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विश्व के दो बड़े लोकतंत्र की साझेदारी – मोदी और ट्रम्प की दोस्ती : डॉ. श्वेता दीप्ति

डॉ श्वेता दीप्ति, काठमांडू । हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत की यात्रा की । इस यात्रा पर विश्व की निगाहें टिकी हुई थीं । ‘हाउडी मोदी’ के बाद सभी की दिलचस्पी ‘नमस्ते ट्रम्प’ में थी । एक भव्य समारोह, लाखों भारतीयों की उपस्थिति और अपने स्वागत से गदगद राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए मोटेरा के मैदान में तारीफ के पुल बाँध दिए । यह दौरा उस समय हुआ है जब अमेरिका में जल्द ही चुनाव होगा और उम्मीद यह जताई जा रही है कि ट्रम्प को इस भारत यात्रा का फायदा भी होगा ।

एक नजर भारत अमेरिका के सम्बन्धों पर

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि भारत और अमेरिका एक ‘स्वाभाविक सहयोगी’ हैं । यह गलत भी नहीं है आज विश्व के दो सबसे बड़े लोकतंत्र का साथ होना बाजपेयी की बात को सत्य ठहरा रहा है । बाजपेयी द्वारा कही गई बात को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद में दोहराई, जब उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका न केवल ‘स्वाभाविक सहयोगी’ हैं, बल्कि उनका सहयोग और संबंध २१वीं सदी में दुनिया की दिशा तय करेगा । दोनों देशों ने घोषणा की कि उनका संबंध समग्र वैश्विक सामरिक भागीदारी के स्तर तक बढ़ाया जाएगा और इस दिशा में पहल भी हो चुकी है ।

यात्रा के दौरान नई दिल्ली में आधिकारिक स्तर की वार्ता के बाद अपनी टिप्पणी में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ‘स्वतंत्र और संतुलित हिंद–प्रशांत क्षेत्र’ और ‘व्यापक व्यापार सौदे’ के लिए भारत के साथ मिलकर काम करने की बात कही । यह देखते हुए कि तीन साल पहले उनके सत्ता संभालने के बाद से भारत को अमेरिकी निर्यात ६० फीसदी तक बढ़ गया है, उन्होंने व्यापक व्यापार समझौते पर दोनों देशों द्वारा की गई जबर्दस्त प्रगति को रेखांकित किया । अमेरिका की छवि हमेशा से मालिकाना रही है किन्तु अहमदाबाद स्थित मोटेरा स्टेडियम में अपने संबोधन में ट्रंप ने भारत की विविधता और बहुसंस्कृतिवाद की प्रशंसा की, लेकिन जबर्दस्ती, धमकी और आक्रामकता के जरिये दबाव बनाने की कोशिश नहीं की । क्योंकि वह चाहते हैं कि भारत अमेरिका का प्रमुख रक्षा साझेदार बने । इसलिए उन्होंने कहा कि ‘एक साथ मिलकर हम अपनी संप्रभुता और सुरक्षा की रक्षा करेंगे तथा स्वतंत्र व मुक्त हिंद–प्रशांत क्षेत्र की रक्षा करेंगे ।’ इसी मद्देनजर दोनों देशों ने तीन अरब डॉलर के रक्षा सौदे पर हस्ताक्षर किए और राष्ट्रपति ट्रंप ने घोषणा की कि ‘अमेरिका इस दुनिया के सबसे अच्छे और सबसे अधिक घातक सैन्य उपकरणों में कुछ भारत को देने के लिए तत्पर है ।’

देशों की साझेदारी

हालाँकि ट्रम्प की भारत यात्रा को विपक्ष और आलोचक ने दिखावा ठहराया किन्तु यह सच नहीं है । २४ एमएच–६०आर बहुउपयोगी हेलिकॉप्टर (२.१२ अरब डॉलर) और छह अपाचे हेलिकॉप्टर (७.९६ करोड़ डॉलर) की खरीदारी भारतीय नौसेना और वायुसेना के लिए बेहद जरूरी है । सामरिक दृष्टिकोण से इस समय भारतीय युद्धपोत इन हेलिकॉप्टरों द्वारा प्रदान की जाने वाली पनडुब्बी रोधी क्षमता के अभाव में पनडुब्बी खतरे से खुद को प्रभावी ढंग से बचाने में असमर्थ है । भारत और अमेरिकी रक्षा संबंध अचानक तेजी से विकसित नहीं हुआ है, क्योंकि यह वही अमेरिका है जिसने १९५४ में पाकिस्तान को अपने खेमे में लिया था और १९७२ में चीन अमेरिका के बीच सौहार्द विकसित होते देखा गया है । राष्ट्रपति क्लिंटन की यात्रा से लेकर डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा तक दो दशक बीत चुके हैं । यानि इस रिशते को गहराने में काफी वक्त लगा है । धीमी प्रक्रिया से यह तथ्य भी स्पष्ट है कि भारत ने २००२ में जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इन्फोर्मेशन एग्रीमेंट (जीएसओएमआईए) पर हस्ताक्षर किया और चार में से तीसरे बुनियादी समझौते कम्युनिकेशंस ऐंड इन्फोर्मेशन सिक्योरिटी मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (सीओएमसीएएसए) पर २०१८ में हस्ताक्षर किया गया ।

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बीच में दोनों देशों ने २००५ के भारत–अमेरिकी परमाणु समझौते के माध्यम से रणनीतिक संबंधों की दिशा में एक निर्णायक बदलाव किया, जिसके जरिये अमेरिका उन पाबंदियों को हटाने में सक्षम था, जो भारत के साथ उसे सामरिक समझौते करने से रोकते थे । यह ट्रंप प्रशासन ही था, जिसके कार्यकाल में और चाहे कुछ भी हो, इसमें तेजी आई है । उन्हीं के कार्यकाल में सीओएमसीएएसए पर हस्ताक्षर किए गए, भारत को एक प्रमुख रक्षा भागीदार के रूप में नामित किया गया, और रणनीतिक व्यापार प्राधिकरण–१ (एसटीए–१) का ओहदा प्रदान किया गया, जो उच्च तकनीकी व्यापार के लिए मार्ग प्रशस्त करता है । हाल ही में दोनों देशों ने औद्योगिक सुरक्षा अनुबंध पर हस्ताक्षर किए, जो अमेरिकी और भारतीय कंपनियों के बीच सहयोग को बढ़ावा देगा ।

अमेरिका यह जानता है कि भारत उसका एक प्रमुख रक्षा साझेदार है । पिछले तीन वर्षों में ट्रंप ने भारत को सशस्त्र ड्रोन और एकीकृत वायु मिसाइल प्रौद्योगिकी की पेशकश की है । इतना है नहीं औद्योगिक सुरक्षा अनुबंध पर हस्ताक्षर करने से संयुक्त अनुसंधान एवं उत्पादन में निजी क्षेत्रों की भागीदारी आसान होगी । मालाबार संयुक्त सैन्य अभ्यास अब बड़ा हो गया है, पिछले वर्ष तीनों सेनाओं का अभ्यास किया गया । भारत ने तीन मूलभूत समझौतों में से दो पर हस्ताक्षर किए हैं–लाजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट और कम्युनिकेशंस कॉम्पैटिब्लिटी ऐंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट, जो संवेदनशील सैन्य सूचनाओं को साझा करने का मार्गदर्शन करता है और सेवा कार्य के लिए सैन्य सुविधाओं के पारस्परिक उपयोग की परिकल्पना करता है ।

अमेरिका यह अच्छी तरह जानता है कि उसे भारत से क्या चाहिए । विश्व स्तर पर चीन का बढ़ते आकार को अगर चुनौत िदेना है तो अमेरिका को भारत के साथ की आवश्यकता होगी । चीन के खिलाफ एक प्रतिरोधी शक्ति, आकार, अवस्थिति और आर्थिक क्षमता के लिहाज से भारत एशिया का एकमात्र ऐसा देश है, जो बीजिंग विरोधी गठबंधन को नेतृत्व दे सकता है । तथ्य यह है कि भारत का चीन के साथ सीमा विवाद है और बीजिंग की पाकिस्तान के साथ दोस्ती को खत्म करना भारत के लिए तार्किक है । लेकिन नई दिल्ली वास्तव में क्या चाहती है, यह स्पष्ट नहीं है ।

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भौगोलिक दृष्टिकोण से देखा जाय तो भारत और अमेरिका के भू–राजनीतिक हित समान नहीं है, जो पाकिस्तान, ईरान और रूस के साथ भारत के संबंधों से स्पष्ट है । मोटेरा स्टेडियम में उन्होंने जनसभा को संबोधित करने के दौरान उन्होंने पाकिस्तान का भी जिक्र किया । पाकिस्तान के बारे में ट्रंप ने कहा, ‘हर देश को अधिकार है कि वो अपने देश की सीमाओं की सुरक्षा करे । अमरीका और भारत ने यह फÞैसला किया है कि साथ मिलकर ‘आतंकवाद’ को रोकेंगे और उनकी विचारधारा से लड़ेंगे । इसी कारण राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद अमरीकी प्रशासन पाकिस्तान के साथ बेहद सकारात्मक तरीकÞे से काम कर रहा है ताकि पाकिस्तानी सीमाओं से सक्रिय ‘इस्लामिक आतंकवादी’ संगठनों और चरमपंथियों को नष्ट किया जा सके ।’ साथ ही वो यह कहने से भी नहीं चुके कि पाकिस्तान के साथ उनके बहुत अच्छे संबंध हैं । ट्रंप का कहना था, ‘पाकिस्तान से हमारे संबंध बेहद अच्छे हैं । इन प्रयासों के आधार पर हमें पाकिस्तान के साथ बड़ी सफलता के संकेत देखने को मिल रहे हैं । हमें पूरी उम्मीद है कि इससे दक्षिण एशिया के सभी देशों के बीच तनाव कम होगा, स्थिरता बढ़ेगी और भविष्य में एक दूसरे के बीच सौहार्द बढ़ेगा ।’

अब अगर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टिकोण से देखें, तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस यात्रा का सबसे बड़ा परिणाम उनकी खुद की और भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाना था । इसमें कोई संदेह नहीं है कि ट्रंप की यात्रा का कार्यकाल और मोदी के प्रति उनकी स्पष्ट पसंदगी तीसरे देशों से निपटने में भारत की सहायता करेगी । राष्ट्रपति ट्रंप की यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है, जब अमेरिका में जल्द ही राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं । अमेरिका में गुजरात के लोगों की एक बड़ी आबादी रह रही है । दुनिया भर में गुजरातियों की व्यावसायिक विशेषज्ञता प्रसिद्ध है । इसके अलावा गुजरात प्रधानमंत्री मोदी का गृह राज्य भी है । शायद इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रम्प के स्वागत के लिए गुजरात को चुना ।

निश्चित रूप से राष्ट्रपति ट्रंप की इस यात्रा से दोनों देश के दोस्ताना ताल्लुकात और मजबूत होंगे । दोनों देशों की कोशिश है कि द्विपक्षीय रिश्ते और आगे बढ़े । ट्रंप के रंगारंग स्वागत का मकसद यही संदेश देना है कि भारत अमेरिका को अपना विश्वसनीय दोस्त मानता है और इस रिश्ते को बहुत आगे ले जाना चाहता है । ‘मैं प्रधानमंत्री मोदी को पसंद करता हूं’, यह अमेरिकी राष्ट्रपति की चलताऊ टिप्पणी नहीं है, बल्कि इसका मतलब है । अमेरिकी राष्ट्रपति से पांचवीं बार मिलने वाले मोदी एक अनोखा मंत्र जानते हैं, जो वैश्विक नेताओं के साथ व्यक्तिगत रिश्ते बनाने में उनकी मदद करता है । ट्रंप और मोदी, दोनों ऐसे सार्वजनिक कार्यक्रमों के जरिये अपने मूल मतदाताओं को महत्वपू्र्ण राजनीतिक संदेश देते हैं । नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम से भारतीय मूल के गुजराती–अमेरिकियों के बीच ट्रंप को फिर से चुनाव में समर्थन मिलने की उम्मीद है । दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ खुशमिजाजी, गर्मजोशी और औपचारिकता का सार्वजनिक प्रदर्शन भारत और विदेशों में मोदी की छवि एवं प्रतिष्ठा बढ़ाएगा । इसका महत्व चीन और पाकिस्तान पर ही नहीं पड़ेगा, इससे जापान, कोरिया और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के रिश्तों को भी सकारात्मक संकेत मिलेगा । भारत यह दिखाना चाहता है कि यदि हमसे बेहतर रिश्ते बनाएं, तो न केवल हमारा फायदा है, बल्कि आपका भी फायदा है । दूसरी तरफ ट्रंप ने भी यह दिखाने की कोशिश की है कि अमेरिका भारत के साथ है और भारत से दोस्ती को और मजबूत करना चाहता है । इस मुलाकात के जरिये दोनों देश दुनिया को यह संदेश देना चाहते हैं कि दो बड़े लोकतंत्र अब एक साथ हैं । इससे भारत के विरोधी देशों, जैसे पाकिस्तान और चीन की मुश्किलें और बढ़ेंगी । उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अमेरिका और भारत ने मिलकर आतंकवाद को रोकने और उसकी विचारधारा से लड़ने का फैसला किया है । इसके साथ–साथ मैं यह भी कहना चाहूंगा कि अगर भारत और अमेरिका साथ आ गए, तो एशिया–प्रशांत क्षेत्र में चीन के वर्चस्व और विस्तारवादी नीतियों पर भी प्रभाव पड़ेगा ।

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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बुलावे पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहली भारत यात्रा में अपने परिवार के साथ सिर्फ छत्तीस घंटे के दौरे के लिए बारह घंटे का सफर कर जिस तरह आए, वही भारत और अमेरिका के रिश्तों के बारे में बहुत कुछ बता देता है । ट्रंप का अपने परिवार के साथ भारत आने का खास मतलब है, क्योंकि भारत पारिवारिक जीवन मूल्यों को महत्व देता है । कई बार दो देशों के बीच बेहतर रिश्ते होने के बावजूद शीर्ष नेताओं के आपसी संबंध उतने प्रगाढ़ नहीं होते । मोदी और ट्रंप के निजी रिश्ते इतने नजदीकी, प्रगाढ़ और गर्मजोशी भरे हैं कि दोनों देशों के संबंधों पर आज उसका अनुकूल असर देखने को मिल रहा है । एक वह दौर था, जब भारत के खिलाफ अमेरिका प्रतिबंधों की घोषणा करता था । लेकिन आज अमेरिका भारत को अपनी तकनीकों का लाभ देने के लिए तैयार है । यह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नजरिये और उनकी कोशिशों का सुखद परिणाम है ।(मार्च, 2920, अंक से)

डॉ श्वेता दीप्ति, सम्पादक हिमालिनी

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