Thu. Mar 28th, 2024

औरत पहले से आधा होती है!मुसलमान,हिन्दू,पारसी, क्रिश्चियन ,यहूदी जो कहो. पढिए संजय सिंह की कहानी

संत्रास
(कहानी)
संजय सिंह
उसे लगा कि कोई उसका पीछा कर रहा है।उसे कुछ बेचैनी सी हो रही थी।कोई आदमी था, जो प्रतिच्छाया की तरह उसके साथ-साथ चल रहा था।पहली बार पाॅर्क में ऐसा लगा था।फिर वेरायटी चौक से आगे खलील रोड के पास ।भीड़ में रपट कर वह उसके पास आ गया था।
तभी वह आगे बढ़ गयी थी।।
अगर आपको ऐसी आशंका होती है, तो उस डर और दुश्चिंता के बीच आपका दिमाग भी अपना काम करता है।अपने वहम को समझने के लिए वह एग्जीबिशन हाॅल के बाहर रुकी, पर नहीं वह आदमी सचमुच उसकी ओर…
उसने रिक्शेवाले को हाथ दिया और अपने रेसीडेंस की ओर चल पडी।उसे यह सोच कर झुरझुरी सी हुई कि कहीं वह आदमी भी …पर उसने पलट कर देखा ही नही!
उसने वापस आकर अपने कमरे को खोला और फिर अन्दर से लाॅक कर  बैठ गयी सोफे पर…भीड़… गर्मी .. उमस…आर्द्रहवाएँ…पसीने की गंध…चिपचिपाहट और घुटन!अब अकेले कहीं निकलना और जीना भी मुहाल हो गया, नहीं वह पुलिस को बोल सकती थी, पर तब उसे भी परेशान होना होता!
उसने पानी पीकर सिर को झटका दिया, आखिर वह आदमी क्या चाहता होगा उससे?उसने कुछ याद करने का प्रयास किया…गोरा रंग कद्दावर चेहरा…मुँह पर चेचक के दाग…..भेड़िया जैसी जलती आँखें !लोगों की झाड़ीनुमा भीड़ में सरकता हुआ!
वह कुछ उद्विग्न हुई आखिर चक्कर काटने का मतलब?कुछ तो होगा उसके मन में…? उसके मन की पकड से मुक्त होने के लिए
वह उठ कर बाथरूम चली गयी और नहाने लगी ।देर तक नहाती रही।बाई  के लगातार दरवाजे पीटने पर  उसने जल्दी -जल्दी दरवाजा खोला।
“सारा पानी नहाने में खर्च कर दिया?” बाई ने हँस कर अपनी जबान में कहा।
“सुनो ,पानी तो फिर भी आ जाएगा।”
“जी मिस!”
“तुम अकेले रहती हो या…?”
“नहीं मैम हमारा परिवार है…”
“मैम नहीं ,मिस बोलो।” वह बोली,” रोज भूल जाती हो।”
“साॅरी मिस!”
“तुम्हारे देश का कानून कैसा है?”
“बहुत टाइट मिस!” उसने चौंक कर कहा,” अभी फोन करो ,अभी पुलिस हाजिर। कुछ हुआ क्या?”
“नहीं तो!”
“तब ?”
“वैसे।!” वह हँसी,”चलो तुम काम करो।
जी!” उसने भी हँस कर कहा,” आप निकाह कर लो , बस सेफ!”
“में विवाह नहीं करुँगी।”
क्यों ?”
मेरा मन।”
“तब दिक्कत है।”
काहे?”
“है न।
“तो तुम्हारे धर्म में करुँ?
“नहीं, अपने में करो!
“उधर कोई मिला नहीं।”
“…तो फिर कैम्प में देखो।” वह बोली,” तुम डाॅक्टर हो, तो…”
“अच्छा,चलो तुम अपना काम करो बाई!” वह कुछ उकतायी।
“उतना बाहर मत जाओ मिस!” वह बोली,” तुम लोग अपने लोगों से मतलब रखो…” वह जाने क्या बोल गयी।
“तुम लोगों का भी इलाज होता है न?”
“वो अलग बात है।”
बाई के जाने के बाद हल्का खाना लेकर वह टी.वी देखने लगी।नाइट में ड्यूटी आॅफ थी उसकी। पराया देश।अकेला जीवन।उदास और…।फौजी कैम्प के पास का मिशन अस्पताल में डयूटी थी उसकी।उसका परिवार हिन्दू था,कृष्णगंज में।फिर उसके पिता ने क्रिश्चियन धर्म स्वीकार कर लिया।प्रभु यीशू का धर्म! अब वह अगर…नहीं कभी-कभी उसे लगता है, उसमें आधा हिन्दू बचा हुआ है। उसने हमेशा महसूस किया है ऐसा ।औरत पर तो यह और फिट है, वह पहले से आधा होती है!मुसलमान,हिन्दू,पारसी, क्रिश्चियन ,यहूदी जो कहो… कोई न कोई पीछा करेगा …औरत और नदी का कोई धर्म नहीं, बस एक जिस्मानी वजूद है उसका…
उसने बटन दबाया।न्यूज चैनल।कोई भयानक न्यूज!कुछ लोग, नहीं कुछ कट्टर लोग…एक भारी भीड़ के सामने…एक लड़की  को कोडे से पीट रहे थे…लगातार..वहीं उस डेजर्ट में उसकी बगल में एक युवा को प्रेम करने के संगीन जुर्म में रेत में जिन्दा दफ्न किया जा रहा था…उसकी घिग्घी बँध गयी।उसने टी.वी को आफ कर दिया…निकाह से पहले पाप और वही सब कुछ उसके बाद पाक…यह क्या पागलपन है?ओह इतना इनह्यूमन कोई धर्म कैसे हो सकता है?…यह कुछ वहशी लोगों की अपनी पोलिटिक्स है धर्म और राज्यसत्ता को लेकर…दैट इज नाॅट रीयल थाॅट …टोटली फार्स है यह…तुमने उस लड़की को कोड़े मार कर इसलिए बचा रखा कि फिर से उसे भोगा जाए? क्या कानून है, …सिर्फ सत्ता का उपभोग…माल असबाब के साथ औरत…प्रभु अपने इस संसार पर दया करो।
उसने प्रभु यीशू को याद किया और बेचैनी की नींद सो गयी।
सुबह फिर उसे बाई ने ही जगाया।
उसके पीछे बुके लेकर एक लड़का खड़ा था।
“क्या है?”
“बुके।”
“कहाँ से आया है?”
“नही मालूम!” लड़के ने बुके देते हुए कहा,” आप रिसीव कीजिए।”
“मैॆ नहीं लूँगी।”
“तो फिर मैं क्या करुँ?”
“ले लो मिस!” बाई बोली ,” फूल ही तो हैं।”
“जी”लड़के ने कहा,” मुझे और पार्सल की डिलीवरी करनी है।”
“रख दो ,वहीं कोने में।” घबराहट में दस्तखत करते हुए उसने कहा।अनजाने ही डर से उसकी हालत खराब थी, फिर उसने याद किया, तो लगा यह किसी दूसरे देश की घटना है, पर बुके… कहीं ?किसने भेजा और क्यों?फूल से नाजुक रिश्ते को क़त्ल करते हो और फिर तुम्हीं फूल भेजते हो ?किसने भेजा है यह फूल?कौन भेज सकता है…?
मोबाइल की घंटी बजी…
“तुम्हें फूल लेने में भी डर लगता है?”
“डरा कर दुनिया को जीतते हो।” वह मूड में बोली,” तो तुम्हारी हर चीज से डर लगेगा।”
“क्यों?”
“वह तुम जानो।”
” कल शाम में और रात  मेंं…
“सुनो वह सब मत सोचो ।”
“क्यों नहीं सोचूँ?”वह उदास होती हुई बोली,”कितनी अमानुषीय है यह दुनिया ?किसलिए है यह?”
“प्रेम के लिए।”
“झूठ!”
“स्वीट गर्ल!”राहुल ने कहा,”अब तुम लौट आओगी।नहीं, तो मैं ही आ जाऊँगा।अब मैं धर्म बदलने को राजी हूँ।”
“उसकी जरूरत नहीं!” उसने गहरे तंज से कहा,” यहाँ एक रिलिजन के लोग भी अपने लोगों पर जुल्म कर रहे हैं।खास कर औरत और बच्चों पर।तुम धर्म बदल कर उदार नहीं हो सकते।”
“तुम लौट आओ।”
“कांट्रैक्ट समाप्त होने के बाद।।”
फोन कट गया।
“….कहीं से लौटो, कहीं जाओ ।”हास्पिटल से लौट कर उसने सोचा,” मर्दों के लिए एक सेक्सुअल हब है दुनिया! “उसे जुगुप्सा सी हुई। तुम औरत हो इसलिए तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध एक कोई भी आदमी भी तुम्हारा पीछा करेगा …और मौका पाकर तुम्हारी आबरु को तार-तार कर देगा।बलात्कार की हद तक…डाॅक्टर रीटा को लगा बलात्कार शरीर का नहीं अात्मा का विखण्डन है…
और वह आदमी? आदमी को हो क्या गया है?औरत को वह शरीर के अलावे और कुछ क्यों नही समझता?
उसे याद आया काॅलेज के दिनों में एक काॅलेज के प्रोफेसर घोष साहब थे।वे कहते थे, देह के वृत में कुछ भी पाप नहीं होता…संस्कृति गढ़ी हुई होती है, इसलिए उसका नाश होता है।सैक्स एक प्रवृत्ति है,इसलिए इसलिए अमर है।डा.कर्णिका के साथ उनके अनैतिक सम्बन्धों की चर्चा थी।डाॅ कर्णिका ही क्यों?हर सेशन में वे किसी न किसी को भोग कर किसी प्रशिक्षु डाॅक्टर के गले में बाँध देते थे।।इसी खेल में उनकी हत्या भी हुई!मगर?आदमी की फितरत में कोई बदलाव नहीं आया।अभी भी लोग औरत को उपभोग की वस्तु समझते हैं…रोज जुल्मो-सितम की घटनाएँ…
उसे लगा,वह जिस अस्पताल में काम करती है,उसमें भी औरतों की दुर्दशा देखी जा सकती है… बच्चा पर बच्चा जनती औरतें माॅय गाॅड! पर उस समय वह केवल डाॅक्टर होती है!सेवा और दया भाव से भरी हुई!
…”राबिया तुम्हारे कितने बच्चे हैं?”उसने यूँ ही पूछा ।
“नौ मिस!”
“तो क्या तुम बकरी हो?”
“क्या बोली मिस?”
“मना काहे नहीं करती हो?”
“मैं फिर पेट से हूँ मिस!” वह बोली,” औरत के पास क्या राइट है मिस।आप लोगों के पास होगा।”
” वह कहीं नहीं है!”रीटा बोली,” बस थोड़ा-बहुत अंतर है।”
“काम भी, बच्चे भी और शुचिता भी और दण्ड भी !” वह बड़बड़ायी।
“क्या मिस ?”
“कुछ नहीं।”
“चलो जाओ,काम करो।”उसने कहा,” कल इमर्जेंसी में मेरी ड्यूटी है।सवेरे जाना है।…ऐसा है जितनी बारिश होती है यहाँ,उतने बच्चे जनती हो तुम लोग…यह सब बन्द होना चाहिए।”
“न बारिश रुकेगी और न बच्चे!” वह हँस पड़ी।डाॅक्टरनी रीटा भी।एक तरह से गिजगिजी और लिजलिजी जिन्दगी है औरत की।उसे घिन सी आ रही थी!
दिमाग में एक वहशियाना उन्माद ही एक विचार है उन लोगों के लिए!कुछ लोग उसे  धर्म कानून, तंत्र ,आदर्श और उदात्त विचारों के रैपर में  छिपा कर  करते है, तो कुछ लोग न्यूड और सबसे वर्गल रूप में!कितना तो लहू बहता है जुल्म की एक आँधी के बीतने में ? युद्ध ..युद्ध…युद्ध  पर किसलिए?इन्हें इतिहास के उस ध्वंस की कोई स्मृति क्यों नहीं है?क्यों एक सभ्य समाज को पूर्ण मानवीय होने से पहले वे उसे अपंग बना देते हैं?हजारों प्रेम और आदर्श मूल्यों की सामूहिक हत्या और जश्न…
उसे याद आया ,। बचपन में  स्कूल के दिनों में एक भजन का उसके मानस पर बड़ा  गहरा असर पड़ा था-
तेरा दिल तो इतना बड़ा है
इन्शा का दिल तंग है क्यों?
बाद में जब वह मिशन स्कूल आ गयी, तब भी उसके मानस पर गहरा असर रहता था इस प्रार्थना का।जीसस की इबाबत के समय भी लगता कि यह भजन उसके दिमाग में चल रहा हो!सेवा प्रेम और अमन!
डा भावना कहती थी काॅलेज के दिनों में,”डा.रीटा वासनाएँ नहीं मरती हैं ।इच्छा के रूप में उनका जन्म होता है, आत्मा का जन्म नहीं होता,यह झूठी फिलाॅस्फी है, देखना डा.घोष जी उठेंगे!”
“तो गाँधी क्यों नहीं?”
“वे नहीं जीयेंगे, भले हिटलर जी उठे।”
“मतलब?”
“उनमें इच्छाओं का अंत हो गया था!”डाॅ भावना विदुषी थींं।वह सही कहती थी, पर उसे दुख होता था।।उसे तब भी लगता था डा, भावना की बातों को  मानने से अच्छी संभावनाओं के सारे रास्ते बंद हो जायेंगे जबकि हमें इन संभावनाओं की राह के जले फूलों को भी सींचकर  हमेशा के लिए मरने नहीं देना है…जिन्दा रखना होगा।”
“हैलो?”
“कैसी हो?”
“सो जाओ राहुल।”
“किसी का प्रेम उससे दूर हो जाए ,तो वह सो कैसे सकता है।”राहुल ने कहा,” प्रभु यीशू ही मेरी वेदना को समझ सकते हैं…”
“प्रभु समस्त संसार की वेदना को समझते हैं!उनके यहाँ देर है अँधेर नहीं।”
“गाॅड ब्लेस यू!
गुड नाइट!”
अचानक रात के एक बजे के करीब ऐसा लगा जैसे कैम्प पर हमला हुआ हो। बम-बारुद के फटने से लेकर गोलियों की दुतरफा तड़तड़ाहटों से खिड़कियों और दरवाजों के काँच तक  दरकने लगे।दहशत और खौफ के अँधेरों के बीच चीख-पुकारों का अजीब हैरतअंगेज माहौल।लगभग आधा घंटा के बाद मुर्दनी सी खामोशी को चीरती हलचल और रौशनी।
सीढ़ियों पर भारी बूटों की आवाजें! दरवाजे पर घबड़ायी हुई दस्तकें! उपचार की इमर्जेंसी! मारे गए जवानों और आतंकवादियों के लहू के बीच कुछ घायल और चिथड़ेनुमा लोग।जिन्दगी की आखिरी लड़ाइयाँ लड़ते हुए…सुबह तक पूरा अस्पताल बैचैन रहा अपनी जिम्मेवारियों में।
…सुबह जब बमुश्किल वह लौटी, तो हड़बड़ी में छूट गए मोबाइल पर सैकड़ों काॅल्स थे…उसने भारी मन से मैसेज लिखा… हमला रेजीडेंशियल एरिया में नहीं होकर मिलिट्री कैम्प पर था…
फिर वह लेट गयी।आज राॅबिया भी नहीं आएगी।
वह बेहद थक गयी थी,दिलो दिमाग में अब भी गोलियाँ चल रही थीं।
बारह जवान शहीद हुए थे और पाँच हार्ड कोर आतंकवादी।राबिया के दो बेटे शाहिद और इम्तियाज भी।
…तो क्या इसीलिए ये बच्चे पैदा करते हैं…
डा.रीटा के घरवाले के रिक्वेस्ट पर भारत सरकार के प्रयास के कारण उसकी वापसी की याचिका स्वीकृत हो गयी थी। वह खुश तो थी, पर भीतर तक गहरी पीड़ा समायी हुई थी।
फिर बारिश हो रही थी।अचानक आर्मीवाले की आमद हुई।उसे आॅफिस की कुछ औपचारिकताओं के लिए तैयार होना पड़ा।
आॅफिस में आर्मी के उच्चाधिकारी और इंटेलीजेंस के चीफ बैठे हुए थे।उसके बैठने के बाद एक आॅफीसर ने पूछा,” राबिया को जानती हैं आप?”
“जी सर!”
“कैसे?”
“मैंने आर्मी के आॅफिस में ही एक मेड के लिए अप्लीकेशन दिया था…फिर एन.जी.ओ.के माध्यम से उसे रखवाया गया…”डर और घबड़ाहट के साथ कहा उसने।
“उसी की निशानदेही पर ये हमले हुए।”अबतक अखबार पढ़ रहे इंटेलीजेंस चीफ ने चेहरा पेज से हटाते हुए कहा!
हू-ब-हू वही! वह काँप गयी, पर उसने बदल कर कहा ,” हो सकता है।”
“आपने सजगता दिखायी होती,तो जवान बच सकते थे।”उन्होंने कठोर स्वर में कहा।
“जी मैं समझी नहीं।”
“आप पर इनवेस्टीगेशन चल रहा है।”
“क्या?” वह चौंकी।
“राॅबिया और आपके रिश्ते के बारे में।”
“तो मुझ पर शक किया जा रहा है?”उसने टूट कर कहा,” रात भर मैंने घायल जवानों सेवा की है।”
“हमारी मजबूरी है।”आर्मी के आॅफिसर ने कहा,”आपका पासपोर्ट अभी क्लियरेंस में है।”
“आपकी मर्जी।”उसने अपमान से हिलते हुए कहा।
उन्हें वापस लौटने दिया गया।पर यातना और परेशानी की एक कहानी उससे जुड़ गयी थी।अपमान और उपहास से गुजरने की अमानवीय प्रक्रिया…जलती आँखें, अश्लील हरकतें,अनाप-शनाप प्रश्न…पर भला हो परमात्मा का… कि सरकार,रेडक्राॅस और ह्यूमेन राइट्स वालों के लगातार हस्तक्षेप के कारण उसे उनके चंगुल से निकलने का सौभाग्य हासिल हुआ,पर राॅबिया के साथ जाने क्या हुआ हो।वह आज भी सोचती है, तो सिहर जाती है।राबिया को आतंकवादी कहना या समझना महज एक संयोग नहीं, तो और क्या हो सकता है?किसी के बेटे अगर भटक जायें, तो माँ को क्या इसलिए दंड मिलेगा कि उसने उसे पैदा किया!
किसी को इसलिए टाॅर्चर किया जाएगा कि…
उसने जहाज के उड़ते ही अपना चेहरा हथेलियों से ढँक लिया।उसे लगा अब भी उसके अहसास में कोई उसका…नहीं उसकी औरत का पीछा कर रहा है …
संजय कुमार सिंह,
प्रिंसिपल,
आर.डी.एस काॅलेज
सालमारी, कटिहार।
रचनात्मक उपलब्धियाँ-
हंस, कथादेश, वागर्थ, आजकल, पाखी, वर्त्तमान साहित्य, पाखी, साखी, कहन कला, किताब, दैनिक हिन्दुस्तान, प्रभात खबर आदि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
9431867283

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