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एक अविभाजित नेपाल राष्ट्र, हिंदू राष्ट्र का स्वरुप है : डा.गीता कोछड़ जायसवाल/सीपु तिवारी

विरोधाभासी स्थिति यह है कि नेपाल में हिंदू संस्कृति और परंपरा से बंधे कई समुदाये और क्षेत्र ही नहीं हैं, बल्कि साम्यवाद के कठोर मूल समर्थक भी हिंदू धर्म के साथ विच्छेदन नहीं कर पाते हैं। इसलिए, नेपाली लोगों के दिल की धड़कनों की जीवन रेखा भारतीय उपमहाद्वीप से जुड़े रहने में है।



डा.गीता कोछड़ जायसवाल/सीपु तिवारी | नेपाल संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य, जैसा कि आज जाना जाता है, लगभग 54 छोटे राज्यों का एक सामूहिक राष्ट्र है जो गोरखा राजा पृथ्वी नारायण शाह द्वारा एकजुट हुआ था। राजा के पूर्वजों की खोज की ऐतिहासिक यात्रा हमें भारत ले जाएगी, क्योंकि वह द्रव्य शाह की नौवीं पीढ़ी के वंशज थे, जो भारत के पश्चिमी हिस्सों के राजपूत प्रवासक थे और बाद में उन्होंने गोरखा साम्राज्य की स्थापना की। साम्राज्य का एक आधिकारिक धर्म था – हिंदू धर्म। दिलचस्प बात यह है कि गोरखा साम्राज्य का नाम हमें हिंदू संस्कृति के संबंधों के साथ भी जोड़ता है, क्योंकि किंवदंतियों में संस्कृत शब्द ‘गौ’ और ‘रक्षती’ से निकलने वाला शब्द ‘गोरखा’ है, जिसका अर्थ है ‘गाय के संरक्षक’। आज भी नेपाल में इस धार्मिक हिंदू भावनात्मक संबंध के कारण गाय की हत्या पर प्रतिबंध है। फिर भी, अगर हम वर्तमान समय में नेपाल में ‘हिंदू राष्ट्र’ (Hindu Rastra) की बात करते हैं, तो कई चरम बल और अति-राष्ट्रवादी ताकतें इसके विरोध में आलोचना करते हैं और हिंदू संस्कृति व धर्म के साथ किसी भी निकटता और जुड़ाव को खारिज कर देते हैं।

‘हिंदू राष्ट्र’ को स्वीकार ना करना वैचारिक अस्वीकृति के प्रवचन में निहित है, क्योंकि कुलीन वर्ग ने अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं पर प्रभुत्व बनाए रखा है और समाज में जाति प्रभागों का निर्माण किया है। ऐसा प्रवचन कम्युनिस्ट नेताओं द्वारा भी उकसाया गया है, जिन्होंने ‘समानतावाद’ की आदर्श दुनिया बनाने के लिए क्रांतिकारी भावना खरीदी थी। इसलिए, गृहयुद्ध के दौरान पैदा हुए नेपाल के कई लोग या जो लोग राजतंत्र के निर्माण के लिए साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई का हिस्सा थे, वे धार्मिक संबंधों, विशेष रूप से हिंदू धर्म के ऐतिहासिक संबंधों का प्रतिशोध करते हैं। फिर भी, विरोधाभासी स्थिति यह है कि नेपाल में हिंदू संस्कृति और परंपरा से बंधे कई समुदाये और क्षेत्र ही नहीं हैं, बल्कि साम्यवाद के कठोर मूल समर्थक भी हिंदू धर्म के साथ विच्छेदन नहीं कर पाते हैं। इसलिए, नेपाली लोगों के दिल की धड़कनों की जीवन रेखा भारतीय उपमहाद्वीप से जुड़े रहने में है।

आज कई नेपाली अपने दृष्टिकोण में अत्यधिक व्यावहारिक बनने और लक्ष्य में स्व-विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं, इसलिए सामाजिक पदानुक्रम और सामाजिक प्रभागों के आधार पर विभाजनों में कई समुदाय ग्रस्त हैं। जैसा कि गोरखा राज्य ने हिंदू पहचान को स्वीकार किया, जिसमें समाज जाति के आधार पर उप-विभाजित था, और धीरे-धीरे नेपाल वर्ग समाज में भी विभाजित हो गया। वर्तमान नेपाल में पहचान के टकराव भी इन जाति और वर्ग आधारित विभाजनों को लेते हैं, जो किसी राजनीतिक विचारधारा से जुड़ाव के लिए भी कमजोर कड़ी बन जाते हैं।

नेपाल ने कई अन्य राज्यों के विपरीत लोकतंत्र को स्वीकार किया, लेकिन नेपाल के नेताओं ने पार्टी के सदस्यों और उनके लक्ष्यों को विभाजित और उप-विभाजित करने के लिए जाति और वर्ग कारक का उपयोग किया। सबसे तनावपूर्ण स्थिति नेपाल के पश्चिमी क्षेत्र में है, जहां मधेसी समुदाय नेपाली वर्ग की उप-जाति हैं। अंग्रेजों के चले जाने के बाद पश्चिमी नेपाल और भारत की सीमा के विभाजन के परिणामस्वरूप एक ही समुदाय के कुछ लोग नेपाल का हिस्सा बन गए और कुछ भारत का हिस्सा, जिसके कारण तराई क्षेत्र एक अलग समुदाय का मुद्दा बन गया है। भूमि क्षेत्र का यह राजनीतिक विभाजन परिवारों और समुदायों के भावनात्मक लगाव और संबद्धता को विच्छेदन नहीं कर सका है। इसलिए, दशकों से, अधिक समामेलन और सीमा पार विवाह है, जिसने तराई क्षेत्र की विशेषता को नया रूप दिया है। प्रवास और प्रसार के कारण हुए इस सामाजिक परिवर्तन से ना केवल नेपाल में आंतरिक सांस्कृतिक विकास हुआ है, बल्कि ‘हिंदू राष्ट्र’ का गहरा समरूप बना है। हालांकि, नेपाल में कई लोग तराई क्षेत्र के इन समुदायों को एक विभाजित समुदाय के रूप में देखते हैं, जो नेपाल की मुख्यधारा में शामिल नहीं हैं और यह प्रवृत्ति 2015 में स्वीकृत हुए नए संविधान के बाद और गहरी हो गई है। अब बड़ा मुद्दा यह है कि नेपाल की व्युत्पत्ति में हिंदूवाद है या नहीं; और क्या ‘हिंदू राष्ट्र’ के रूप में नेपाल की समग्र पहचान को परिभाषित किया गया है या नहीं?

राष्ट्र-राज्य सिद्धांत और सांस्कृतिक विकास

राष्ट्र-राज्य (Nation-state) सिद्धांत के विद्वानों का मानना ​​है कि एक राज्य का विकास, सामूहिक पहचान के बड़े संबंधों में समुदायों और राष्ट्रीयताओं की स्वीकृति और आकलन पर आधारित है। यह पहचान उन्हें ‘राष्ट्र’ की धारणा से जोड़ता है, जो की अपनेपन की भावना को उत्पन्न करता है। राष्ट्र-राज्य सिद्धांत के सबसे प्रभावशाली विद्वानों में से एक एंथनी स्मिथ (Anthony Smith) का तर्क है कि “अगर एक जातीय और सांस्कृतिक आबादी एक राज्य की सीमाओं में रहते है, तब वह राज्य राष्ट्र-राज्य माना जाता है, और उस राज्य की सीमाएं उस जातीय और सांस्कृतिक आबादी की सीमाओं से सह-विस्तारित होती हैं”। हालांकि, इस सिद्धांत के लिए सबसे बड़ा विपक्षी विकल्प यह है कि अधिकांश आधुनिक राज्यों में अल्पसंख्यक समुदाय, जनजाती और विविध जातीय समूह का अस्तित्व मौजूद है। तब नेपाल के मामले में मुद्दा यह है कि हम नेपाल को ‘राष्ट्र-राज्य’ के रूप में देखते हैं या “सभ्यता-राज्य” के रूप में पहचानते हैं।

चीनी सभ्यता-राज्य सिद्धांत के समर्थक मार्टिन जैक्स (Martin Jacques) का मानना ​​है कि चीन में “चीनी सभ्यता की अभिव्यक्ति और अवतार” के लिए राज्य में विश्वास है और सभी लोग उसका अनुसरण करते हैं। नेपाली राष्ट्रवाद के संदर्भ में इस प्रवचन को रखा जाए तो यह मुद्दा उठेगा की नेपाल राज्य क्या है और इसके संदर्भ में नेपाली पहचान क्या है। क्या बहुमत नेपाली अपनी पहचान नेपाल संघीय गणराज्य के तहत एक सामूहिक पहचान के रूप में ‘एक राज्य, एक जातीय’ समुदाय में करते हैं ? या पृथ्वी नारायण शाह द्वारा बनाई गई एकीकृत राज्य से संबंधित सामूहिक भावना के साथ जातीय समूहों का विचलन करते है। प्रवचनों में कई विचलन से यह निष्कर्ष निकलता है कि नेपाल अपने इतिहास, पहचान, संस्कृति और सोच के तरीकों के मामले में अनिवार्य रूप से एक सभ्यता-राज्य है, जिसमें हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति की अलग एक गूंज है। नेपाल के लिए आधुनिक राष्ट्र-राज्य अवधारणा सिर्फ राज्य नीति के माध्यम से एकीकृत सांस्कृतिक पहचान का निर्माण है, लेकिन नेपाल संक्षेप में कई समुदायों का एक विविध गठन और विकास है, जो बहुमत रूप से अस्तित्व और जीवनशैली में हिंदू प्रकृति और विचारधारा से जुड़ा है।

 

  • डा.गीता कोछड़ जायसवाल-चीन में संघाई फुतान विश्वविद्यालय में अस्थाई बिद्वान है, और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर है।

    * सीपु तिवारी- लेखक, राजनीतिज्ञ और मधेश के जानकार है।



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