जमीर अाैर जमीन दाेनाें गिरवी
व्यग्ंय( बिम्मीकालिंदीशर्मा

जमीन और जमीर के बीच बस एक शब्द का अंतर है । पर यही एक अक्षर का अतंर फलक और खाक के जितना है । क्योंकि जमीन तो सभी के पास है पर जमीर किसी के पास भी नहीं है । इसी जमीर को बेच कर लोगों ने जमीन तो खरीद लिया और जमीर को उसी जमीन के अदंर दफना दिया । जब जमीर दब जाएगा या दफन हो जाएगा तभी इंसान तरक्की कर सकता है । जमीर के जागते तरक्की के सपने देखना ही बेमानी है । क्यों जिस का जमीर जगा हुआ है वह बेईमानी कर ही नहीं सकता । बेईमानी, भ्रष्ट और अनैतिक काम करने के लिए जमीर का सोना निहायत जरुरी है ।
नेपाल सरकार की जमीर हमेशा के लिए सो चुकी हैं ईसी लिए तो हर गलत काम को सही का जामा पहना कर ढकना चाहती है । चाहे वह भ्रष्टाचार या बलात्कार का ही मामला क्यों न हो । एक बलात्कारी को बचाने के लिए इस देश की सत्ता जिस तरह दंड पेल रही है उस से लगता है कि इन में जमीर हैं ही नहीं । न सरकार, न प्रहरी, न कर्मचारी न देश की अवाम सभी का जमीर बिक चुका है या सो चुका है हमेशा के लिए । सब से ज्यादा इस देश की अवाम के पास ही जमीर का जेवरात नहीं है । जमीन तो इन के पास पहले से ही बखुबी है पर जमीर कहीं भी नहीं है । आज की अवाम ही तो कल की सरकार, नेता, मंत्री, कर्मचारी या प्रहरी है । जब देश की अवाम ही बेईमान है तो हम कैसे नेता, मंत्री, कर्मचारी, प्रहरी या सरकार से ईमानदारी की उम्मीद कर सकते हैं ?
अनियमित तरीके से पैसा कमाना, टेबल के नीचे से रिश्वत लेना या कमीशन खाना ही भ्रष्टाचार नहीं हैं । जब किसी के साथ गलत हो रहा हो और आप चुपचाप वहीं खडे देखते रहे और विरोध न करे । आप के घर के बगल में कोई भूखा, प्यासा सिसकियों मे डूबा रहे और आपको इस के प्रति तनिक भी लज्जा न हों और आपका दिल न पसीजे । यह भी तो एक किस्म का भ्रष्टाचार हैं क्यों कि आपका जमीर सो चूका है तभी तो आपको यह सब देख, सुन कर भी कुछ फर्क नहीं पडता है । गरीब को और दबाना, उस की गरीबी से फायदा उठाना, भेदभाव करना यह सब शोषण है और शोषण भी एक प्रकार से भ्रष्टाचार हैं । मीडिया और सामान्य जन पप्पु के घोटाले और कमिशनखोरी को तो खुबकोसते हैं । पर वह खुद कितने ईमानदार और निर्दोष हैं यह अपने गिरेबान मे झांक कर नहीं देखते ।
सभी दूसरों को बेईमान, अनैतिक और भ्रष्ट ठहराते हुए पत्थर मारने पर तुले हुए है । पर वही पत्थर अपने सिर पर कोई नहीं मारता । जब हम खुद भ्रष्ट हैं और हमारा जमीर मर चूका है तो हम कैसे दूसरों को गलत ठहरा सकते हैं । किसी के साथ रास्ते में छेडखानी होती है, कोई किसी को सरेआम मारता, पिटता है । यह सब अगल, बगल खडे लोग चुपचाप देखते हैं और फोटो खींच कर या वीडियो बना कर उस को सोशल मीडिया में रख देते हैं । जितनी देर उन्हो्रने फोटो खींचने या वीडियो बनाने कि कारस्तानी की उतनी देर में उस लडकी को छेडखानी से बचाते या किसी आदमी को मार खाने से बचाते तब आप इंसान कहलाते । पर आपका तो जमीर जमीन के अंदर दफन हो गया है तब आप काहे के लिए यह सब झमेला कर के अपनी मानवीयता दिखाते । आपको तो सोशल मीडिया उस फोटो या वीडियो को शेयर कर के वाहवाही लूटनी है । आपको इंसान थोडे ही न बनना है ?
घर में किसी वृद्ध या वृद्धा के साथ तिरस्कार या अवहेलना किया जाता है । उन्हे जीवन के न्यूनतम आवश्यक्ताओं से दूर रखा जाता है । अपने ही बच्चे उन्हें दुत्कारते हैं । तब उस समय अड़ोसी, पड़ोसी दूर से ही दूसरों के घर का मामला है कह कर चुपचाप खडेÞ देखते रहते है । क्योंकि उन के यहां भी यही सब होता है और अगला पड़ोसी चुपचाप देखता है । प्रहरी भी घरेलु मामला कह कर हस्तक्षेप नहीं करना चाहती और बेचारे बडेÞ, बूढे आंसू बहा कर चूपचाप अपना दर्द सह लेते हैं ।
उस समय घर के सदस्यों का, पड़ोसियों का या प्रहरी का जमीर नहीं जागता । उनका खून नहीं खौलता इस असामाजिक और भेदभाव पूर्ण कार्य को देख कर । क्या यह सामाजिक अपराध नहीं हैं ? इस के लिए सजा का कोई विधान नहीं होना चाहिए ? पर कोई सजा नहीं होती । क्योंकि सभी के घर में कमोबेश यही हो रहा है । जब अपना घर भी शीशे का बना है तो कोई क्यों दूसरे को पत्थर मारेगा ?उनको मालूम है कि पड़ोसी या रिश्तेदार के घर में भी पत्थर है जो वह फेक सकते हैं ।
जिस देश के कानून में फांसी की सजा का विधान ही नहीं है उस देश की मूर्ख अवाम बलात्कारियों को फांसी की सजा की मांग करती है । उन दुष्कर्मीयों को प्रहरी पकड़ ले और उनको साधारण सजा भी हो जाएतो गनीमत है पर पट मुर्ख अवाम को समझाए कौन ? यह वही है जो भीतर ही भीतर तो गलत काम करते है पर बाहर बगूला भगत बन कर वाहवाही पाते हैं । इसी लिए यह तीन में भी ठीक हैं और तेर्ह में भी । क्योंकि ईन्होने अपनी जमीर को मार कर इसी तरह साधा हुआ है और उसी दफन हो चुके जमीर के उपर जमनि पर खडेÞ हो कर यह बयानबाजी कर रहे हैं ।
जब तक आप अपने जमीर को नहीं मारिएगा तब तक न आप सामाजिक हो पाइएगा न आपको कोई ईज्जत देगा न पुरस्कृत कर के आपका सम्मान बढाएगा । इस दुनिया में अगर जीना है तो जमीर का मरना जरुरी है । क्योंकि जिनके पास जमीर होता है उन के पास जमनि नहीं होती । और इस दुनिया में अपना वजूद कायम रखने के लिए जमीन जरुरी है जमीर नहीं । ईसी लिए जमीर को जमीन के अदंर दफना दीजिए । क्योंकि जमीन और जमीर एक म्यान में दो तलवारे जैसी हैं जो एक साथ नही रह सकती । यह दोनो सौतन भी हो सकती है क्यों कि जमीन दिमाग से निर्देशित होता है और जमीर दिल से । इसी लिए जमीर को गोली मारिए और जमीन पर चटाई बिछा कर सो जाईए ।