अपनों ने जब कभी भी, मुहब्बत से बात की; कोई न कोई अपनी, ज़रूरत की बात की ।
गंगेश कुमार मिश्र
अपनों ने जब कभी भी,
मुहब्बत से बात की;
कोई न कोई अपनी,
ज़रूरत की बात की ।
हम पे पड़ी तो अक़्सर,
थे दूर जो खड़े;
ख़ुद पे जो आ पड़ी तो,
इनायत की बात की ।
कहते थे जो हमेशा,
इक बार कर के देखो;
हमनें जो की मुहब्बत,
क़यामत की बात की ।
आँखों में आ गए जो,
हर बार की तरह;
अश्कों ने आज,
हमसे बग़ावत की बात की ।