इस सदी के निर्जन जगंल में निरन्तर जल कर दावानल बनी हुई एक “आग” : बिम्मी कालिन्दी शर्मा
“आग”

-बिम्मी कालिन्दी शर्मा
मैं हुं एक “आग”,
मत आना मेरे करीब
तुझे भष्म करने कि ताकत हैं मुझ में
क्यों कि मैं एक “आग” हुं ।

मेरे आगे अपने अहम को हवा मत देना,
नहीं तो चिगांरी बन मैं भडक उठुगीं ।
क्यों कि मैं एक आग हूँ ।
मेरे सामने अपनी लालसाओं का ईंधन मत उडेलना
मैं शोला बन कर तेरे ही माथे पर दहकुँगीं ।
क्यों कि मैं एक आग हूँ
मत जलाना मेरे सामने अपने स्वार्थ की माचिस
मैं लपटे बन कर तेरे साए में फैल जाउँगी ।
चूंकि मै एक आग हूँ !
इसीलिए मत गुणा, भाग लगाना मेरें
आंसू और संवेदनाओं का ।
तेरे दिमाग के तराजु को ही
मैं राख बना दूँगीं ।
क्यों कि मैं एक आग हूँ ।
न माँग रखना अपने ख्वाहिशों का मेरे सामने
भावी ने लिखे तेरे किस्मत के पन्ने को
मैं खाक कर दूँगीं ।
मैं सत्य की चिता में जलती हुई वह आग हूँ,
जो सारे रुढिगत संस्कारों को जला कर
स्वाह कर देगी ।
क्यों कि मैं एक आग हूँ।
इस सदी के निर्जन जगंल में
निरन्तर जल कर दावानल बनी हुई एक “आग” ।