सिमरौनगढ़ अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन २०१८ भव्यतासाथ सम्पन्न : भरत साह द्वारा विस्तृत रिपोर्ट
भरत साह, सिमरोंगढ़ ७ गते | ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक नगर सिम्रौनगढ़ में १८-१९ मई को एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। सिमरौनगढ़ अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन २०१८ नाम दिए गए इस कार्यक्रम को सिम्रौनगढ़ नगरपालिका ने तराई मधेश राष्ट्रीय परीषद के सहयोग से आयोजित किया था जिसमें देश विदेश से आए जानेमाने पुरातत्वविद, समाजशास्त्री, पर्यटनविद, भाषाशास्त्री आदि लोगों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये तथा स्थानीय नेताओं ने सिम्रौनगढ़ के विकास के सन्दर्भ में बातें रखी ।
पहले दिन के कार्यक्रम के अनुसार अतिथियों को सिम्रौनगढ़ क्षेत्र में रहे विभिन्न पुरातात्विक स्थलों तथा बिखरे पड़े पुरातात्विक महत्व की मूर्तियों का अवलोकन कराया गया । इसी अवलोकन हेतु पिछले १५ साल से पुरातत्व विभाग द्वारा बन्द करके रखे गए एक कथित अजायबघर को भी खोला गया जिसमें दर्जन भर मूर्तियाँ तथा पुरातात्विक वस्तुएँ सुरक्षित रखी गई हैं। अवलोकन के क्रम में कोयलाकृत ८०० साल पुराने चावल के दानों को भी दिखाया गया जो सिम्रौनगढ़ के गोलागंज जाने के रास्ते में दिखाई पड़ता है। अन्य मशहूर स्थल जैसे कि रानीबास मन्दिर, कंकाली मन्दिर, इसरा पोखरा, झरोखर पोखरा, पलकिया माई, कोतवाली इत्यादि के साथ साथ पुलिस चौकी, खजानी गाँव और हरिहरपुर गाँव में बिखरी पड़ी अति-सुन्दर कारीगरी युक्त मूर्तियों का भी अवलोकन कराया गया ।
ज्ञात हो कि सिम्रौनगढ़ राज्य १०९७ इसवी में नान्यदेव राजा द्वारा स्थापित हुआ था तथा १३२६ इसवी में दिल्ली सल्तनत के गयासुद्दिन तुग़्लक़ द्वारा ध्वस्त कर दिया गया । अपने ढाई सौ साल से भी कम राज्य संचालन के युग में सिम्रौनगढ़ ने उच्चकोटि की प्रगति हासिल की थी । यहाँ से चंडेश्वर, वचसपति, ज्योतिरिश्वर, देवादित्य, कर्मादित्य, रामदत्त, विद्यापति इत्यादि जैसे विद्वान लोगों नें समाज के विभिन्न पहलुओं पर कलम चलाया जिसकी पाण्डुलिपियाँ भारत के एशियाटिक सोसाइटि के विभिन्न कार्यालयों तथा लन्दन और काठमाण्डु के संग्रहालयों में सुरक्षित रखी गई हैं ।
अवलोकन पश्चात कंकाली उच्च माध्यमिक स्कूल के प्रांगन में आयोजित सम्मेलन सभा में वरिष्ठ पुरातत्वविद तथा पुरातत्व विभाग के पूर्व उप-महानिदेशक तारानन्द मिश्र के अध्यक्षता तथा सिम्रौनगढ़ नगरपालिका के प्रमुख विजय शंकर यादव के सभापतित्व में मंतव्य कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ । दो हज़ार से अधिक संख्या में उपस्थित विज्ञ तथा आमजन को सम्बोधित करते हुए उप-प्रमुख श्रीमति रीमा देवी कुश्वाहा, पूर्व सांसद श्री जितेन्द्र सिंह, पूर्व सभासद श्री गोपाल ठाकुर, वरिष्ठ पत्रकार श्री चन्द्रकिशोर झा, पूर्व राजदूत श्री विजयकान्त कर्ण, कंकाली स्कूल के प्रधानाध्यापक श्री ध्रुव कुश्वाहा, तराई मधेश राष्ट्रीय परिषद के वक्ता श्री सि.एन.थारु, पुरातत्व विभाग की उप-महानिदेशिका श्रीमति मन्दाकिनि श्रेष्ठ, इत्यादि लोगों नें सिम्रौनगढ के विकास के विभिन्न पक्षके बारे में अपनी बातें कहीं। मंतव्य रखने के सिलसिले में वरिष्ठ पत्रकार श्री चन्द्रकिशोर झा द्वारा बताया गया कि सिम्रौनगढ के विकास के लिये ग्रामीण पर्यटन के अवधारणाको विकसित किया जाए। पुरातत्व विभाग की उप-महानिदेशिका श्रीमति मन्दाकिनि श्रेष्ठ ने आग्रह किया कि मछली पोषण हेतु सुपर जोन के बहाने सिम्रौनगढ क्षेत्र में तलाब खुद्वाकर जो कृषि मंत्रालय ने पुरातात्विक सम्पदा के विनाश का नंगा नाच किया है उसे तुरंत बन्द करने की आवश्यकता है । इसी तरह विजयकान्त कर्ण ने कार्यक्रम में विद्यार्थीयों द्वारा प्रस्तुत लोकप्रीय हिन्दी और नेपाली गानों पर नृत्य का विरोध करते हुए आयोजक तथा जनसमुदाय से कहा कि स्थानीय भाषा, खानपान, संगीत इत्यादि को बढावा देकर ही पर्यटन को बढावा दिया जा सकता है।
सभाको सम्बोधित करते हुए भारतीय उप-महावाणिज्य दूत श्री रमेश प्रसाद चतुर्वेदी ने जानकारी दी कि भारतीय सहयोग से बन रहे हुलाकी राजमार्ग के पूर्ण होने के बाद सिम्रौनगढ़ में आवागमन सहज होगा तथा विकास की केचुली यह क्षेत्र बदल सकेगा । कंकाली स्कूल में भारत के पूर्वराजदूतों के सहयोग से निर्मित भवन का अवलोकन करते हुए उन्होनें सिम्रौनगढ़ के पुरातात्विक सम्पदा संरक्षण हेतु सहयोग की प्रतिबद्धता जाहिर की तथा नगरपालिका से इस सम्बन्ध में प्रतिवेदन मांग की ।
सम्मेलन के दूसरे दिन यानि कि मई 19 को शोध-पत्र प्रस्तुत करने का सत्र आयोजित किया गया जिसमें बुद्धदेश के साथ साथ भारत और अमेरिका से आए विद्वान लोगों नें अपने कार्य-पत्र प्रस्तुत किये। इसी क्रम में इटली के विश्वविख्यात पुरातत्वविद मैसिमो विडाले जिन्होनें 25 साल पहले सिम्रौनगढ़ में खुदाई की थी उनका विडियो संदेश भी प्रसारित किया गया। साथ साथ मैसिमो विडाले के सहयोगी रही फ्रैनचेस्का लुग्ली का शुभकामना संदेश भी पढ़ा गया।
शोध पत्रों में भाषाविद गोपाल ठाकुर द्वारा विद्यापति को उनकी रचनाओं की भाषा विश्लेषण करके भोजपुरी कवि होने का दावा पेश किया गया । पूर्व शिक्षा सचिव बालदेव साह द्वारा सम्पदा संरक्षण प्रवर्धन के लिये नगरपालिका के काम कर्तव्यों के बारे में शोध प्रस्तुत हुआ । पुरातत्वविद प्रकाश दर्नाल ने बुद्धदेश के विभिन्न हिस्सों में हो रहे उत्खन्न की जानकारी दी। भारत के ओडिसा से आइ प्रोफ़ेसर रस्मिता सतपथि ने कर्णाट युग के मैथिल दर्शन के बारे में प्रस्तुती दी । भारत के कोच विहार से आए प्रोफेसर तनमय भौमिक ने सिम्रौनगढ में पर्यटन विकास को लेकर कोच विहार के राजबारी दरबार में हुए काम कार्यवाही का उदाहरण पेश किया जिससे वहाँ पर्यटन क्षेत्र ने बीते दशकों में छलांग मारी है । भारत के ही तीसरे प्रस्तोता उज्जवल मल्लिक ने विस्तार किया कैसे सिमरौनगढ़ पर्यटन का विकास कर सकता है तथा उसे कैसी चुनौतीयों का सामना करना होगा। इसी तरह काठमाण्डु से आए वकील विजय जयसवाल ने राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का हवाला देकर विस्तार किया कैसे उनसे सिमरौनगढ़ अपनी सम्पदा को बचाकर उससे लाभ ले सकता है। अंतिम में दिवेश सिंह ने सम्मेलन से 3 दिन पहले अर्थात मई १५ को प्राप्त एक शिलालेख का पटना के पंडित भवनाथ झा द्वारा अनुवादित और व्याख्यित लेख को पेश किया।
कार्यक्रम के समापन में सिमरौनगढ नगरपालिका प्रमुख श्री विजय संकर यादव ने सम्मेलन के सभी सहभागीयों को धन्यवाद देते हुए सिमरौनगढ़ क्षेत्र की सम्पदा संरक्षण के लिये प्रतिबद्धता जाहिर की ।
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