मौत का पैगाम “कोरोना” और राहत के नाम पर हो रहे राजनीतिक खेल : कैलाश महतो
कैलाश महतो, नवलपरासी | सारा विश्व कोरोना के ताप से तप रही है । बडे बडे मस्तिष्क, दुनियाँ को चकाचौंध करने बाला विज्ञान एवं शक्ति और सम्पत्ति के कुबेरों में भी कोरोना को रोकने की साहस नहीं दिख रहा है । जब तन, मस्तिष्क और धन से लवालव विश्व शक्ति कोरोना से हैरान परेशान है तो आसपास और सारे दुनियाँ के आशा, भरोसा और भिक्षा दीक्षा पर अस्तित्व जोगाने बाला नेपाल उससे अछूता रहने की बात हो ही नहीं सकता ।
नेपाल भले ही आजतक कोरोना से मौतीय आतंक से सुरक्षित दिख रहा हो, मगर संक्रमणीय आतङ्क से अपने को सुरक्षित नहीं कर सका है । यह तो किसी चमत्कारिक शक्ति का आशिर्वाद ही है कि पौने चार दर्जन लोग संक्रमित पाये जाने के बावजूद कोई मौतीय संक्रमण का शिकार नहीं हो पाया है । हम उसी महाशक्ति से प्रार्थना करें कि नेपाल को सुरक्षित रखें ।
कोरोना का अपना आन्तरिक उद्देश्य जो भी हो, लेकिन इसने विश्व के राजनीतिक रंगमञ्च पर जहाँ अपना शक्तिशाली पहचान स्थापित किया है, वहीं गरीब, मजदूर और बेसहारों के लिए मौत का पैगाम बनकर उद्धम मचाया हुआ है । इस महामारी को अत्याचारी इसलिए कहना कोई नाजायज नहीं होगा कि ये सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रुप से पीडित लोगों के लिए सबसे बडा अभिशाप बनकर खडा है । एक समय HIV AIDS और Cancer जैसे महामारी और रोग भी संसार में तबाही का मंजर लेकर आया था । मगर उसने चरित्र से गरीब और व्यवहार से अत्याचारी तप्के के लोगों को ही अपना शिकार बनाया था । लेकिन कोरोना न जाने क्यों गरीब, मजदूर और दलित को ज्यादा शिकार बना रहा है । अगर यह जैविक हथियार है तो अपने मनसुवा को पूरा करने के लिए इसे निर्माण करने बालों का बेइमानी है । उसका टार्गेट कमसे कम असहाय और निर्दोष लोग नहीं होना चाहिए था जो रोग, भूख, अवहेलना और तिरष्कार सहित उनपर हो रहे राजनीति समेत से पीडित हों ।
कोरोना एक तरफ निमुखों के लिए काल सावित हो रहा है तो दूसरी तरफ राजसेवा, समाजसेवा और जनतासेवा के नाम पर किसी के लिए अथाह कमाई करने का माहोल निर्माण किया है । विभेद का नंगा रुप देखा जा रहा है । देश के राजधानी में भी राज्य द्वारा चेहेरे के आधार पर राहत वितरण की जाने की खबर आती है । अपने जान पर खेलकर दिनरात जनता के सेवा में तल्लिन डाक्टर को नश्ल और जात व सम्प्रदाय के आधार पर मनोवल तोडने का काम राज्य खुद करता है । सरकार और उसका मन्त्रीमण्डल एक ओर हर तरफ भ्रष्टाचार करने और कमिशन बनाने में लिप्त है तो दूसरी ओर सुरक्षाकर्मियों का पेट काटने का अपराध कर रहा है । अपना भविष्य और राजधानी को सुन्दर बनाने पहुँचे श्रमिक और मजदूरों को एक तो उनके काम के बदौलत पाये जाने बाले पैसे उपलब्ध कराये नहीं गये । सरकार के दया माया के प्रतिक्षा में काठमाडौं में ही ठहरने को बाध्य कामदार और विद्यार्थियों को सरकार के तरफ से जब कोई राहत की भनकतक नहीं लगी , तब मजबुर वे पैदल ही सैकडों हजारों कि.मी. की दूरी पार करते लोगों को प्रहरी द्धारा यातनायें दिलाया जाना मानवता विरोधी घोर अपराध नहीं तो और क्या है ?
दानवीय रुप का यह पराकाष्ठा ही है कि गरीब और मजदूर की कही जाने बाली कम्युनिस्ट की संघीय सरकार, प्रदेश और स्थानीय सरकार समेत अपने जनता को इस महामारी के इस सङकटकाल में राहततक का प्याकेज घोषणा नहीं करते । जहाँ कहीं किया भी गया वहाँ जनता को जानवरों से भी बद्तर मानकर उनको अखाद्य पदार्थें वितरण की जा रही है । राहत के लिए कहीं मारपिट तो कहीं दंगा, कहीं राहतीय स्टण्ट तो कहीं महादानी होने का स्टण्ट, कहीं गरीबों का मसीहा दिखने का उत्कण्ठा, कहीं एक किलो सँडे गले राशन, सब्जी, दाल, म्याद गुजरा साबुन आदि वितरण में दर्जनभर दाता लोग तो कहीं पेटीकोट और फटे पूराने कपडों से बनवाये गये मास्क वितरण के लोक कल्याणकारी फोटोशुट देखने को मिल रहे हैं । ताज्जुब की बात तो यह है कि उन्हीं गरीब और मजदूरों के लिए दशकों राजनीतिक संघर्ष और वर्षों जेल/जंगल जीवन बिताये सरकार के मुखिया और उसकी पार्टी शर्म के सारे सीमायें नांघकर यह कहता है कि उसने ८० करोड का राहत बाँटा है । सरकार के आँखों के सामने भूख से व्याकुल गरीब और मजबुर लोग जहाँ हफ्तों से भात नहीं खाया है, कई छाँक भूखे रोया है, भूख से सो नहीं पाया है, शरीर के हड्डियाँ छालों से बाहर निकलने बाले हैं, भूखे प्यासे चलते कई मजदूरों की प्राण निकलने की खबर है, लोग दाने दाने को तरसने लगे हैं, वहाँ उस राजधानी के बेहाल लोगों के दु:ख में सहभागी होकर अपने बलपर लोगों को राहत उपलब्ध कराने बाले यूवा ज्ञानेन्द्र शाही को राज्य द्वारा गिरफ्तार होना अत्याचार और निरंकुशता की पराकाष्ठा है । इसे दुनियाँ के किसी भी सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं मिल सकता ।
यह महासंकट का समय है । जीवन बचाने का समय है । मानव अस्तित्व रक्षा की समय है । यह कोई विकास, राहत या दानी महोत्सव का फिल्म शुटिङ नहीं है । यह विशुद्ध रुप से मानव धर्म और मानवीय संवेग का वक्त है । यह कोई चुनावी अखाडा या राजनीतिक सौदेबाजी का समय नहीं, यह मानवीय मूल्य मान्यता की घडी है । मगर राहत वितरण के नाम पर जो नाटकें हो रही हैं, वे विलकुल लज्जास्पद और घृणित कार्य हैं । इस महासंकट के समय में सही दानी अपने नाम और चेहरे को जितना छिपायें, उतना ही उसके उपभोगीजन उनके बारे में जानना चाहते हैँ । पता लगाते हैं और उनका सम्मान का कोई नाप नक्सा नहीं होता । लोग ह्रृदय से सम्मान देते हैं । वैसे सहयोगी ह्रृदय के प्रति कृतज्ञ होते हैं । अभी अभी दो दिन पहले गुजरात में निश्छल मन से अद्वितीय ढंग से आधी रात के समय एक किलो आँटा प्रति परिवार के नाम उद्घोष के साथ केवल जरुरतमन्द और सही मजदूर वर्ग के लोगों को वितरण किया गया है । बेहाल लोग कमसे कम दो वक्त के गुजारा के लिए ही सही, जब आँटा लेकर घर पहुँचे और प्याकेट खोलकर रोटी बनाने की तैयारी किए तो हरेक प्याकेट से पन्द्रह हजार रुपये निकले । ताज्जुब की बात यह थी लोगों के लिए कि वो विशाल ह्रृदय के महादानी कौन थे ? लोगों ने खोजना शुरु किया तो काफी मशक्कत के बाद पता चला कि वे हिन्दी सिनेमा के सुपरस्टार आमीर खान हैं । दान और मानवीय प्रेम वह है, नाटक से प्रेम नहीं पनप सकता ।
आर्थिक रूप से इस कोरोना संकट का शिकार मैं और मेरा परिवार भी रहा है । हमारे रसोई में भी आफत आती रही है । कभी भूखे, कभी रुखा तो कभी सुखा खाना हमारे लिए भी बराबर है । भाडे के घर में रहते हुए किसी तरह कोरोना के मुसिबत को झेलने बाली बात मेरे शुभचिन्तकों में व्याप्त है । हमने यहाँ किसी से कुछ कहा नहीं है । मगर हमारे हालातों को वे शायद समझते हैं और इस मुसिबत के पल में हमारे हितैषी लोगों ने हर सम्भव प्रयास यह किया है कि हमारा रसोई चल सके । ना कोई प्रचार प्रसार है, ना कोई दिखावा । यही दान है । यही मानवीय चेतना है । मित्रों ने हम पर प्रेम बरसाया और हमने उसे ग्रहण किया ।
मानवीय संवेग के इस घडी में मानवीय सहायता से ज्यादा कोरोना के अत्याचार पर राहत नाम का जो घिनौनी राजनीति हो रही है, यह गंभीर बात है । जनता के मतों से बने जनप्रतिनिधि और उसके प्यादे लोग जनता के साथ धोखाधडी, बेइमानी और भ्रष्टाचार करने में उद्धत् हैं तो कुछ लोग इसको मसाला बनाकर आने बाले चुनावों में इसे प्रयोग करने के रणनीति तैयार कर रहे हैं । वे और उनकी पार्टी समेत बाँकी दल और नेताओं के तरह ही जनता में उधार के सपने बाँट रहे हैं । वे भी इस मुसिबत को मुसिबत मानने से ज्यादा चुनावी स्टंट दिखा रहे हैं । जो भी हो, राजनीति में सब मान्य है , मगर लोगों के भावना, मजबुरी, गरीबी और निरीहता का फायदा उठाना राजनीतिक धर्म कतई नहीं होना चाहिए ।
कोरोना महामारी काल में सरकार ने एक और जो राजनीतिक भ्रष्टाचार किया है, उस पर सारे राजनीतिक दल, नागरिक समाज, संविधानविद्, कानुनी संकाय, राजनीतिक नेता और नेतृत्व तथा आम जनता समेत को गंभीर होने का समय है । सरकार के प्रधानमन्त्री केपी ओली ने हाल फिलहाल राजनीतिक दल निर्माण का जो अध्यादेश लाया है, वह लम्बा रणनीतिक ऐसा तीर है, जिसके एक प्रयोग से कई डालों को काटा जा सकता है । वैसे राजनीतिक खेलाडी लोग बात को नहीं समझने की बात नहीं है । मगर समझ रहे हों तो समझ को भी सही समय पर समझकर इसे अपने में प्रयोग करें या किसी और पर होश में रहकर प्रयोग करें । नहीं तो कोरोना के नाम पर बनाये जा रहे राहत प्याकेज के राजनैतिक राजनीति का गंभीर परिणाम भुगतने पडेंगे ।
