चाहत काे अपने दिल से हर बार क्याें यूँ दूर किया ।
सुरेखा शर्मा
चाहत काे अपने दिल से
हर बार क्यूँ यूँ दूर किया ।
चाहत का हाथ हाथ में ले
क्यूँ मिलने काे मजबूर किया
चाहत ने अाँखाें में देखा जाेऽ
प्यार के रंग में रंग दिया ।
चाहत का हाथ पकड फिर
उस पर अपना नाम लिखा
फिर हर अक्षर काे काट कर
अपना नाम मिटा डाला ।
छल भरा था जितना मन में
चाहत पर सब वार किया
फिर अाग में झुलसा कर उसमें
पत्थर जैसा मजबूत किया ।
स्वार्थ मैल अाैर छल बल काे
सहने काे मजबूर किया ।
चाहत काे अपने दिल से
हर बार क्याें दूर किया ।
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