चायपान बनाम केलापान
व्यग्ंय( बिम्मी कालिंदी शर्मा
चायपान जापान की तरह कोई देश नहीं है । यह तो नेकपा एमाले द्धारा दशहरे के शुभअवसर पर शुभकामना आदानप्रदान करने के लिए दी गयी चाय पार्टी का एक कार्यक्रम है । जिसे जलपान भी कह सकते हैं । पर ईस चायपान में चाय के साथ, समोसा, नमकीन और केला भी था । साथ में पानी भी जरुर होगा ? इसी लिए यह चायपान है जहाँ चाय मे डुबो कर बिस्किट की जगह केला खाया जाता है । केला बिस्किट की तरह गलता नहीं है ईसी लिए । इस देश में हर असंभव काम और तमाशा होता है । आप ने कहीं और चाय में केला डाल कर किसी को कभी खाते हुए देखा है ?
५० हजार वानर सेना, हुक्म के गुलाम और कथित अति विशिष्ट लोगो को इस केला पान यानी कि चायपान में बुलाया गया था । अब चायपान और जलपान तो सभी ने देखा था पर केलापान का दृश्य बिल्कुल नया था । अब रसपान या सोमरस पान होता तो और ज्यादा भीड़ होती पर यह तो चायपान वह भी बकरे की वो कि तरह का चाय इसी लिए ५० हजार लोगों को ही बुलाया गया था । यदि सोमरस पान होता तो ५ लाख को बुलाया जाता और जबरदस्ती १५ लाख लोग आ धमकते । क्योंकि फ्री मे मिलने वाला कबाब खाना और शराब पी कर बहकना और बकना किसे पसंद नहीं है ?
अब देश की सब से बड़ी पार्टी जो दो तिहाई के शानदार बहूमत से देश में शासन कर रही है । उस के लिए तो यह सत्तापान है । बांकी लोगों के लिए भले ही यह चायपान हो । अब पांच साल तक नेकपा एमाले और उस के मतियार ए माओवादी सत्तापान करती रहेगी और यह सिलसिला चलता रहेगा । क्यों कि अभी ईन के दो तिहाई के कारण पांचो उगंली घी मे और सर कडाही में है । अब जो कडाही या चूल्हे में ही बैठ गया हो उस के लिए चायपान क्या और जलपान क्या ? इसी लिए तो नेकपा एमाले के हनुमानों ने चाय मे चाय में केला डुबा कर खाने का आईडिया निकाला । त्रेतायुग के रामभक्त हनुमान नें रावण के बगीचे में घुस कर केले के वृक्ष को हिला कर भूमि में पसार दिया था ।
अब पीएम ओली के भक्त आधुनिक हनुमानों ने चाय में डाल कर केला खा लिया । अब बेचारे कहां जाए केले के पेड को खोज कर उस को हिलाने और गिराने ? ईसी लिए केले को ही चाय में गिरा कर आत्म सन्तुष्टि ले ली । इस चायपान समारोह में भी हैसियत या औकात के अनुासार ही चाय के साथ मिठाई बांटी जा रही थी । जैसे विशिष्ट लोगों के लिए चाय के साथ समोसा, नमकनि और पेडा था तो साधारण लोगों के लिए चाय और केला बांटा जा रहा था । अपनी हैसियत के अनुसार लाईन में लगो और पेडा या केला हजम कर जाओ , अब जो पेडा खाने लायक हैसियत के हैं वह केला भले ही खा लें पर केला खाने वाले हैसियत के लोगों को पेडा खाना तो क्या उसे देखना और सूघंना भी मना है ।
यह चायपान कार्यक्रम हर साल होता है । नेकपा एमाले सत्ता में रहे या न रहे उस का चायपान चलता रहता है । चाय की दुकान पर बैठ कर साधारण लोगों द्धारा हर दिन पी जाने वाली चाय को कोई नहीं पूछता । पर यह नेकपा एमाले जो देश की सब से बड़ी पार्टी है । और सोने पे सुहागा वाली यह है कि यह दो तिहाई से जीत कर देश और जनता पर शासन कर रही हैं । ईसी लिए नेकपा एमाले कि पौ बारह है । वह अभी दूसरी पार्टी और उस के नेता को किसी गिनती में भी नहीं रखती । अभी भी वह ीहाल है । ईस के पार्टी के वानर सेना दूसरी पार्टी के लगूंर सेना से छीना झपटी कर रहे हैं । दोनो अपने, अपने आकाओं को अच्छा बता कर उनका भजन गा रहे हैं और भोजन डकार रहे हैं । दुख की बात यह है कि नेपाल के किसी भी राजनीतिक पार्टी में चाणक्य जैसे दूरदर्शी और लायक नेता का अभाव है । ईसी लिए यहां कोई चन्दगुप्त जैसा राजनेता पैदा नहीं होता ।
राजनीति की छद्मवेषी और गुप्त बाते जितनी चायऔर पान की दुकान पर होती है या पता चलती है उतनी कहीं और नहीं होती । चाय की दुकान पर चायपान करने जाने वाले का मनसाय ही यही होता है कि वहां कुछ नयीं बातें पताचलेगी और दिल बहल जाएगा । इसी लिए बडी ही नेक और दरिया दिल राजनीतिक पार्टी नेकपा एमाले नें चायपान का आयोजन किया था । जहां आए हुए मेहमानों से कुछ भीतर की खुसर, फुसर या उठापठक की बाते पता चलेगी या उगलवाई जाएगी । कौन कहां कौए की तरह चोंच मार रहा है या सिर्फ काँव काँव ही कर रहा है । कौन नेता या मंत्री कितना पानी में है या पानी से निकल चुका है या उबडूब हो रहा है यह सब ऐसे ही चायपान समारोह में जाने से पता चलता है । बाल की खाल निकालने के लिए ही चायपान का आयोजन किया जाता है । और किसी बेचारे का यहीं पर सर से बाल ही नहीं बिग भी उड कर गंजा हो जाता है ।