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जीवनदायिनी नदियाँ, नमामि गंगे की आवश्यकता नेपाल में भी -३ : मुरलीमनोहर तिवारी

मुरलीमनोहर तिबारी (सिपु), हिमालिनी, अंक अप्रील 2019 |



बागमती नदी

बागमती नदी, नेपाल और भारत की एक बहुत महत्त्वपूर्ण नदी है । इस नदी के तट पर काठमांडू अवस्थित है । नेपाल का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल पशुपतिनाथ मंदिर भी इसी नदी के तट पर अवस्थित है । इस नदी का उद्गम स्थान बागद्वार है । काठमाण्डौ के टेकु दोभान में विष्णुमति नदी इसमें समाहित होती है । नेपाली सभ्यता में इस नदी का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है । इस नदी के किनारे में अवस्थित आर्य घाटौं पर राजा से लेकर रंक तक सभी का अन्तिम संस्कार किया जाता है ।

बागमती नदी हिमालय की महाभारत श्रेणियों में नेपाल से निकलती है । यह नदी नेपाल में लगभग 195 किलोमीटर की यात्रा तय कर के बिहार के सीतामढ़ी जिले में समस्तीपुर(नरकटियागंज रेल लाइन पर स्थित ढेंग रेलवे स्टेशन के 2 . 5 किलोमीटर उत्तर में भारत में प्रवेश करती है । बिहार में इस नदी की कुल लम्बाई 394 किलोमीटर है । नेपाल में इस नदी का कुल जल ग्रहण क्षेत्र 7884 वर्ग किलोमीटर है । ढेंग और बैरगनियाँ स्टेशन को जोड़ने वाली रेल लाइन पर बने पुल संख्या 89, 90,91, 91a और 91B से होकर यह नदी दक्षिण दिशा में चलती है जहाँ लगभग 2 . 5 किलोमीटर नीचे भारत का जोरियाही नाम का पहला गाँव पड़ता है । यहाँ से छ किलोमीटर दक्षिण चल कर बागमती खोरीपाकर गाँव में आती है । ढेंग से खोरीपाकर की दूरी साढेÞ बारह कि.मी । है और यहीं से थोड़ा और नीचे चल कर देवापुर गाँव के पास उसके दाहिने किनारे पर लालबकेया नदी में मिलती है । इस लम्बाई में नदी की प्रवृत्ति पश्चिम से होकर बहने की है मगर लालबकेया से उसका संगम स्थल प्रायः स्थिर रहता है । नदी की इस लम्बाई में बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं हुई है यद्यपि उसकी एक पुरानी धारा का जिक्र और रेखांकन जरूर मिलता है । बिहार के तराई क्षेत्रों में प्रवेश करने के बाद यह नदी बाढ़ के दिनों में अक्सर अपना प्रवाह मार्ग बदल लेती है । इस नदी में बाढ़ के कारण बिहार के सीतामढ़ी, मुजफÞ्Þरपुर, दरभंगा और मधुबनी जिलों में काफÞी क्षति पहुँचाती है । इसकी सहायक नदियों में लाल बकेया नदी, लखनदेई नदी, चकनाहा नदी, जमुने नदी, सिपरीधार नदी, छोटी बागमती, कोला नदी आदि हैं । कोसी परियोजना के अन्तर्गत बागमती नदी को भी नियन्त्रित कर इस पर पुल और नये बाँध बनाए गए हैं । यह कमला नदी से मिलकर कोसी नदी में मिल जाती है । तराई के मैदानों को पार करती हुई बागमती नदी बिहार में प्रवेश करती है और 360 किलोमीटर दूरी तय करने के बाद दक्षिण पूर्व की ओर बहती हुई बूढ़ी गंडक नदी में मिल जाती है ।

बिहार में इस नदी की कुल लम्बाई 394 किलोमीटर तथा जल ग्रहण क्षेत्र लगभग 6,500 वर्ग किलोमीटर होता है । इस तरह नदी उद्गम से गंगा तक कुल लम्बाई लगभग 589 किलोमीटर और कुल जल ग्रहण क्षेत्र 14,384 वर्ग किलोमीटर बैठता है । बिहार के द्वितीय सिंचाई आयोग की रिपोर्ट (१९९४) के अनुसार बागमती के ऊपरी क्षेत्र काठमाण्डू के आस पास सालाना औसत बारिश लगभग ज्ञद्धटण् मिलीमीटर होती है जबकि चम्पारण में 1392 मि.मी. , सीतामढ़ी में ज्ञज्ञडद्ध मि.मी. , मुजफ्फरपुर में 1184 मि.मी., दरभंगा में 1250 मि.मी. और समस्तीपुर में 1169 मि.मी. होती है ।
बागमती की सहायक नदियां ः विष्णुमति नदी, लखनदेई नदी, लाल बकेया नदी, चकनाहा नदी, जमुने नदी, सिपरीधार नदी, छोटी बागमती, कोला नदी ।

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गण्डकी नदी

गण्डकी नदी, नेपाल और बिहार में बहने वाली एक नदी है जिसे बड़ी गंडक या केवल गंडक भी कहा जाता है । इस नदी को नेपाल में शालीग्रामी, शालिग्राम, नारायणी और सप्तगण्डकी कहते हैं । यूनानी के भूगोलवेत्ताओं की कोंडोचेट्स (प्यलमयअजबतभक)तथा महाकाव्यों में उल्लिखित सदानीरा भी यही है ।
गण्डकी हिमालय से निकलकर दक्षिण पश्चिम बहती हुई भारत में प्रवेश करती है । त्रिवेणी पर्वत के पहले इसमें एक सहायक नदी त्रिशूलगंगा मिलती है । यह नदी काफी दूर तक उत्तर प्रदेश तथा बिहार राज्यों के बीच सीमा निर्धारित करती है । इसकी सीमा पर उत्तर प्रदेश का गोरखपुर जिला पड़ता है । बिहार में यह चंपारण, सारण और मुजफ्फरपुर जिलों से होकर बहती हुई 192 मील के मार्ग के बाद पटना के संमुख गंगा में मिल जाती है । इस नदी की कुल लम्बाई लगभग 1310 किलोमीटर है ।
विगलित हिम द्वारा वर्ष भर पानी मिलते रहने से यह सदावाही बनी रहती है । वर्षा ऋतु में इसकी बाढ़ समीपवर्ती मैदानों को खतरे में डाल देती है क्योंकि उस समय इसका पाट 2-3 मील चौड़ा हो जाता है । बाढ़ से बचने के लिए इसके किनारे बाँध बनाए गए हैं । यह नदी मार्ग परिवर्तन के लिए भी प्रसिद्ध है । इस नदी द्वारा नेपाल तथा गोरखपुर के जंगलों से लकड़ी के लट्ठों का तैरता हुआ गट्ठा निचले भागों में लाया जाता है और उसी मार्ग से अनाज और चीनी भेजी जाती है । त्रिवेणी तथा सारण जिले की नहरें इससे निकाली गई हैं जिनसे चंपारन और सारण जिले में सिंचाई होती है ।
बूढ़ी गंडक या सिकराना इस नदी की प्राचीन धारा है जो मुंगेर के संमुख गंगा में मिलती है । गंडक नदी, ’नारायणी’ नदी भी कहलाती है । यह मध्य नेपाल और उत्तरी भारत में स्थित है । यह काली और त्रिशूली नदियों के संगम से बनी है, जो नेपाल की उच्च हिमालय पर्वतश्रेणी से निकलती है । इनके संगम स्थल से भारतीय सीमा तक नदी को नारायणी के नाम से जाना जाता है । यह दक्षिण पश्चिम दिशा में भारत की ओर बहती है और फिर उत्तर प्रदेश बिहार राज्य सीमा के साथ व गंगा के मैदान में दक्षिण पूर्व दिशा में बहती है । यह 765 किलोमीटर लम्बे घुमावदार रास्ते से गुजÞरकर पटना के सामने गंगा नदी में मिल जाती है । बूढ़ी गंडक नदी एक पुरानी जलधारा है, जो गंडक के पूर्व में इसके समानांतर बहती है । यह मुंगेर के पूर्वोत्तर में गंगा से जा मिलती है ।

गंडक परियोजना

यह बिहार और उत्तर प्रदेश की संयुक्त नदी घाटी परियोजना है । ज्ञढछढ के भारत नेपाल समझौते के तहत इससे नेपाल को भी लाभ है । इस परियोजना के अन्तर्गत गंडक नदी पर त्रिवेणी नहर हेड रेगुलेटर के नीचे बिहार के बाल्मीकि नगर मे बैराज बनाया गया । इसी बैराज से चार नहरें निकलतीं हैं, जिसमें से दो नहरें भारत मे और दो नहर नेपाल में हैं । यहाँ १५ मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है और यहाँ से निकाली गयी नहरें चंपारण के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से की सिंचाई करतीं है ।
वाल्मीकि नगर का बैराज ज्ञढटढ(ठण् में बना । इसकी लम्बाई ठद्धठ । घठ मीटर और ऊँचाई ढ । डज्ञ है । इस बैराज का आधा भाग नेपाल में है । द्दछट । टड किमी पूर्वी नहर से बिहार के चम्पारण, मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिलों के ट । टड लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई होती है । इसी नहर से नेपाल के पर्सा, बारा, रौतहट जिलों के द्धद्द,ण्ण्ण् हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है । मुख्य पश्चिमी नहर से बिहार के सारण जिले की द्ध । डद्ध लाख भूमि तथा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, महाराजगंज, देवरिया, कुशीनगर जिलों के घ । द्धद्ध लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है । इस नहर से नेपाल के भैरवा जिले की ज्ञट,टण्ण् हेक्तर भूमि की सिंचाई होती है ।
ज्ञद्ध वें किमी पर ज्ञछ मेगावाट क्षमता का एक जलविद्युत संयन्त्र बनाकर नेपाल सरकार को भेट किया गया है । यह नेपाल के तराई क्षेत्र की विद्युत आवश्यकताओं की पूर्ति करता है ।

यह परियोजना बहुत पुरानी है । गंडक नहर परियोजना के लिए स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं महाराजगंज के तत्कालीन सांसद शिब्बन लाल सक्सेना ने अथक प्रयास एवं लंबा अनशन किया । उन्होंने ज्ञढछठ में ज्ञज्ञ प्रधानमन्त्री को ज्ञज्ञ पत्र लिखे । उस समय नेपाल व बिहार तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिले बाढ़ व सूखा की त्रासदी झेल रहे थे । नहरों के न होने के कारण नेपाल के बी गैप नारायणी नदी पर गंडक परियोजना स्वीकृत कराने के लिए अनुरोध किया । पत्राचार के बाद भी जब कोई परिणाम नहीं निकला तो उन्होंने संसद भवन के सामने ज्ञढछठ में आमरण अनशन शुरू कर दिया, जो द्दड दिन तक चला । उस दौरान केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी । उनके अनशन की गूंज से सरकार जागी । प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप के बाद गंडक परियोजना के लिए स्वीकृति मिल गई । इसके बाद प्रो. शिब्बन लाल ने सरकार को नहर के लिए किसानों से जमीन दिलवाने की भी पहल की । इसके लिए वे गांव गांव गए, किसानों को तैयार किया और उचित मुआवजा दिलाकर जमीन हस्तान्तरित कराई । इससे परियोजना पर काम शुरू हो सका । इससे नेपाल, बिहार तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में नहरों का जाल बिछा और सिंचाई की क्षमता ज्ञडडण्ण् क्यूसेक तक जा पहुंची । आज इसी परियोजना के कारण देवरिया, महराजगंज, कुशीनगर व पश्चिमी चंपारण के इलाकों के खेत लहलहा रहे हैं ।

इतिहास की एक सच्चाई यह भी है कि स्वीकृति मिलने के बावजूद परियोजना को मूर्त रूप देने में सबसे बड़े बाधक स्थानीय जमींदार बन गए थे । प्रो । लाल ने जमींदारों से भी मुकाबला किया और जमीन देने के लिए काफिले के साथ उनके गांवों का दौरा किया ।
जवाहर लाल नेहरू ने नेपाल के तत्कालीन राजा महेन्द्र विक्रम शाह से ज्ञढछढ में समझौता किया । समझौते के तहत पश्चिमी मुख्य गंडक नहर और वाल्मीकि नगर बैराज का निर्माण नेपाल के भूक्षेत्र से होना था । भौगोलिक और तकनीकी कारणों से नेपाल राष्ट्र की जमीन लेना गंडक नहर प्रणाली के निर्माण के लिये ज्यादा उचित साबित हुआ । इस जमीन के बदले गंडक नदी नदी के दायें तट पर नेपाल सीमा तक के भूभाग को बाढ़ और कटाव से बचाने की जिम्मेदारी भारत के समझौते में समावेशित है । इसके तहत ‘ए गैप’ बाँध की लम्बाई द्द।छ कि.मी । तथा ‘बी गैप’ बाँध की लम्बाई ठ।द्दघ कि.मी है । नेपाल बाँध की लम्बाई ज्ञद्द कि.मी और लिंक बाँध की लम्बाई द्द।छ कि.मी है जिसका निर्माण उत्तर प्रदेश सिंचाई और जल संसाधन विभाग खंड द्द महाराजगंज ने कराया है । इस नहर की शीर्ष प्रवाह क्षमता ज्ञडडण्ण् क्यूसेक है । मुख्य नहर से बिहार प्रदेश भी द्दछण्ण् क्यूसेक पानी लेता है ।

मेची नदी

मेची नदी, नेपाल और भारत से होकर बहने वाली एक नदी है । यह महानन्दा नदी की सहायक नदी है । यह नेपाल में महाभारत पर्वतश्रेणी से निकलती है और नेपाल से प्रवाहित होकर भारत और नेपाल की सीमा बनाते हुए बिहार राज्य में प्रवेश करती है, जहाँ किशनगंज जिले में महानन्दा नदी से मिल जाती है । हाल ही में भारत सरकार ने नेपाल के साथ मिलकर इसपर एक पुल बनाने का निर्णय लिया, इस पुल के निर्माण की अनु‍मानित लागत ज्ञछड । टछ करोड़ रूपये है, जिसे एशियाई विकास बैंक से प्राप्‍त ऋण द्वारा भारत सरकार की ओर से उपलब्‍ध कराया जाएगा । यह नया पुल काकरविट्टा (नेपाल) से पानीटंकी बाईपास (भारत) तक राष्‍ट्रीय राजमार्ग संख्‍या घद्दठबी की ज्ञछण्ण् मीटर लम्‍बाई के उन्‍नयन कार्य का हिस्‍सा है, जिसमें डद्दछ मीटर लंबा छह लेन वाला सम्‍पर्क मार्ग शामिल है । मेची पुल भारत में एशियाई राजमार्ग ण्द्द का अंतिम बिंदु है, जो नेपाल की ओर जाता है तथा नेपाल के साथ महत्‍वपूर्ण सम्‍पर्क कायम करता है ।

राप्ती नदी

राप्ती नदी (या पश्चिमी राप्ती) मध्य नेपाल के दक्षिणी भाग की निचली पर्वतश्रेणियों में प्यूठान नगर के उत्तर से निकलती है । गंगा के मैदान में उतरने से पूर्व यह कुछ दूर तक शिवालिक पर्वत के समांतर पश्चिम दिशा में बहती है और मैदानी भाग में पूर्व एवं दक्षिण(दक्षिण पूर्व दिशाओं में प्रवाहित होकर बरहज नगर (जिला देवरिया, उत्तर प्रदेश) के समीप घाघरा नदी से मिलती है । यह उत्तर प्रदेश के बहराइच, गोंडा, बस्ती एवं गोरखपुर जिलों के धान एवं गन्ना उत्पादक क्षेत्रों के मध्य से होकर बहती है । बाँसी एवं गोरखपुर इस नदी पर स्थित मुख्य नगर हैं । इसकी सहायक नदियों में मुख्यतः उत्तर के तराई प्रदेश से निकलनेवाली छोटी छोटी अनेक नदियाँ हैं । नदी की कुल लंबाई ६०० किलोमीटर है । यह गोरखपुर से नीचे की ओर बड़ी नौकाओं द्वारा नौगम्य है ।

पूर्वी राप्ती

पूर्वी राप्ती एक छोटी सी नदी है जो नेपाल के चितवन घाटी (भीतरी तराई) से पश्चिम की ओर प्रवाहित होकर अन्ततः भारतीय सीमा से थोड़ा पहले नारायणी (गण्डकी) में मिल जाती है ।

रोहिणी नदी

रोहिणी अथवा रोहिणी नदी का उद्गम नेपाल के लुम्बिनी क्षेत्र के रूपनदेई और कपिलवस्तु जिलों में शिवालिक पर्वत की चौरिया पहाडि़यों से होता है और यह दक्षिण की ओर बहते हुए भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है । गोरखपुर के पास यह राप्ती नदी में बायीं ओर से मिलती है जो इसके बाद गौरा बरहज में घाघरा में मिल जाती है तथा घाघरा बाद में गंगा में मिलती है ।
कुछ बौद्ध लेखों के अनुसार शाक्यों का नगर कपिलवस्तु और कोलियों का नगर कोलिय इसी रोहिणी नदी के दो किनारों पर स्थित थे । दोनों नगरों के कृषक खेतों की सिंचाई हेतु इस नदी के पानी का इस्तेमाल करते थे । एक साल वर्षा कम होने के परिणामस्वरूप सूखा पड़ने और धान की फसल के सूखना शुरू हो जाने पर दोनों नगरों के लोगों ने इसे अपने खेतों की ओर मोड़ने की इच्छा की । कोलिय के निवासियों ने कहा कि चूँकि दोनों किनारों के लोगों के इस्तेमाल भर का पानी मौजूद नहीं उन्हें एक बार नदी का पूरा पानी अपने खेतों को मोड़ने से धान की फसल पकने तक जीवित रह सकती है । दूसरी ओर कपिलवस्तु के लोगों ने तर्क दिया कि इस तरह वे पानी से वंचित रह जायेंगे और निश्चय ही उनकी फसलें बर्बाद हो जाएँगी और उन्हें दूसरों से अन्न खरीदना पड़ेगा । उन्होंने कहा कि वे भोजन खरीदने के लिये अपनी संपत्ति और धन दूसरे किनारे के लोगों को व्यापार मूल्य के रूप में चुकाने के लिये तैयार नहीं हैं । दोनों तरफ के लोग पानी चाहते थे और उनके बीच आरोप–प्रत्यारोप और खराब भाषा के प्रयोग से काफÞी दुर्भावना उत्पन्न हो गयी । जो झगड़ा किसानों के बीच आरंभ हुआ था अंततः मंत्रियों से होते हुए शासकों तक पहुँचा और दोनों ओर के लोग युद्ध करने के लिये तैयार हो गए । बौद्ध परंपरा यह मानती है कि सिद्धार्थ गौतम ने कपिलवस्तु लौटने पर इस नदी को पर किया था ।

काली नदी

काली नदी, जिसे महाकाली, कालीगंगा या शारदा के नाम से भी जाना जाता है, भारत के उत्तराखण्ड राज्य में बहने वाली एक नदी है । इस नदी का उद्गम स्थान वृहद्तर हिमालय में ३,६०० मीटर की ऊँचाई पर स्थित कालापानी नामक स्थान पर है, जो उत्तराखण्ड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में है । इस नदी का नाम काली माता के नाम पर पड़ा जिनका मंदिर कालापानी में लिपुलीख दर्रे के निकट भारत और तिब्बत की सीमा पर स्थित है । अपने उपरी मार्ग पर यह नदी नेपाल के साथ भारत की निरंतर पूर्वी सीमा बनाती है, जहां इसे महाकाली कहा जाता है । यह नदी उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में पहुँचने पर शारदा नदी के नाम से भी जानी जाती है । काली नदी का झुकाव क्षेत्र लगभग १५,२६० वर्ग किलोमीटर है, जिसका एक बड़ा हिस्सा (लगभग ९,९४३ वर्ग किमी) उत्तराखण्ड में है, और शेष नेपाल में है । काली नदी उत्तराखण्ड राज्य की चार प्रमुख नदियों में एक है, और इस कारण इसे उत्तराखण्ड के राज्य चिह्न पर भी दर्शाया गया है । यह नदी कालापानी में ३,६०० मीटर से उतरकर २०० मीटर ऊँचे तराई मैदानों में प्रवेश करती है, और इस कारण यह जल विद्युत उत्पादन के लिए अपार संभावना उपलब्ध कराती है । भारतीय नदियों को इंटर लिंक करने की परियोजना के हिमालयी घटक में कई परियोजनाओं के लिए इस नदी को भी स्रोत के रूप में प्रस्तावित किया गया है । सरयू नदी काली की सबसे बड़ी सहायक नदी है । कूटी, धौलीगंगा, गोरी, चमेलिया, रामगुण, लढि़या अन्य प्रमुख सहायक नदियां हैं । तवाघाट, धारचूला, जौलजीबी, झूलाघाट, पंचेश्वर, टनकपुर, बनबसा तथा महेन्द्रनगर इत्यादि नदी के तट पर बसे प्रमुख नगर हैं ।



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