एसइइ परीक्षा और सरकारी अदूरदर्शिता : कैलाश महतो
कैलाश महतो, नवलपरासी | गत चैत ६ गते से संचालन होने बाला एसइइ परीक्षा सरकारी अदुरदर्शिता और नासमझी के कारण अन्योलग्रस्त होने का आसार नजर अा रहा है । परीक्षा शुरु होने के पूर्व संध्या में कोरोना महामारी के नाम पर अचानक परीक्षा स्थगित करना सरकार का गंभीर त्रुटी और असफलता माना जाना चाहिए । कोरोना के संकट से जुझ रहे देश को परीक्षा स्थगन से उत्पन्न नकारात्मक उद्वेगों का भी सामना करना भविष्य के लिए कोई कमजोर चुनौती नहीं होगा।
भारत जैसे विशाल जनसंख्या के चाप बाले देश जहाँ कोरोना ने दस्तक दे दिया था, ने समय रहते म्याट्रिक की परीक्षा सम्पन्न कर ली । मगर नेपाल ने सारी तैयारी कर लेने के बाद भी परीक्षा होने से तकरीबन बारह घण्टा पूर्व इसे एकाएक स्थगन करने का फैसला लिया । आश्चर्य की बात यह रही कि परीक्षा संचालन करने बाले शिक्षा मन्त्रालय, विभाग व परीक्षा नियन्त्रण कार्यालयतक के जानकारी बिना असम्बन्धित रक्षा मन्त्रालय के नेता रहे कोरोना भाइरस नियन्त्रण तथा रोकथाम उच्च स्तरीय समिति संयोजक इश्वर पोखरेल ने परीक्षा स्थगन कर दी । इससे निश्चित रुप से एसइइ परीक्षा के तैयारी में रहे विद्यार्थी, अभिभावक, विद्यालय और शिक्षक वर्ग को झट्का लगा है ।
गौर करने बाली बात यह है कि उस समय नेपाल कोरोना से बिल्कुल सुरक्षित था । कोई केश वैसा नहीं दिखा था । सरकार अगर थोडा सा बुद्धि लगाया होता तो चैत ६ गते से चैत १४ तक संचालन होने बाली एसइइ परीक्षा को सुरक्षित तवर से ही सम्पन्न किया जा सकता था । थोडा सा और चिन्तन किया गया होता तो एसइइ परीक्षा को चैत २/४ गते से ही संचालन कर नेपाल में लकडाउन शुरु होने से पहले ही समाप्त कर दिया जा सकता था । इस रोग का व्यापक चर्चा गत वर्ष के डिसेम्बर से ही हो गया था ।
इस बात पर भी राज्य ने अगर ध्यान दिया होता तो परीक्षा कर लेने के उपायों के साथ जनता को महामारी से सुरक्षित कर लेने के भी व्यापक प्रबन्ध किये जा सकते थे । मगर सरकार को इससे कोई खास मतलव नहीं रहा । चैत ५ गते के दिनभरतक परीक्षा नहीं रूकने की बात करती रही और विद्यार्थी जब परीक्षा में जाने के लिए अपना प्रवेश पत्र, कलम और मसी तैयार कर रहे थे, अचानक समाचार फैलाया गया कि कल्ह चैत्र ६ गते सुवह ८ बजे से संचालन होने बाला एसइइ परीक्षा कोरोना महामारी के कारण दूसरा सूचना प्रकाशन न होनेतक के लिए स्थगित किया जाता है । इससे साफ जाहेर होता है कि कोरोना किसी के लिए मौतीय महामारी बनकर आया है, वहीं सरकार, उसके मन्त्री, अधिकारी, व्यापारी, राजनीतिक दल, नेता और जनप्रतिनिधियों के लिए राष्ट्रिय रकम को अनाधिकृत ढंग से लुटने और दोहन करने का सुनहरा अवसर है ।
इस वैश्विक महामारी के अन्धेरे में गरीब, मजदूर, दलित, निमुखा, असहाय, निर्बल जहाँ जिन्दा रहनेतक के लिए धिपधिपाती डिबिया की रोशनी खोज रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ जलता सूरज के प्रकाण्ड प्रकाश के विशाल मौजुदगी में ही राज्य और उसके संचालकों द्वारा खुल्लम खुल्ला डकैती की जा रही है । अन्तिम समयतक परीक्षा संचालन का दावा के नाम पर परीक्षा तैयारी में करोडों की राज्यकोष खर्च कर लेने के बाद पून: कोरोना के नाम पर ही केन्द्र से लेकर वार्ड स्तरतक अर्बों के आर्थिक घोटाले और भ्रष्टाचार किये जा रहे हैं । जनता भूख, भय और राजनीतिक गुण्डागर्दियों से बेहाल है और देश का प्रधानमन्त्री यह कहते सुनाई देते हैं कि जिस देश में कोई जानवर, चिडिया और किरे मकोरेतक खाने के बिना नहीं मरते, उस देश की जनता भूख से कैसे मर सकती है ! वे तो पत्रकारतक को चुनौती देते हुए यह कहते हैं कि पत्रकारों ने सरकार को बदनाम करने के लिए उन काल्पनिक भूखे समूहों का जिक्र किया है जो उसके प्रहरी प्रशासन को पता तक नहीं है । आश्चर्य तो तब होता है कि जो प्रहरी एक सांसद को अपहरण करने में समय बिताती हो, उसे भला भूखे लोगों की आवाज कहाँ सुनाई देगी । भूखे लोग तो इतने कमजोर हो गये हैं कि उनकी आवाज बाहर निकालनेतक दम उनमें नहीं रह गयी है । बिना सिन्दुर के ही रखैल बने सूर्य चुनाव चिन्ह से विजयी विचार के प्रकाण्ड धुरन्धर समान्य प्रशासन मन्त्री ह्रृदयेश त्रिपाठी बडे इत्मिनान के साथ यह कहते सुनाई देते हैं कि नेपाल में किसी के पास खाने की कोई समस्या नहीं है जबकि उनके नवलपरासी में रहे गाँव में ही दलित और विपन्न लोग भूख के आँसु रो रहे हैं ।
एसइइ देने बाले छात्र छात्राओं की मनोवैज्ञानिक अवस्था दिन प्रति दिन अब यह बनता जा रहा है कि पढाई और परीक्षा को वे कोरोना का ही एक रुप मानने लगे हैं । जैसे कोरोना से लोग त्रसित होकर सामाजिक दूरी कायम करने, अकेले ही रहने जैसा दिनचर्या कायम किये हैं, ठीक उसी प्रकार विद्यार्थी बच्चे भी परीक्षा से दूर होने का संकेत दिखाई देने लगे हैं । पढाई के प्रति उनका आकर्षण धीरे धीरे घटते जाने की अभिभावकों से आवाजें आने लगी हैं । अगर ये हालात सही है तो फिर शिक्षा का जो स्तर है, कल्ह के दिनों में नेपाल के शिक्षा लगायत के अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों समेत में थप समस्या खडा कर सकता है ।
समय पर ध्यान देने की संस्कार न होने के कारण सरकार पहले समस्या पैदा कर लेती है । ध्यान तो सारा देश को लुटने के योजना बनाने में रहता है तो अच्छाई से लेकर बुराईतक के योजनाओं में सिर्फ कमिशन, भ्रष्टाचार, अनियमितता और घुसखोरी करने से फुर्सद होने की संभावना काफी कम होता है । जब हद से ज्यादा कुछ बिगर जाता है तो फिर विज्ञों से सलाह लेने का नाटक किया काता है । जो सलाह शिक्षा विज्ञों से आज मांगा जा रहा है, वही चैत्र ५ गते से पहले लिया गया होता तो समस्या समाधान हो गया होता ।
आज शिक्षा विज्ञ जो सलाहें दे रहे हैं, वह बाध्यता भितर के सलाहें हैं । उनका कक्षा दश के एसइइ और ११वीं के परीक्षाओं से सम्बन्धित परीक्षा नहीं लेकर अागे के कक्षाओं में बढोत्तरी करने का जो सलाह है, वह नेपाल के सन्दर्भ में किसी भी मायने में उचित और वैज्ञानिक नहीं हो सकता । मै अपने करीब दो दशकों के अध्यापन प्राध्यापन कार्य के अनुभव के आधार पर यह कह सकता हूँ कि बिना परीक्षा लिए क्लास बढाना देश के भविष्य के लिए कतई फलदायी नहीं होगा । फिलिपिन्स या किसी भी यूरोपीय या अन्य विकसित मुल्कों के स्तर में हमने कोई तैयारी नहीं की है कि हम उनके शिक्षा प्रणाली का नक्कल कर सकें । हाँ, विज्ञों का यह सलाह वाजिव है कि होम सेन्टर के द्वारा आवश्यक कोडिंग डिकोडिंह के माध्यम से समस्या समाधान किया जा सकता है । मगर सरकार थोडा सा गंभीर होकर थप सुरक्षा व्यवस्था करें तो विगत के सालों के जैसे ही नेपाल में एसइइ और ११-१२ क्लास के परीक्षायें समान्य रुप में ली जा सकती है । ईश्वर ने अभी भी देश को कोरोना के मौतीय आतंक से सुरक्षित रखा है । कल्ह के संभावित दुर्घटनाओं से निपटने के लिए सरकार सुरक्षा के प्रविधियों को प्रयोग कर परीक्षायें ले सकती है । शिघ्र करें । अब देर ना करें ।
