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साम्राज्यवाद का रुप, रंग व प्रकार- नेपाल शिकार : कैलाश महतो



कैलाश महतो, नवलपरासी |
Imperialism, is state policy, practice, or advocacy of extending power and dominion, especially by direct territorial acquisition or by gaining political and economic control of other areas. Because it always involves the use of power, whether military or economic or some subtler form, imperialism has often been considered morally reprehensible, and the term is frequently employed in international propaganda to denounce and discredit an opponent’s foreign policy.

राष्ट्र : ल्याटिन भाषा के “नेसियो”  से “नेसन” (राष्ट्र) शब्द का उत्पत्ति माना जाता है । इसका अर्थ जन्म के आधार होता है । स्मिथ र लोरिङ व्यरिङ्टन के अनुसार एक निश्चित ऐतिहासिक नाम सहित के भूखण्ड के भितर बसोबास करने बाले सामूहिक नामधारी जाति वा मानव समुदाय को ही राष्ट्र कहा गया है । स्टालिनले के अनुसार किसी निश्चित भूगोल के भितर साझा इतिहास, साझा अर्थतन्त्र, साझा भाषा व साझा मनोविज्ञान के केन्द्रीकृत रूप को ही राष्ट्र व जाति कहा जाता है । मानव समाज के विकास के ऐतिहासिक प्रक्रिया में राष्ट्रों के निर्माण पश्चात मात्र राज्य का  अवधारणा का विकास हुआ है ।

राज्यः मानव उत्पत्ति के प्रारम्भ में वर्गविहीन समाज रहा । उस वक्त सम्पूर्ण प्राकृतिक स्रोतसाधन साझा था । तेरा मेरा, धनी गरीब या ऊँच नीच की भावना नहीं थी । इसे आदिम साम्यवाद कहा गया । मानव विकासक्रम के साथ निश्चित भूगोल के अन्दर विभिन्न राष्ट्रों की विकास हुई । साथ में स्वार्थ र अन्तरविरोधें भी पैदा हुए । बाद में उन्हीं अन्तरविरोधों की एक आपस में टकराहट हुईं । मानव समाज का चरित्र वर्गीय होने लगा । इसी पृष्ठभूमि पर एक वर्ग दूसरे वर्ग के उपर शासन, दमन व नियन्त्रण करते हुए शक्तिशाली राजकीय निकाय की स्थापना कीं । मूलतः राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं प्रशासनिक वर्गीय अङ्ग ही कालान्तर में राज्य का रुप धारण किया ।

वास्तव में राष्ट्रों के विकास क्रम के पराकाष्ठा में ही राज्यों की उत्पत्ति होने की झलक दिखती है जिसे ल्याटिन भाषा में “स्टाटस” नामक पदावली का विकसित रूप माना जाता है । यह तत्कालीन समाज का चरित्र, शासकीय सङ्गठनों के स्वरूप, संरचना और हैसियत जनाने बाले समग्र संस्था का नाम है । म्याकियावेली ने शासन व्यवस्था चलाने बाले समग्र साङ्गठानिक संरचना को ‘द स्टेट’ कहा था । इसीसे राज्य शब्द का प्रयोग होते आया है । राज्य सार्वभौमसत्ता सम्पन्न शक्तिशाली अङ्ग है ।

साम्राज्यःल्याटिन भाषा के  “इम्पेरियम” शब्द से “इम्पेरियलिज्म” बना है जिसका अर्थ सर्वोच्च शक्ति होता है । मूलतः वर्ग समाज के स्थापना के बाद किसी न किसी रूप में इसके उपर हस्तक्षेप लगातार कायम रहा । युरोप में आये औद्योगिक क्रान्ति पश्चात आधुनिक साम्राज्यवाद हावी हुआ । शक्तिशाली राज्य कमजोर राज्यों पर व शक्तिशाली शासक दुर्बल शासकों पर बलपूर्वक अन्यायपूर्ण ढङ्ग से प्रभुत्व जमाकर उनपर हेपाहा पद्धति कायम किया । असल में यही साम्राज्यवाद है; अर्थात अपने राज्य का सारा प्रभाव व नियन्त्रण दूसरे राज्य पर लादकर अपना हैकमवाद स्थापित करना ही साम्राज्यवाद है । वास्तव में साम्राज्यवाद  गैरन्यायिक, अमानवीय तथा अराजक शासन प्रणाली है ।

मार्क्सवाद ने मूलतः अर्थ राजनीति के कारण ही साम्राज्यवाद हावी होने का मूल कारण माना है । यह राजनीतिक, आर्थिक, सामरिक, सांस्कृति, सामजिक तथा धार्मिक स्वार्थों के रणनीतिद्वारा निर्देशित होता है । इसपर  जोड देते हुए लेनिन कहता है, “साम्राज्यवाद एकाधिकार पुँजीवाद है ।” उन्होंने साम्राज्यवाद का विभिन्न पाँच चरणों की बात की । इसमें उत्पादन तथा पुँजी की अति केन्द्रीकरण, बैङ्कों की केन्द्रीकरण, उद्योगों पर पुँजीपतियों का एकाधिकार, पुँजी का निर्यात व पुँजीवादी राष्ट्रों के बीच  भूमण्डलीय बाँडफाँड होने की बात महत्वपूर्ण होता है । आज के भूमण्डलीकरण, उदारीकरण  और निजीकरण साम्राज्यवादी अर्थतन्त्र की असली चरित्र है । विश्व के भयानक युद्धें समेत इसी साम्राज्यवादी स्वार्थ के प्रतिनिधि घटनाये हैं । इसका चरित्र विस्तारवादी होता है । यह शोषण और स्रोत व साधनों का दोहन करता है । यह केवल अपने राज्य शक्ति व प्रभाव का विस्तार करना अपना प्रथम उद्देश्य मानता है । यह गैरन्यायिक होता है ।

साम्राज्यवाद के अनेक रणनीतिक रूप होते हैं । पहला, पराधीन व परतन्त्र वह रुप जिसमें एक शक्तिशाली राज्य अपने सैन्य हस्तक्षेप के द्वारा दूसरे कमजोर राज्य पर विजय प्राप्त कर भौतिक रुप से पूर्ण नियन्त्रण करता है । उदाहरण के  लिए बेलायत से स्वतन्त्र होने से पूर्व का भारत, श्रीलङ्का और बर्मा हैं । दूसरा, कमजोर राज्य उसको परेशान करने बाला शक्तिशाली राज्य से सम्झौता कर अपने राज्य को सुरक्षा देता है । इस पद्धति को  संरक्षित राज्य कहा जाता है । उदाहरण के  लिए भुटान जो एक सम्झौता के आधार पर भारत द्वारा संरक्षित राज्य है । तीसरा, पट्टा व लिज, जिसमें एक कमजोर राज्य को कोई मजबूत राज्य कुछ रकम के बदौलत एक निश्चित अवधि के लिए भाडे में उसका सम्पूर्ण भाग या कोई निश्चित भू-भाग को कब्जा कर अपना व्यापार या अन्य प्रयोजन में प्रयोग करता है । यह भी एक साम्राज्यवादी रूप ही है । जैसे,  हङ्कङ  और मकाउ जो कभी बेलायत के अधीन में थे । अाज वे स्वतन्त्र हैं ।

वैसे ही उपनिवेश भी साम्राज्यवाद का एक रूप ही है । यह पराधीन राज्यों से मिलता जुलता है । इसमें बडा या धनाढ्य राज्य किसी भी मुल्क के पूरे भू-भाग या किसी निश्चित क्षेत्र पर अपना औपनिवेशिक हस्तक्षेप कायम रखता है । १५वीं शदी से प्रारम्भ हुआ इस प्रकार का उपनिवेशवादी लहर २०वीं शदी के अन्ततक रहा । आज अधिकांश मुल्क स्वतन्त्र हो चुकी हैं यद्यपि मधेश जैसे कुछ मुल्क आज भी साम्राज्यवादी उपनिवेशों का शिकार हैं । साम्राज्यवादी मुल्कों में बेलायत, फ्रान्स, स्पेन, पोर्चुगल और हल्याण्ड अग्रपङ्क्ति में रहे ।  साम्राज्यवाद का पाँचवां रुप प्रभाव क्षेत्र है जिसमें कमजोर राज्यों को पूर्णतत: अधिनस्त न बनाकर किसी विशेष सम्झौता मार्फत उसके किसी रणनीतिक क्षेत्र को अपने प्रभाव में रखना । उदाहरण के तौर पर २०वीं शदी के प्रारम्भ में इरान के तेल क्षेत्र को रुस र और बेलायत ने अपने अपने प्रभाव क्षेत्र में रखकर तेलीय क्षेत्र पर कब्जा किया था ।
नयाँ साम्राज्यवाद का नयाँ रूप नवउपनिवेशवाद हो गया है । यह साम्राज्यवाद का विकसित, मगर उलझा हुआ छद्म रणनीति के तहत आता है । इसमें शक्ति राष्ट्र किसी राज्य पर प्रत्यक्ष रूप से शासन तो नहीं करता, मगर वो सम्बन्धित मुल्क के ही सबसे  विश्वासी, लोकप्रिय और बडे दल या उसके नेतृत्व या कारिन्दा मार्फत अपना औपनिवेशिक स्वार्थों को पूरा करता है । इसको नवउपनिवेशवाद कहते हैं । यह साम्राज्यवाद का छद्म रूप है । नेपाल इसी नवउपनिवेशवाद का शिकार है । दुर्भाग्य यह है कि यह किसी एक शक्तिशाली राज्य या सरकार का साम्राज्यवादी उपनिवेश नहीं, अपितु यह चार शक्ति सम्पन्न साम्राज्य : भारत, चीन, अमेरिका और यूरोप का उपनिवेश है । ये चार शक्तियों के जाल में इस  तरह कैद है कि यह कोई स्वतन्त्र मुल्क भी है- कहना कठीन है । ये चारों शक्तिशाली साम्राज्य कभी इसका सरकार बनाता है, कभी संविधान निर्माण करता है, कभी सरकार और संविधान बिगार देता है तो कभी इसको धर्म का शिकार बनाता है । नेपाल का राजनीति, शिक्षा, स्वास्थ्य, धर्म, समाज, भाषा, संस्कृति, अर्थ, रोजगार आदि सारी नीतियाँ वे निर्माण करते हैं और यह पालन करता है ।

केपी ओली का गिरता सरकार चीन के आदेश पर बचना प्रत्यक्ष उदाहरण है । जो नेता लोग ओली जी से सरकार और पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेवारी से हटाने के निर्णय पर अडे थे, समाचारों को माने तो चीन के एक फोन व निर्देशन पर सरकार टिक गयी और विरोध में एक जुट खडे नेता पीछे मुड  गये । अब अमेरिका, यूरोप और भारत किस रुप में इसका जबाव देंगे, यह देखना बाँकी है ।

शक्तिशाली राज्य कमजोर राज्यों के उपर किसी न किसी रूप से शोषण, हस्तक्षेप व नियन्त्रण कायम करने का तरिका खोजता रहता है । साम्राज्यवाद में शासन व्यवस्था से लेकर सारे नीति नियम पर सम्पूर्ण नियन्त्रण कायम किया जाता है जबकि उपनिवेशवाद में सम्बन्धित मुल्कों को कुछ मौलिक पक्षों में स्वतन्त्रता प्राप्त होता है । साम्राज्यवाद में साम्राज्यवादी मुल्क जनता को अपना राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, सभ्यता और संस्कृति स्वीकार करने को बाध्य करता है, वहीं उपनिवेशवाद में कतिपय मौलिक सवालों में सम्बन्धित मुल्क के जनता को छुट दी जाती है ।  साम्राज्यवाद में राज्य पूर्ण रूप से विलय के अवस्था में होता है और उपनिवेश में राष्ट्र और राष्ट्रियता का विकास होने का सम्भावना रहता है । यद्यपि दोनों रूपों में सार्वभौमसत्ता कब्जा के अवस्था में होता है ।

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद  पुराने उपनिवेशों से  बहुत मुल्क उन्मुक्त हुए ।  मगर नये उपनिवेशवादी रणनीतियों से वे  आज भी प्रताडित हैं । नवउपनिवेश में प्रत्यक्षरूप से  राजनीतिक, आर्थिक तथा सैन्य नियन्त्रण नहीं होता । मगर अप्रत्यक्ष तरीकों से राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक हस्तक्षेप कायम किया जाता है । दूसरे भाषा में यह विश्व बजार को कब्जा करने का नयाँ रणनीति है । एेसे रणनीतिक रूपों को  समान्य जनता पहचान नहीं पाती है । इसी अन्यौलता के सहज अवस्था में साम्राज्यवाद का नवऔपनिवेशिक नीति सफल होता है । हस्तक्षेप के इसी घुमावदार नीति को नवउपनिवेशवाद कहते हैं ।

ल्याटिन अमेरिका में रहे संयुक्त राज्य अमेरिकी हस्तक्षेप के कट्टर विरोधी माने जाने बाले साम्राज्यवाद विरोधी Manuel Ugarte (“The Changing Face of Imperialism” in 1928 by Manuel Ugarte, page no.157 in “Jawaharlal Nehru and His Political Views” by Orest Martyshin) का हवाला देते हुए जवाहरलाल नेहरू ने साम्राज्यवाद को तीन तह से देखा हैं :
१. पूराने युग में साम्राज्यवादी राज्यशक्ति द्वारा विजित भूमियों के लोगों से लेभी स्वरूप रकम उठाने और वहाँ के जनता को अपना सेवक और दास बनाते थे ।
२. बाद के युग में साम्राज्यवादी राज्यों ने कुछ मौलिक अधिकारों को छोडकर विजित भूमियों पर कब्जा करने काम किये, और
३. आज के युग में वे कमजोर राज्यों के भूमि तथा उनके बासिन्दों को छोड कर उनके सम्पति व आय के श्रोतों को कब्जा करते हैं ।



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