पाया हिन्दी ने विस्तार : डॉ राजीव पाण्डेय
पाया हिन्दी ने विस्तार
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अरुणोदय से अस्ताचल तक, झंकृत हैं वीणा के तार।
पाया हिंदी ने विस्तार।
साखी सबद रमैनी सीखी,
सूरदास के पद गाये।
जिव्हा पर मानस चौपाई,
मीरा के भजन सुनाये।
कामायनि के अमर प्रणेता,आँखों मेआँसू की धार।
पाया हिन्दी ने विस्तार।
रासो गाये चंदवर दायी,
नहीं चूकना तुम चौहान।
थाल सजाकरचला पूजने,
श्यामनारायण का आव्हान।
खूब लड़ी मरदानीवाली,लक्ष्मीबाई की तलवार।
पाया हिन्दी ने विस्तार।
नीर भरी दुख की बदली में,
नीहार नीरजा बातें।
तेज अलौकिक दिनकर से,
महकी उर्वशी की रातें।
जौहर के हित खड़ी हुई है,देखो पद्मावति तैयार।
पाया हिंदी ने विस्तार।
राम कीशक्ति कहेंनिराला,
इब्राहीम रसखान हुआ।
सतसई है गागर में सागर,
डुबकी मार सुजान हुआ।
देख दशा करुणाकर रोये,सुनी सुदामा करुण पुकार।
पाया हिंदी ने विस्तार।
मृग नयनी के नयन लजीले,
नगर वधू वैशाली से।
प्रिय प्रवास से राधा नाची,
दिए उलाहने आली से।
फ़टी पुरानी धोती में भी,धनिया के सोलह श्रृंगार।
पाया हिन्दी ने विस्तार।
© डॉ राजीव पाण्डेय
