Fri. Dec 13th, 2024
himalini-sahitya

गर्व से कहो ‘हम नेपाली हैं’:
मुकुन्द आचार्य

मैं आजकल अपनी टूटी फूटी काया की मर्मत सम्भार के लिए चोरी करता हूँ। प्रातः भ्रमण के बहाने सुबह अन्धेरें में प्रकृति के भण्डार से अक्सीजन चुराया करता हूँ। इसी बहाने ‘मर्निङ वाकिङ्’ करता हूँ- ऐसे लोगों पर धौंस भी जमाने का मौका मिल जाता है।
इस अक्सीजन चेारी के दरम्यान एक रोज सुबह से ही शराब का कुल्ला करनेवाला मित्र मिल गया। मैं जैसे हवा पी रहा था, वह तरल -शराब) पी रहा था। मुझसे रहा नहीं गया। पूछ बैठा, क्या बात है प्यारे – क्यों अपनी जान के पीछे लठ्ठ लेकर दौडÞ रहे हो – इस तरह सुबह से शुरु हो जाओगे, तो बहुत जल्द दुनिया से कूच करते नजर आओगे !
वह बुरी तरह बौखलाया और बड मुश्किल से शायराना अन्दाज में बोलाः-
गर्दिशे दहर के सताए हैं
इसलिए मयकदे में आए हैं !
-पाठकों की सुविधा के लिए इसका अर्थ बता दूँः- मैं संसारचक्र द्वारा सताया गया हूँ, इसीलिए मधुशाला में आया हूँ।)
मैंने उसे समझाने की इमानदार मगर नाकाम कोशीस की, इस तरह जिन्दंगी में निराश नहीं होते। भगवान की कृपा से तुम्हें मानवदेह मिला है, वह भी इस पुण्यभूमि नेपाल में। यह तो बुहत सौभाग्य की बात है। गर्व से कहो, हम नेपाली है !
लाल-लाल आँखों से मुझे तडÞेरते हुए पियक्कड यार बोला, सुबह-सुबह तुम आ गए प्रवचन देने ! मेरा सारा नशा काफूर हो गया ! अब मुझे फिर शराब पर अतिरिक्त पैसे खर्च करने होंगे। यह ‘एक्स्ट्रा’ पैसा तुम्हें ‘पे’ करना होगा।
गिलास को एक ही बार में खाली करते हुए वह बोला- अरे यार नेपाली हैं इसीलिए तो शराब पी रहे हैं और बेमतलव की जिन्दगी जी रहे हैं। माँ-बाप ने घर-खेत बेचकर मुझे पढÞाया। तुम जैसे दोस्त ने आदर्श की हवा देकर मुझे आगे बढÞाया, मगर मैंने क्या पाया – एक ढंग की नौकरी भी नहीं मिली। यार, यह शराब तो राष्ट्रिय पेय है। आओ, तुम भी कुछ पी ले !। र्स्वर्ग में भी लोग सोमरस पीते हैं।
मैं भडÞका, जैसे लाल कपडÞा देखकर साँडÞ भडÞकता है, तूँ पीने को कहता है – मैं तो यहाँ बैठूं भी नहीं। तूँ पढÞा लिखा गधा है किशनचन्दर का जैसा। गर्व से कहो हम नेपाली हैं। यहाँ उन्नति करने के लिए बहुत सारे अवसर हैं। दो-चार महिने के बाद यहाँ सरकार बदलती रहती है। किसी पार्टर्ीीी पूँछ पकडÞ लो। मंत्री, प्रधानमन्त्री तो क्या तुम राष्ट्रपति भी बन सकेत हो। इन पदों के लिए किसी योग्यता की जरुरत नहीं है। समाज के नकारा लोग गुण्डे, मवाली, तस्कर सब के सब राजनीति का ढाल पहनकर मजे मार रहे हैं। इसीलिए तो मैं कहता हूँ- गर्व से कहो, हम नेपाली हैं ! तुम चूतीए सुबह से शराब पीने बैठ जाते हो, तब कैसे बात बनेगी।
उसने बिल्कुल बुरा नहीं माना मेरी बातों का और फरमाया,
शीशा रहे बगल में जामे शराब लब पर
साकी यही मजा है, दो दिन की जिन्दगी का !
मैने कुछ डाँटने के लहजे में समझया, यार नेपाल में एक और बडÞा फायदा है। यहाँ भ्रष्टाचार का विरोध करनेवाला अन्ना फन्ना भी कोई नहीं है। किसी भी महकमे में घुस जाओ और लूटते रहो। हर्रर्ेेगे न फिटकिरी रंग चोखा। लूटने खसोटने के लिए हर महकमा और मौका खुबसूरत है। यार, यहाँ तो गुण्डे भी ढंग के नहीं हैं। विदेशों से गुण्डे और अपराधी यहाँ आकर अपना करतब दिखाते हैं और उडÞन छू हो जाते हैं। अपराध के लिए यह भूमि बहुत उर्बरा है। इसलिए, गर्व से कहो हम नेपाली हैं।
उसकी नस नस में खून की जगह शराब दौडÞ रही थी। पीते-पीते हीं वह कर्ुर्सर्ीीे नीचे पके हुए आम की तरह लुढÞक पडÞा। मैं तो दहल हीं गया, साला खलास हो गया क्या ….!
मगर कुछ ही क्षण में उसने धीरे-धीरे गालिब का एक शेर फरमाकर मुझे वही ढेÞर कर दियाः
कहते हैं, जीते हैं, उम्मीद पै लोग
हम को जीने की भी उम्मीद नहीं !
ऐसे नाउम्मीद आदमी से क्या उम्मीद रखना। फिर भी जाते जाते उसकी पीठ थपथपाते हुए मैं प्राप्तः भ्रमण में आगे बढÞ लिया। कुछ आगे जाने पर मैंने उसे चिल्लाते हुए सुना- गर्व से कहो हम नेपाली हैं ! स्साला !!

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