Fri. Mar 29th, 2024

सुरेखा शर्मा



सुरेखा शर्मा

चाहत काे अपने दिल से

हर बार क्यूँ यूँ दूर किया ।

चाहत का हाथ हाथ में ले

क्यूँ मिलने काे मजबूर किया

चाहत ने अाँखाें में देखा जाेऽ

प्यार के रंग में रंग दिया ।

चाहत का हाथ पकड फिर

उस पर अपना नाम लिखा

फिर हर अक्षर काे काट कर

अपना नाम मिटा डाला ।

छल भरा था जितना मन में

चाहत पर सब वार किया

फिर अाग में झुलसा कर उसमें

पत्थर जैसा मजबूत किया ।

स्वार्थ मैल अाैर छल बल काे

सहने काे मजबूर किया ।

चाहत काे अपने दिल से

हर बार क्याें दूर किया । 



About Author

यह भी पढें   तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय नेपाल भारत संस्कृत सम्मेलन का भव्य समुद्घाटन
आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: