Thu. Mar 20th, 2025

कभी किसी को मुक़म्मल जहाँ नहीं मिलता : निदा फाजली होना ऐसी आवाजों का मिश्रण होना है जिनमें दर्द की शिनाख्‍त है, खुशी की संभावनाएं हैं

जन्मदिन विशेष

निदा…..यानी आवाज़। रूह तक उतरने वाली ध्‍वनि। ध्‍वनि जिसे आसान रहते हुए भी संवेदनशील विषयों पर सार्थक कहना आता था। जो सूफियाना होते हुए दुनियादार थी और दुनियादार होते हुए भी सूफियाना थी। कहीं ज़मीं तो कहीं आस्‍मां की तलाशी लेने वाली आवाज़…सब कुछ भुला देने वाली आवाज़….और ऐसी आवाज़ जाे आईना बन जाती है। किसी मस्जिद में जाना किसी रोते हुए बच्‍चे को हंसाने से बड़ी बात नहीं है…यह ऐलान करने वाली आवाज़। मौला से विनती करने वाली आवाज़ कि गरज और बरस… धरती बहुत प्‍यासी है।

यह भी पढें   ‘नागार्जुन और युद्ध प्रसाद मिश्र के रचना कर्म’ विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

दरअसल निदा फाजली होना ऐसी आवाजों का मिश्रण होना है जिनमें दर्द की शिनाख्‍त है, खुशी की संभावनाएं हैं और जहां जरूरी हो वहां टकराने का साहस भी। ये तमाम खूबियां एक आशिक की होती हैं और निदा आशिक थे। सिर्फ यहां तक आशिक नहीं कि उनके साथ दिल्‍ली के एक कॉलेज में कोई मिस टंडन पढ़ती थी….उसे पसंद करने लगे थे… इससे पहले कि वह इज़हार कर पाते, मिस टंडन की मौत हो गई। व‍हां से मिले दर्द को उन्‍होंने इतना विस्‍तार दिया कि वह आशिक हुए इस जीवन के। इसके उलझाव और सुलझाव के। इसके तमाम पहलुओं के ।

यह भी पढें   कुलमान घिसिङ उजालें के नायक नहीं  हैं  – दीपक खड्का

जब वह पाकिस्तान गए तो एक मुशायरे के बाद कट्टरपंथी मुल्लाओं ने उनका घेराव कर लिया और उनके लिखे शेर –

घर से मस्जिद है बड़ी दूर, चलो ये कर लें।
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए॥

पर अपना विरोध प्रकट करते हुए उनसे पूछा कि क्या निदा किसी बच्चे को अल्लाह से बड़ा समझते हैं? निदा ने उत्तर दिया कि मैं केवल इतना जानता हूँ कि मस्जिद इंसान के हाथ बनाते हैं जबकि बच्चे को अल्लाह अपने हाथों से बनाता है।
उनकी एक ही बेटी है जिसका नाम तहरीर है।

About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com