तुम मानव ही तो धरती की आस हो फिर क्यों उदास हो : ज्योति कोठारी
समाधान की शुभकामना : ज्योति कोठारी
नया वर्ष लेकर आता है हर्ष।
जीवन के जो हैं व्यवधान,
उनका पाने समाधान,
जो मचा है सर्वत्र घमासान
उससे मानव जाति को दिलाने
त्राण ससम्मान।
तुम मानव ही तो धरती की आस हो
फिर क्यों उदास हो।
उगते काँटो के बीच ही तो
खिलता है गुलाब
अंधेरी सुरंग के पार ही तो
फैला होता है
रोशनी का सैलाब।
कुछ कह रहे है उबर जाएँगे,
कुछ कहते हैं कैसे जी पाएँगे।
सब लगा रहे है अटकले, होगा क्या किसी ने न जाना,
बस सोच रहे हैं,
आयेगा कैसा जमाना,
बुन रहे हैं शंकाओं का
अनाहक तानाबाना।
छोडो इन बचकानी बातों को
उठो बढो तुम्हारा जोश देख
सब हट जाएगी बाधा।
अब करो हुँकार भर
परम उत्साह से
इन अनचाही
विपत्तियों का सामना,
नये वर्ष में स्वीकारो प्रिय!
एक विश्वास के प्रकाश से
जगमगाती दुनियाँ की
उमंगित मुस्कानमयी तरंगित
*मंगलमयी-शुभकामना*
So full of hope and assurance.