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मधेश को आत्म निर्भर बनाने के लिए अधिकार सम्पन्न बनाना होगा : कैलाश महतो

नेपाल का संविधान गलत कैसे हो सकता… ?

लालबाबू राउत गद्दी, प्रदेश न. २ के मुख्यमन्त्री

कैलाश महतो, परासी | संविधान मानव के लिए बनाया जाता है, न कि संविधान के लिए मानव । कुछ शास्वत बातों को छोडकर दुनियाँ के सारे संविधानों के अन्तर्वस्तु अलग अलग होते हैं । क्योंकि हर संसद और सरकार संविधान अपने देश और जनता के भूमि, स्वाभाव और आवश्यकता के अनुसार बनाता है । नेपाल ने भी अपने जनता के लिए संविधान बनाया है जो मधेशियों का नहीं हो सकता । जो संविधान ही मधेश का नहीं, उसके प्रस्तावना में मधेश कैसे होगा ? जो धारायें नेपालियों का हो, वहाँ मधेशी समा कैसे सकता ? सारे देशों के लिए एक ही संविधान बनना मुश्किल है । एक संविधान सारी दुनियाँ को चला ही नहीं सकता । जो संविधान नेपाल ने अपने लिए बनाया है, वो गलत कैसे हो सकता…? मधेश का अलग संविधान होना अपरिहार्य है ।
अधिकार माँगने बालों को कभी कोई स्वतन्त्रता नहीं मिलती । न अपने दर्द के बारे बोलने की स्वतन्त्रता, न कुछ माँगने की छुट और न सत्य बयाँ करने की आजादी । स्वतन्त्रता नहीं तो संविधान में सुधार करवाने की तो दूर की बात है, खुले रुप से अपना विचार भी नहीं रख सकते । वही हालात है प्रदेश नम्बर दो के मुख्यमन्त्री लालबाबु राउत जी के साथ । मोदी जी, जो नेपाल के संविधान के बारे भलिभाँती जानते हैं, के सामने मुख्यमन्त्री राउत ने मधेश आन्दोन का स्मृति दिला दी तथा संविधान के अन्तर्वस्तु और मूलभूत मुद्दाओं पर मधेश का असहमति कायम होने की बात बता दी तो उनके अमेरिका जाने के पूर्व सन्ध्या में केन्द्र सरकार ने जबर्जस्ती रोक लगा दी ।
मधेश पीडा के बारे में मोदी क्या, संयुक्त राष्ट्रसंघ, यूरोपियन यूनियन, अमेरिका, चीन, पाकिस्तान आदि कौन नहीं जानता ? मधेश आन्दोलन को किसने सहयोग नहीं किया है ? सारी दुनियाँ की निगाहें तो थी मधेश पर ! दुनियाँ को बताये बिना ओली या कोई और नेपाली शासक मधेश समस्या को समबोधन करने का नियत और हैसियत रखता है ? मधेश का मुद्दा क्या मिया और बीबी का खेल है कि वह आन्तरिक मामला है नेपाल का ? मधेशी नेपाली न होने का विज्ञापन नेपाल विश्व में करें तो वह देशभक्त और मधेशी अपना समस्या विश्व मञ्च और उसके नेतृत्व के सामने रखे तो वह देश के खिलाफ कैसे ? मधेशी अस्तित्व और नेपाली उपनिवेश का समस्या आन्तरिक कैसे हो सकता है ? ये तो वैश्विक समस्या है जिसे विश्व के राजनीतिक मञ्च पर ही समाधान होना जरुरी है । विभेदपूर्ण संविधान के बारे में मोदी लगायत सम्पूर्ण विश्व कोे गम्भीर रुप से सुनना होगा । क्योंकि वे विश्व नेता हंै ।
अधिकार माँगने बाला समाज या व्यक्ति भिखारी ही होता है, और भिखारी को कभी अधिकार नहीं मिलता । इस सत्यता को मधेशी नेता व उसके मुख्यमन्त्री तक के द्वारा समझ न पाना उनकी राजनीतिक अज्ञानता है । भिखारी को कोई मालिक भीख भर देता है, अधिकार नहीं । भीख भी भिखारी के चाहने अनुसार से नहीं मिलता । यह संभव ही नहीं है । कभी कभी भिखारी भी जबर्जस्ती कर लेता है । ऐसा दृश्य प्रायः रेल के डिब्बों में देखा जाता है । यात्री न चाहते हुए भी भिखारियों के झमेलों से बचने या किन्नरों के शरारतों से पीछा छुडाने के लिए कुछ ऐसे पैसे निकाल कर दे देते हैं, जिनको दे देने से उनके मूल यात्रा में कोई परेशानी न हो । वह भी इस लिए देता है कि प्रायः वैसे यात्री बाहर के होते हैं, अपने एरिया से बाहर होते हैं । घर के मालिक, और कभी सरकार नामक ट्रेन में सफर कर रहे उस मालिक यात्री और भिखारी मधेशी का सम्बन्ध क्या उन रेल के यात्री और भीख माँगने बाले भिखारी या किन्नर के अवस्था में कोई फर्क है ? लेकिन जब कोई मालिक चारों तरफ से निश्चिन्त हो जाता है तो उस अवस्था में किसी भिखारी से कभी वह डरता है क्या ?
वैसे भी डर के हालत में दिया गया सम्पति मालिक के अवस्था में सुधार होते छिना जा सकता है । वही घटना तो मधेशी नेताओं के साथ हो रहे हैं । जब मधेश का आन्दोदन डरावना हो जाता है तो राज्य भीख के नामपर मजबुरी में कुछ दे देता है और जब आन्दोलन कमजोर होता है तो सब छिन लेता है ।
मालिक से पंङ्गा लेना कितना महँगा पडता है, वह लालबाबु राउत और उनके मन्त्रिमण्डल को पता है ।
बाहर से यही बताया जा रहा है, नेपाली सारे मीडिया इसी बात पर चिल्ला रहे है, राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री जी इसी बात पर नाराज और परेशान है कि मुख्यमन्त्री ने मोदी जी के सामने नेपाल के संविधान के विरोध में क्यों बोला ?, मोदी जी की धार्मिक यात्रा में नेपाल के राजनीतिक मसलों को क्यों उठाया गया ?, नेपाल का राष्ट्रिय झण्डा का रुप और आकार क्यों बिगाडा गया ? अन्दर झाँककर देखें तो ये कारणें तपसिल के हैं । मूल कारण तो यह है कि जनकपुर के बारह बिगहा मैदान में ओली और उनके सरकार के अनुमानों से कहीं बहुत ज्यादा मधेशी जनता की उपस्थिति थी । मुख्यमन्त्री राउत जी के बातों पर समर्थन जताते हुए नेपाली पार्टी समेत में रहे लाखों मधेशियों ने तालियाँ बजायी । मोदी के कुटनीतिक “नेपाल और नेपाली” शब्दों पर मधेशी जनता ने समर्थन जतायी जबकि उन शब्दों में मोदी का “मोदीपन” छुपे होने का संकेत हो सकता है । नेपाली संविधान का चर्चा होना और नेपाली झण्डा का आकार और रुप बिगाडे जाने की कोई मुद्दा ही नहीं है ।
मधेश को आत्म निर्भर और सम्पन्न बनाने के लिए उसे अलग संविधान बनाना होगा । मधेश के अधिकार लिए अहंकारों को त्यागकर अपने चिन्तनों में वैज्ञानिकता लानी होगी । कुडे और सडे गले अनुशासन, देशभक्ति और परम्पराओं को छोडना होगा । उसके लिए अध्ययन, साहस और वैज्ञानिक चिन्तनों की आवश्यकता है ।
४८० ई.पू से लेकर सन् १९४७ तक भारत बाह्य आक्रान्ताओं का शिकार और गुलाम रहा । सारे वेद, पूराण, उपनिषद् और धर्मान्ध वेदान्तायें तबतक उन सारे औपनिवेशिक शासकों के गुलाम होते रहें जबतक पश्चिम के देशों में पढेलिखे गाँधी, नेहरु, जिन्ना, लोहिया, पटेल, अम्वेडकरों ने हिम्मत नहीं जुटायी । सारे संसार पर हुकुमत करने बाला पश्चिम ने ही वहाँ विद्यार्थी रहे भारत लगायत के महापुरुषों को निरकुंशता और उपनिवेशों के विरुद्ध वैज्ञानिक एवं लोकतान्त्रिक तरीकों से लडने को शिक्षा दी जिसके बलपर ही भारत और सैकडों देश आज स्वतन्त्र मुल्क कहलाती हैं । ज्ञात हो कि मधेश के लिए भी वैज्ञानिक और शान्तिपूर्ण लोकतान्त्रिक तरीकों से मधेश में पसरे नेपाली उपनिवेश के विरुद्ध लडने के लिए डा. सी.के राउत ने उनके ही शिक्षा पद्धतियों से बल व प्रेरणा न लेने के बात को इंकार नहीं किया जा सकता ।
अब तो और ज्यादा मधेश की आजादी की आवश्यकता बढती जा रही है । जनता के भारी मतों से लोकतान्त्रिक तरीकों से निर्वाचित प्रदेश सरकार प्रमुख का विदेश दौरा रद्द करना प्रदेश सरकार के अस्तित्व, गरिमा और पहचान पर हुए आक्रमण का पराकाष्ठा है । यह हर हाल में असहनीय है । राष्ट्रपति द्वारा घोषित सरकार की नीति तथा कार्यक्रम में मधेश का सम्बोधन न होना, संविधान संसोधन की चर्चा तक न होना, जन निर्वाचित मुख्यमन्त्री का विदेश भ्रमण को रद्द करना और उल्टे मुख्यमन्त्री को पद से हटाकर वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू करने की बात आना न तो मुख्यमन्त्री लालबाबु राउत जी के और न मधेशी जनता की सम्मान की बातें हो सकती । वहीं किसी मधेशी दल के मुखिया के तरफ से नाकाबन्दी होने का वक्तव्य आना अब मधेश और मधेशी जनता के लिए असह्य है । क्योंकि नाकाबन्दी से जनता प्रताडित और पीडित होती है और उन नेता तथा उनके पक्षपोषकों के लिए कमाई का सुन्दर अवसर निर्माण होते हैं । भारत बदनाम होता है और नेता एवं तस्कर मालामाल होते हैं ।

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