Thu. Apr 18th, 2024

निर्जला एकादशी व्रत कल 2 जून मंगलवार को

*निर्जला भीमसेनी एकादशी व्रत कल :-*

आचार्य राधाकान्त शास्त्री,* निर्जला एकादशी व्रत कल 2 जून मंगलवार को किया जाएगा एवं व्रत पारण 3 जून बुधवार को प्रातः 7 बजे तक जीरे की पंजीरी एवं तुलसी पत्र से किया जाएगा। आचार्य राधाकान्त शास्त्री,*



ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष की एकादशी को भीमसेनी या निर्जला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। कल निर्जला एकादशी का व्रत है। पद्म पुराण के अनुसार इस एकादशी को निर्जल व्रत रखते हुए विष्णु की पूजा पाप तापों से मुक्त कर देती है। सनातन धर्म में निर्जला एकादशी का बहुत महत्‍व है। पुराणकथा के अनुसार देवर्षि नारद ने ब्रह्मा के कहने पर इस तिथि पर निर्जल व्रत किया। हजार वर्ष तक निर्जल व्रत करने पर उन्हें चारों तरफ नारायण ही नारायण दिखने लगे। उन्हें भगवान विष्णु का दर्शन हुआ, नारायण ने उन्हें अपनी निश्छल भक्ति का वरदान दिया। तभी से निर्जल व्रत शुरु हुआ। जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं उनको करोड़ पल सोने के दान का फल मिलता है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को प्राप्त होता है।
ये है व्रत का महत्व
शास्त्रों के अनुसार एकादशी स्वयं विष्णु प्रिया है इसलिए मानते हैं कि इस दिन निर्जल व्रत जप-तप पूजा पाठ करने से प्राणी श्रीविष्णु का सानिध्य प्राप्त कर जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। सभी देवता, दानव, नाग, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, नवग्रह आदि के जरिए रक्षा और विष्णु भक्ति के लिए एकादशी का व्रत रखने के कारण इसे देवव्रत भी कहा जाता है।

इस दिन व्रत करने वाले पानी भी नहीं पीते
इस दिन भगवान विष्णु के लिए विशेष पूजा पाठ की जाती है। व्रत करने वाले व्यक्ति को निर्जला एकादशी की तैयारियां एक दिन पहले यानी आज से ही कर लेनी चाहिए। आज दशमी तिथि पर सात्विक भोजन करना चाहिए। एकादशी व्रत में भगवान विष्णु श्रद्धा के साथ पूजन करें, पीले वस्तुओं, को समर्पित कर , पीले फल, पीले फूल, पीले पकवान का भोग लगाएं। दीपक जलाकर आरती करें। एवं ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें। निर्जला एकादशी पर व्रत करने वाले अधिकतर लोग पानी भी नहीं पीते हैं। यदि ये संभव न हो तो फलों का रस, पानी, दूध, फलाहार का सेवन कर सकते हैं।
एक बार श्री व्यास मुनि से भीमसेन कहने लगे कि हे पितामह! मैं भूख सहन नहीं कर सकता। यदि वर्षभर में कोई एक ही व्रत हो तो वह मैं रख सकता हूं, क्योंकि मेरे पेट में वृक नाम वाली अग्नि है सो मैं भोजन किए बिना नहीं रह सकता। भोजन करने से वह शांत रहती है, इसलिए पूरा उपवास तो क्या एक समय भी बिना भोजन किए रहना कठिन है।
अत: आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जो वर्ष में केवल एक बार ही करना पड़े और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए।
श्री व्यासजी कहने लगे कि हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं जिनसे बिना धन के थोड़े परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एका‍दशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है।
व्यासजी के वचन सुनकर भीमसेन नरक में जाने के नाम से भयभीत हो गए और कांपकर कहने लगे कि अब क्या करूं? मास में दो व्रत तो मैं कर नहीं सकता, हां वर्ष में एक व्रत करने का प्रयत्न अवश्य कर सकता हूं। अत: वर्ष में एक दिन व्रत करने से यदि मेरी मुक्ति हो जाए तो ऐसा कोई व्रत बताइए।
यह सुनकर व्यासजी कहने लगे कि वृषभ और मिथुन की संक्रां‍‍ति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला है। तुम उस एकादशी का व्रत करो। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल वर्जित है। आचमन में छ: मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए अन्यथा वह मद्यपान के सदृश हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है।
यदि एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करे तो उसे सारी एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। द्वादशी को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके ब्राह्मणों का दान आदि देना चाहिए। इसके पश्चात भूखे और सत्पात्र ब्राह्मण को भोजन कराकर फिर आप भोजन कर लेना चाहिए। इसका फल पूरे एक वर्ष की संपूर्ण एकादशियों के बराबर होता है।
व्यासजी कहने लगे कि हे भीमसेन! यह मुझको स्वयं भगवान ने बताया है। इस एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थों और दानों से अधिक है। केवल एक दिन मनुष्य निर्जल रहने से पापों से मुक्त हो जाता है।
जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं उनकी मृत्यु के समय यमदूत आकर नहीं घेरते वरन भगवान के पार्षद उसे पुष्पक विमान में बिठाकर स्वर्ग को ले जाते हैं। अत: संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत है। इसलिए यत्न के साथ इस व्रत को करना चाहिए। उस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करना चाहिए और गौदान करना चाहिए।
इस प्रकार व्यासजी की आज्ञानुसार भीमसेन ने इस व्रत को किया। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी या पांडव एकादशी भी कहते हैं। निर्जला व्रत करने से पूर्व भगवान से प्रार्थना करें कि हे भगवन! आज मैं निर्जला व्रत करता हूं, दूसरे दिन भोजन करूंगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूंगा, अत: आपकी कृपा से मेरे सब पाप नष्ट हो जाएं। इस दिन जल से भरा हुआ एक घड़ा वस्त्र से ढंक कर स्वर्ण सहित दान करना चाहिए।

जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं उनको करोड़ पल सोने के दान का फल मिलता है और जो इस दिन यज्ञादिक करते हैं उनका फल तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं, ‍वे चांडाल के समान हैं। वे अंत में नरक में जाते हैं। जिसने निर्जला एकादशी का व्रत किया है वह चाहे ब्रह्म हत्यारा हो, मद्यपान करता हो, चोरी की हो या गुरु के साथ द्वेष किया हो मगर इस व्रत के प्रभाव से स्वर्ग जाता है।

हे कुंतीपुत्र! जो पुरुष या स्त्री श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करते हैं उन्हें अग्रलिखित कर्म करने चाहिए। प्रथम भगवान का पूजन, फिर गौदान, ब्राह्मणों को मिष्ठान्न व दक्षिणा देनी चाहिए तथा जल से भरे कलश का दान अवश्य करना चाहिए। निर्जला के दिन अन्न, वस्त्र, उपाहन (जूता) आदि का दान भी करना चाहिए।

वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी नाम से भी जाना जाता है। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उन्हें निश्चय ही मोक्ष तथा स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
निर्जला एकादशी व्रत पूजन से सब पर श्री विष्णु कृपा प्राप्त हो, आचार्य राधाकान्त शास्त्री,



About Author

यह भी पढें   भारत ने नेपाल के दार्चुला जिले में सामुदायिक विकास परियोजना की आधारशिला रखी
आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: