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भौतिक पूर्वाधार आवश्यक -गणेश लाठ

‘वीरगंज’ का मतलव सिर्फ वीरगंज शहर ही नहीं । वीरगंज तो एक नारा है । उस नारें में हम लोग बारा, पर्सा और रौतहट तक समेट सकते हैं । इन तीनों जिला में जब विकास होता है, तब वह वीरगंज का विकास कहलाता है । इसके लिए क्या करना चाहिए ? विशेषतः भौतिक संरचना अथवा पूर्वाधार ही प्राथमिकता है । उसके लिए मैं बुँदागत रूप में कुछ बात रखना चाहता हूं–

Ganesh Lath

गणेश लाठ

१. सबसे पहले यहां एक विश्वविद्यालय होना चाहिए । उच्च शिक्षा का केन्द्र वीरगंज को बनाना होगा ताकि गुण्स्तरीय शिक्षा हमारी संतति को अपनी धरती पर ही प्राप्त हो सके । परन्तु अफसोस इस बात का है कि हम नाम और पद के नाम पर मतभेद करते हैं और बात आगे नहीं बढ़ पाती ।
२. दूसरा है– हुलाकी राजमार्ग का निर्माण । यह जिस गांव से निकले पर जल्द से जल्द इसे पूरा होना चाहिए । मैं भी कई गांव में घूमा हूँ और मैंने देखा कि लोग इस बात पर नाराजगी व्यक्त करते हैं कि मेरे गाँव से सड़क क्यों नहीं जा रही या क्यों जा रही ? ऐसे ही विवाद के कारण यह निर्माण योजना पीछे पड़ रही है । इसका निदान जल्द हो और यह कार्य जल्द पूरा हो ।
३. एकीकृत भन्सार जांच केन्द्र (आईसीपी) हम लोग मांग रहे थे, वह तो अब बन गया है । इसको अब कोई भी नहीं रोक सकता, इसीलिए अब हमारी मांग यह नहीं है । हां, जो द्रूतमार्ग (फास्टट्रयाक) बन रहा है, उसमें कई गलतफहमी फैल रही है । बहुतों को कहना है कि यह महंगा है । वे लोग कहते हैं कि अगर फास्टट्रयाक में मोटरसाइकिल चलाते हैं तो ८ सौ देना पड़ता है । मैं तो कहता हूँ कि यह फास्टट्रयाक मोटर साइकिलवालों के लिए नहीं है । आप दिल्ली–जयपुर और मुम्बई–पुने के लिए भी फास्टट्रयाक प्रयोग कर सकते हैं, वहां सामान्य नागरिकों के लिए दूसरी सड़क भी है । यहां भी है, आप अपनी क्षमता अनुसार सड़क का चुनाव कर सकते हैं । अर्थात् जो पे कर सकते हैं, उनके लिए फास्टट्रयाक है । यहां जो फास्टट्रयाक बन रहा है, वह एयरपोर्ट आने–जाने के लिए है । वीरगंज वासियों को फास्टट्रयाक की आवश्यकता है, हमारी मांग होनाी चाहिए कि यह जल्द बने । इसीलिए इसमें राजनीति नहीं होनी चाहिए ।
४. यहां पोलिटेक्निकल इन्सटीच्यूट की बात भी उठ रही है । यह मांग जायज है, यहां के लिए । यहां से जो मैनपावर बाहर जा रहे हैं, उस को रोकने के लिए यह आवश्यक है । उसके बाद जो सीपयुक्त मैनपावर तैयार होंगे, जो यहां रहनेवालों की लिभिंङ स्ट्याण्र्ड ही बदल देगी ।
५. हम लोग उद्योगी हैं, लेकिन अपने उद्योग कहां लगाएं ? सरकार से यह हमारा प्रश्न है । आप सिमरा करिडोर में जाते हैं तो वहां बहुत समस्या दिखाई देती है । अण्डा पहले आया या मुर्गी ? इसमें लम्बे समय से बहस हो रही है । वह औद्योगिक करिडोर है या मानव बस्ती ? सरकार के पास जवाब नहीं है । कब तक ऐसी स्थिति में हम लोग चलते रहेंगे ? कहीं भी हो, १ हजार बीघा जमीन निकाल कर औद्योगिक करिडोर घोषणा क्यों नहीं करती सरकार ? अगर सरकार यह करती है तो हमारी कई समस्याओं का समाधान हो सकता है ।
६. शिक्षा क्षेत्र का विकास होना चाहिए, इसमें सरकार नहीं निजी क्षेत्र को ज्यादा क्रियाशील होने की जरुरत है । इसके लिए सरकार की ओर से भी निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन करने की जरुरत है ।
७. यहां जो अस्पताल है, आज तक हम लोग इस को ‘नारायणी उपक्षेत्रीय अस्पताल’ कह रहे हैं ? क्यों यह अस्पताल उप–क्षेत्रीय है ? यहां बारा, पर्सा, रौतहट और मकवानपुर के ही नहीं, बिहार तक से बीमार लोग आते हैं । लेकिन ६ सौ बेड बनाने के लिए सरकार आगे नहीं आ रही है । सरकार को इसे प्रमुखता में रखना होगा ।
८. विकास सम्बन्धी जो भी प्रोजेक्ट होते हैं, उसमें राजनीतिक नियुक्त हो जाती है । जहां दक्ष और सीपयुक्त व्यक्ति होने चाहिए, वहां राजनीतिक नियुक्ति लेकर नेतृत्व करने के लिए आते हैं । यह हमारे लिए दुर्भाग्य है । समाज के प्रतिष्ठित लोग, व्युरोक्रेट्स से रिटायर्ड लोग अथवा संबंधित क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करनेवाले व्यक्ति सार्वजनिक निकाय में आने चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है । अब राजनीतिक नियुक्ति बन्द होनी चाहिए । निश्चित मापदण्ड के आधार में योग्य व्यक्ति को ही जिम्मेदारी देनी चाहिए । इस तरह की विकृति के विरुद्ध में भी हम लोगों को आवाज उठानी चाहिए ।
९. एक ट्रान्सपोटेसन सिटी भी आवश्यक है । इसके लिए हम लोगों ने प्रयास भी किया । वीरगंज के पश्चिमी भाग अथवा ड्राइपोर्ट से सिमरा तक कहीं भी हो, एक ट्रान्सपोटेसन सिटी निर्माण होना चाहिए । इसमें सरकार की तरफ से सिर्फ कन्सेप्ट आना चाहिए, इन्भेष्टमेन्ट नहीं । इन्भेष्टमेन्ट के लिए तो यहां के व्यवसायी है हीं । लेकिन भौतिक पूर्वाधार तो सरकार को ही बनाना पड़ता है । भौगोलिक अवस्था के कारण भी यहां निर्मित ट्रान्सपोटेसन सिटी पूरे देश के लिए प्रभावकारी हो सकता है ।
१०. देश में जो राजनीतिक समूह है, वह हम लोगों को प्रतिस्पर्धी मानते हैं । इसके पीछे हमारी ओर से भी कुछ कमजोरी हो रही है और कुछ उनकी ओर से भी । हिमालिनी की ओर से मैं एक सन्देश देना चाहता हूँ कि एक संसदीय समिति बनना चाहिए । उसका नाम जो भी हो, उसका काम सिर्फ विकास संबंधी होना चाहिए । इसीतरह उसकी जिम्मेदारी रहेगी कि वह विकास के मामले में निजी क्षेत्र, मीडिया, सार्वजनिक निकाय, सामाजिक अगुवा आदि से विचार–विमर्श करे । यहां तो राजनीतिक नेतृत्वकर्ता चुनाव के समय में निजी क्षेत्रों से मिलने के लिए आते हैं । यहां मैं एक उदाहरण पेश करना चाहता हूं । पिछले दो सालों में संसद से ५० से अधिक विधेयक पास हुआ, जिसमें आधे से ज्यादा विधेयक ऐसे हैं, जो हमारे भविष्य को निर्धारण करते थे । उसमें हमारे यहां के पोलिटिकल नेतृत्व नें हिस्सा ही नहीं लिया । लिया है तो हम लोगों को पता ही नहीं चला । ऐसी अव्यस्था में उद्योग और उद्योगी कैसे सुरक्षित हो सकता है ? जो हो गया, वह हो गया । अब जो संसद बनने जा रहा है, वहां ऐसा नहीं हो –यह हम लोग चाहते हैं । अर्थात् जब संसद बजेट बनाती है तो सांसद लोग हमसे पूछे के वीरगंज वालें को बजट में क्या–क्या चाहिए ? इसीलिए विकास के लिए एक संसदीय समिति बननी चाहिए, जो बजट आने से दो महीने पहले हम लोगों से विचार–विमर्श करे कि बजेट में क्या आना चाहिए ।
११. योजना आयोग के उपाध्यक्ष कौन हैं ? हम लोग नहीं जानते है । जो भी हो, उन को वीरगंज लाना पड़ेगा । फूलमाला के साथ लाया जाए अथवा खींच के, जैसे भी उनको वीरगंज ला कर यहांँ की हालतों से अवगत कराना चाहिए । क्योंकि दुगर्म गाँव में से कुछ गांव पर्सा जिला में हैं, जहां के बासिन्दा को लगता है कि वह भारतीय हैं इसलिए सरकार उन पर ध्यान नहीं देती है । यह मानसिकता देश के लिए सही नहीं है । इसे गम्भीरता से योजना आयोग को लेना होगा और वैसे हिससों के विकास पर ध्यान देना होगा ।

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