहा कि यह नेपाल में राष्ट्रीयता, लोकतंत्र, राष्ट्रीय एकता, शान्ति, स्थिरता, संपन्नता और विकास का वादा करता है। ओली ने वादा किया कि वाम गठबंधन देश से गरीबी को हटाने, बेरोजगारी, स्वच्छ वातावरण और देश के दीर्घ अवधि के विकास को लेकर कृतसंकल्प है। उन्होंने यह भी कहा कि वे देश के दो प्रमुख पड़ोसी भारत और चीन के साथ संबंधों को और मजबूत बनाने का प्रयत्न करेंगे।

माओवादी केंद्र के अध्यक्ष पुष्प कमल दहाल ने कहा कि वाम गठबंधन, सामाजिक न्याय, संतुलित विकास और अमीरों और गरीबों में अंतर को पाटने की दिशा में काम करेगा। दहाल ने कहा कि नेपाली लोगों की प्रति व्यक्ति आय अगले 10 वर्षों में 5000 अमेरीकी डॉलर हो जाएगी। क्या यह सम्भव है ? क्या लोकतंत्र के चौथे स्तंभ ने किसी पार्टी के पुराने और नए धोषणपत्र को परखने का प्रयास किया ?

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वाम दलों ने जहां बड़ा गठबंधन बनाया है तो वहीं इनका मुकाबला करने के लिए सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस ने छोटे-छोटे दलों से गठजोड़ किया है। वाम गठबंधन का मुकाबला करने के लिए मधेसी दल भी कमर कस चुके है। सभी गठबंधन चुनावी नतीजों में बहुत फर्क डाल सकते हैं। अहम सवाल सामने है कि क्या नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का दौर खत्म होगा ? क्या जनादेश किसी एक गठबंधन के पक्ष में होगा या फिर जनादेश खंडित होगा ?

हाल में संपन्न स्थानीय इकाइयों के चुनावों का परिणाम वाम गठबंधन का मूल कारण हो सकता है। एमाले और माओवादी दोनों ने मिलकर स्थानीय चुनाव की कुल 753 सीटों में से 401 सीटे (53 प्रतिशत) जीती हैं। इससे यह स्पष्ट हो चुका है कि कम्युनिस्ट ताकतें आगामी चुनावों में आसानी से नेपाली कांग्रेस सहित लोकतांत्रिक और दूसरी ताकतों को पछाड़ सकती हैं और इस तरह यदि वे एकजुट हो जाएं, तो केंद्र और प्रांतीय स्तरों की सत्ता पर कब्जा जमा सकती है।

केवल समय और भविष्य में इन गठबंधनों का व्यवहार ही यह साबित करेगा कि ये बाहरी ताकतों द्वारा संचालित हो रही थीं या नहीं। लेकिन यदि वाम गठबंधन एक पड़ोसी द्वारा और लोकतांत्रिक गठबंधन दूसरे पड़ोसी द्वारा संचालित किया जा रहा है, तो यह विनाशकारी हो सकता है। ऐसे हालात में देश दीर्घकालिक राजनीतिक अस्थिरता के गर्त में धकेला जा सकता है।

अब प्रांतीय और संघीय चुनाव संपन्न हो जाने के बाद ही दोनों गठबंधनों की वास्तविक ताकत का फैसला हो सकेगा। लेकिन एक बात तो तय है — ऐसे घटनाक्रम से देश धीरे-धीरे दो या तीन दलीय शासन की ओर बढ़ेगा। ऊपर से देखने पर ऐसा लगता है कि इससे देश में राजनीतिक ​स्थिरता सुनिश्चित हो सकेगी। इस देश मे सशक्त बिपक्ष की हमेशा से कमी रही है, सत्ता के नाम पर परस्पर बिरोधी दल भी मिलकर सत्ता सहभागिता करते आए, जिस पर विराम लगने की संभावना दिख रही है। ऐसी भी आशंका है कि वाम मोर्चे द्वारा लोकतांत्रिक साधनों के जरिए सत्ता पर काबिज होने में सफलता पाने के बाद देश एक बार फिर से तानाशाही की ओर धकेला जा सकता है। ऐसे तत्व कम्युनिस्ट विचारधारा को लागू करने की कोशिश तक कर सकते हैं, जिसमें मधेशी, जनजातियों, दलितों और अन्य वंचित वर्गों की आवाज कुचल दी जाएगी। एक अन्य जोखिम सेना का है, जो देश में कम्युनिस्ट विचारधारा को इतनी आसानी से स्वीकार नहीं कर सकती।

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ऐसे गठबंधनों के साथ ही देश में सभी तरह की अनिश्चितताएं हो सकती हैं। यदि गठबंधन करने वाली ताकतों ने राष्ट्र हित में काम किया, तो उसका परिणाम जनता के लिए अच्छा हो सकता है, क्योंकि ऐसे में देश पर शासन करने वाली दो या तीन पार्टियां होंगी। लेकिन यदि वे विदेशी ताकतों के हाथ का खिलौना बन गईं, तो देश में गंभीर संघर्षों का दौड छिड़ सकता है।

सियासत इस कदर अवाम पे अहसान करती है,
पहले आँखे छीन लेती है फिर चश्में दान करती है।

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