आसमान में दिखेगा खूबसूरत नजारा, होगी सतरंगी आसमानी आतिशबाजी
कोरोना के कहर से पूरा विश्व परेशान है पर सृष्टि अपना काम जारी रखे हुए है ।ऐसे में ही रोमांच से भर देने वाली एक ऐसी ही घटना आसमान में चार चांद लगाने जा रही है। यह सतरंगी आसमानी आतिशबाजी होगी। चार से छह मई के बीच जिसका दीदार किया जा सकेगा।
एक घंटे के दौरान 50 तक उल्का वृष्टि देखा जाना अनुमानित: आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के खगोल वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे के अनुसार ईटा एक्वारिड्स मेटिओर शॉवर यानी जलती उल्काओं की बरसात होने वाली है। लगभग तीन दिन इस खगोलीय घटना से रूबरू होने का मौका हमारे पास होगा। इस घटना में एक घंटे के दौरान 50 तक उल्का वृष्टि देखा जाना अनुमानित है। जिसे क्षितिज से 40 डिग्री के बीच देखा जा सकेगा।
उल्का वृष्टि का यह क्षेत्र मंगल ग्रह के उपर की ओर होगा। चंद्रमा की रोशनी होने के कारण इस नजारे को रात दो बजे से सूर्योदय से पूर्व देखा जा सकेगा। आसमानी आतिशबाजी की यह घटना वैसे तो 19 अप्रेल से शुरू हो चुकी थी और आगे 28 मई तक जारी रहेगी। मगर इस दौरान सीमित संख्या में ही उल्का वृष्टि देखी जा सकेगी।
पुच्छल तारों के छोड़ी उल्काओं से होती है उल्का वृष्टि : धुमकेतु यानी पुच्छल तारों यानी धूमकेतु द्वारा पृथ्वी की राह में छोड़े जाने मलवे के कारण उल्काओं की जलने की घटना होती है। जब कोई धूमकेतु सूर्य का चक्कर लगाते समय धरती के पास से गुजरता है। तब वह अपने पीछे छोटे-छोटे कंक्कड़ व धूल मिट्टी भारी मात्रा में छोड़ जाते हैं। पृथ्वी छोड़े गए इस मलवे के बीच से होकर जब गुजरती है तो उल्काएं जलकर आतिश के समान नजर आती हैं। खगोल विज्ञान की दृष्टि में यह सामान्य खगोलीय घटना होती है।
धरती का कवच है इसका वातावरण : क्या होता यदि उल्काएं जलने के बजाय पृथ्वी में आ गिरती। इस स्थिति में धरती पर रहना आसान नही होता। यहां आए दिन उल्काओं की बरसात होती और धरती आसमानी पिंडों की मार झेलने के लिए मजबूर होती। पिंडो की मार से पृथ्वी पर बेशुमार गड्ढे ही गड्ढे होते। जिस कारण धरती के वातावरण को इसका कवच व वरदान माता जाता है। जो धरती की रक्षा करती हैं और आसमान से आने वाली उल्काओं का खाक में मिला देती है।