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वीरेन्द्र केएम
काठमांडू। किसी भी विद्यार्थी की एसएलसी तक कोई पहचान नहीं होती। लेकिन एसएलसी के बाद कोई भी विद्यार्थी अपनी अलग पहचान बनाने की ओर अग्रसर होता है। एसएलसी में बढियां नम्बर लाने के बाद कोई भी विद्यार्थी ज्यादातर ‘ए लेभल’ की ओर आकषिर्त होता है। दरअसल स्वदेश में ही अन्तर्रर्ाा्रीय स्तर की पर्ढाई ‘ए लेभल’ उपलब्ध होने के कारण भी पिछले समय विद्यार्थी ‘ए लेभल’ की ओर आकषिर्त होते आ रहे है।
दरअसल बेलायत क्याम्ब्रिज विश्व विद्यालय के पाठ्यक्रम में आधारित जनरल र्सर्टिफिकेट अफ एजुकेशन एडभान्स लेभल क्वालिफिकेशन -जिसिई ‘ए लेभल’) वर्ल्ड के १ सौ ८० से ज्यादा देशों में पर्ढाई होती है। पिछले समय यह पाठ्यक्रम नेपाल मे भी ज्यादा लोकप्रिय रहा। मौलिक एवं व्यावहारिक होने की वजह से भी इस एजुकेशनल प्रणाली में विद्यार्थी ज्यादा आकषिर्त होते जा रहे है, -विज्ञों का ऐसा तर्क है। हिमालिनी से बातचीत में चेल्सी इन्टरनेशनल एकेडेमी के संस्थापक एवं प्रिन्सिपल सुधीर कुमार झा ने बताया कि यह शिक्षा प्रणाली विद्यार्थी को सिर्जनशील बनाने में मदत करती है। उन्होंने बताया कि ‘ए लेभल’ के पाठ्यक्रम विद्यार्थीओं की इच्छा और आकांक्षा पर आधारित होकर बनाया गया है, जिस के चलते विद्यार्थी बहुत ही सरल तरिके से अध्ययन कर सकें।
विराटनगर, काठमांडू, पोखरा, धरान, बुटबल सहित ३४ काँलेज एवं शिक्षण संस्था में यह ‘ए लेभल’ पाठ्यक्रम के मुताबिक अध्ययन-अध्यापन हो रहा है। सूत्रों के मुताबिक कूल २९ काँलेज सिर्फकाठमांडू में हैं। ‘ए लेभल’ की परीक्षा प्रणाली, परीक्षा संचालन, अनुगमन, मूल्यांकन एवं सभी की जिम्मेवारी काठमांडू स्थित ब्रिटिस काउन्सिल की होती है। काउन्सिल के निर्देशन में वर्षमें दो बार ‘ए लेभल’ परीक्षा सञ्चालन होती आ रही है। समाचार स्रोत बताते हैं कि व्यवस्थित परीक्षा, मूल्यांकन प्रणाली में सरलता, समय में ही नतीजा प्रकाशन आदि के कारण ‘ए लेभल’ के प्रति विद्यार्थी तथा अभिभावक का मोह बढÞते जा रहा है।
बुढानीलकण्ठ स्कूल के प्रिन्सिपल केसर खुलाल के मुताबिक यह ‘ए लेभल’ पर्ढाई के लिए सञ्चालन इजाजत शिक्षा मन्त्रालय से अलग से लेना आवश्यक है। शिक्षा मन्त्रालय के एक सह-सचिव ने बताया कि ‘ए लेभल’ पठन-पाठन के लिए इजाजत के साथ-साथ अनुगमन भी नियमित हो रहा है। इस से पहले हम लोग सिर्फइजाजत देते थे और बाँकी सभी कार्य ब्रिटिस काउन्सिल के जिम्मे था। लेकिन ज्यादा विकृति और शिकायत की वजह से पिछले समय मन्त्रालय ने अनुगमन कार्य को चुस्त बनाने का फैसला किया है -मन्त्रालय के एक सह-सचिव ने हिमालिनी को बताया।
नेपाल में ‘ए लेभल’ की पर्ढाई कुछ समय पहिले सीमित शिक्षण संस्था को दी जाती थी। बुढानीलकण्ठ के बाद ब्रिटिस स्कूल, रातो बंगला ने सब से पहले ‘ए लेभल’ की प्रणाली से पर्ढाई शुरु किया था। बाद में चेल्सी, मल्पी, साइपाल, किग्ंस आदि काँलेज ने ‘ए लेभल’ की पर्ढाई शुरु किया है। बुढानीलकण्ठ के प्रिन्सिपल खुलाल ने बताया कि बुढानीलकण्ठ कोई लाभमुखी शिक्षण संस्था नहीं है। बुढानीलकण्ठ में १०० सिट के लिए हजार से भी ज्यादा आवेदन आए है। उन्होंने ये भी बताया कि ब्रिटिस काउन्सिल ने भी ये सिद्ध किया है कि बुढानीलकण्ठ अन्य की तुलना में एक अच्छी शिक्षण संस्था है।
‘ए लेभल’ के बाद दरअसल विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए अच्छे अवसर मिलते हैं। इसके चलते भी ‘ए लेभल’ ज्यादा लोकप्रिय हो रहा है। ‘ए लेभल’ के वाद ‘मैं विदेश में इन्जीनियरिङ पढÞना चाहता हूँ’ एक विद्यार्थी रामचन्द्र शर्मा ने हिमालिनी से बताया। यह अन्तर्रर्ााट्रय स्तर का कोर्षहै, इसलिए भी कोई भी विद्यार्थी इसकी ओर आकिर्ष हो सकता है।
एक र्सर्वेक्षण के मुताबिक ‘ए लेभल’ का सुन्दर पक्ष विषय चयन में विविधता है। चेल्सी के प्रिन्सिपल झा ने बताया कि विद्यार्थी अपनी इच्छा के मुताबिक ७० से ज्यादा विषयों का विकल्प पा सकते है। अनिवार्य विषय सिर्फचार है, बाँकी ऐच्छिक है। किसी विषय में कम प्रतिशत आने पर फिर परीक्षा देने का मौका मिल सकता है।
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‘ए लेभल’ पर्ढाई के लिए ७ हजार से २८ हजार तक मासिक रुप में शुल्क देने पडÞते है। कुछ काँलेजो भर्ना के वक्त ही ५८ हजार से एक लाख तक भी शुल्क लेते आ रहे है। वैसे तो ज्यादा शुल्क लगने के कारण आर्थिक रुप से कमजोर विद्यार्थी इस पर्ढाई से बञ्चित हो जाते है। इस यथार्थ को ध्यान में रखते हुए पिछले समय काँलेज सहित ब्रिटिस काउन्सिल ने भी छात्रवृत्ति की व्यवस्था भी कर्राई है। चेल्सी के झा बताते है कि ‘ए लेभल’ के नेपाली विद्यार्थी ने वर्ल्ड टाँप भी कर लिया है। इसलिए नेपाल की पर्ढाई कमजोर है, यह आरोप वेबुनियाद है।
पर शिक्षाविद् डा. विष्णु कार्की के मुताबिक ‘ए लेभल’ का पाठ्यक्रम स्थानीय परिवेश के मुताबिक नहीं होने की वजह से जनशक्ति में नेपालीपन की कमजोरी दिख रही है। उन्होंने यह भी बताया कि बडÞी संख्या में विद्यार्थी देश से बाहार जा कर पढने की वजह से देश के अर्थतन्त्र पर नाकरात्मक प्रभाव पडÞ रहा है।



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