मिथिलांचल में रवि व्रत और सप्ताह डोरा व्रत का समापन : अंशु झा
अंशु झा, काठमांडू | संसार में अन्यत्र कही नहीं मनाये जाने वाला पर्व मिथिलांचल में मनाया जाता है । मिथिलांचल अपनी संस्कृति को लेकर विश्व में प्रखयात है । इस संस्कृति को संजोकर रखने में पुरुषों से भी अधिक महिला पारंगत है ।
इसी सन्दर्भ में आज मिथिलांचल में रविवार का व्रत और सप्ताह डोरा व्रत का विसर्जन किया गया है । रविवार व्रत का आरम्भ अग्रहण महीना के शुक्ल पक्ष से होता है और वैशाख महीना के शुक्ल पक्ष में समापन किया जाता है । अर्थात् यह व्रत ६ महीने के प्रत्येक रविवार को किया जाता है ।
हमारा हिन्दू धर्म इतना सहज और सरल है कि सभी व्रत में विकल्प का समावेश रहता है । इस व्रत में भी विकल्प है । जो महिलाएं शरीर से स्वस्थ्य है और वह ६ महीने तक का सारे रविवार व्रत लेना चाहती है तो वो ले सकती हैं । और जो महिलाएं सारे व्रत लेने में असमर्थ हैं तो वह ६ महीने में ६ रविवार व्रत लेने का भी प्रावधान है । और कोई कोई तो शुरु का और अन्त का अर्थात् दो रविवार व्रत भी ले सकती हैं । इस व्रत में सुबह स्नानादि कर व्रतालु सूर्य को विधिवत जल चढाकर पूजा अर्चना करती हैं और सूर्यास्त होने से पूर्व एक समय नमक रहित पवित्र भोजन ग्रहण करती हैं । निष्कर्षतः यह व्रत सूर्यदेव का है ।
इसी प्रकार फागुन पूर्णिमा के दिन से मिथिलांचल में महिलाएं सप्ताह डोरा का व्रत लगाती है । यह व्रत भी रविवार को ही मनाया जाता है । और जिस दिन रविवार व्रत का समापन होता है उसी दिन इस व्रत का भी समापन किया जाता है । इस व्रत में महिलाएं एक पवित्र स्थान पर एकत्रित होकर लाल पीले रंग के धागा का पूजा कर अपने दाहिने बाजु में बांधती है और कथा सुनती है । इस पूजा में विभिन्न प्रकार का फल मधुर व पकवान का भी विशेषता है । इसी प्रकार लगभग सात रविवार तक यह व्रत चलता है । कथा वाचिका डोरापर्व से जुडी पौराणिक कथा सुनाती हैं । अन्तिम दिन डोरा का विसर्जन किया जाता है । महिलाएं बडे ही हर्षोल्लास के साथ अपने परिवार की समृद्धि व शांति के लिये यह व्रत करती हैं ।