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भारत-ईरान  संबंधों की नयी चुनौती : डॉ.करुणाशंकर उपाध्याय

डॉ.करुणाशंकर उपाध्याय, मुम्बई । विगत कुछ दिनों से भारतीय मीडिया और सोशल मीडिया पर सक्रिय तत्त्व चाबहार रेल परियोजना को लेकर ऐसी टिप्पणियां कर रहे हैं जिससे दोनों देशों के संबंध गर्त में चले जाएं।हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कूटनीति की कसौटी अत्यंत कठिन एवं जटिल होती है ।उसके समक्ष हमेशा शह और मात का खेल जारी रहता है।किसी एक ठेके के आधार पर अंतरराष्ट्रीय संबंध नहीं बदलते हैं। हरेक देश अपने हितों के अनुरूप अपनी विदेश नीति में बदलाव करता है। यह भी देखा गया है कि हर देश अपने मित्रों को भी झटका देकर उनकी मित्रता की परीक्षा लेता है।फिलहाल , यहाँ भारत-ईरान संबंधों की नयी चुनौती को समझने की जरूरत है। भारत ने ईरान की अनेक परियोजनाओं में निवेश किया है और उसने ईरान के माध्यम से अफगानिस्तान, मध्य एशियाई देशों और रूस तक अपने व्यापार को बढ़ाने की रणनीति तैयार की है।
हाल ही में ईरानके चाबहार बन्दरगाह के संबंध में एक रिपोर्ट सामने आई जिससे वैश्विक खेमे में काफी विवाद उत्पन्न हुआ है। रिपोर्ट यह कि ईरान ने चाबहार रेल प्रोजेक्ट से भारत को दरकिनार कर चीन को शामिल करने का निर्णय लिया है। लेकिन ईरान ने अब इन खबरों का खंडन किया है।अतः इस पूरे समाचार का सम्यक् विश्लेषण जरूरी है।
ईरान के बंदरगाहों और समुद्री संगठन के डिप्टी फरहाद मोंतासिर ने बुधवार को Al Jazeera से बातचीत में कहा कि ‘यह खबर बिल्कुल गलत है क्योंकि ईरान ने भारत के साथ चाबहार-जाहेदान रेलवे परियोजना को लेकर कोई डील नहीं की है।’मोंतासिर ने कहा, ‘ईरान ने भारत के साथ चाबहार में निवेश के लिए बस दो समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। पहला बंदरगाह की मशीनरी और उपकरणों को लेकर है और दूसरा भारत का यहां 150 मिलियन डॉलर का निवेश है।’ हालांकि, TOI के अनुसार, ईरान को उम्मीद थी कि भारत परियोजना में भूमिका निभाएगा, और भारत ने भी कहा है कि वह रेलवे लाइन बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत की तरफ से इसमें देरी के बाद ईरान ने अब इस प्रोजेक्ट पर अकेले काम करने का निर्णय लिया है। परन्तु सचाई यह है कि कि इस फैसले के जरिए ईरान इन प्रोजेक्ट्स की रुकावटों को दूर करना चाहता है और इसके साथ ही अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बावजूद भारत के साथ अपने संबंधों को और मजबूत कर सके।
सूत्रों के अनुसार ये पता चला था कि ईरान भारत को चाबहार जहेदान रेल लिंक परियोजना से बाहर निकालना चाहता था। दरअसल, ईरान अफगानिस्तान बॉर्डर पर स्थित जहेदान से चाबाहार पोर्ट को जोड़ने के लिए एक रेल लिंक का निर्माण किया जा रहा है, जो भारत की दृष्टि से बहुत अहम है। लेकिन पिछले कुछ हफ्तों से निरंतर बढ़ रहे चीनी निवेश के कारण ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि भारत को इस प्रोजेक्ट से बाहर किया जा सकता है। ये न केवल रणनीतिक रूप से एक विवादास्पद निर्णय होता, अपितु ईरान के लिए ये अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मारने वाली बात होती, क्योंकि ईरान के लिए भारत उसके तेल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है, लेकिन अमेरिका द्वारा भारत को मिली छूट पर रोक लगते ही ये सुविधा भी ईरान से छीन ली गई।
परंतु ईरान ने इन कयासों पर विराम लगाते हुए इस बात का खण्डन किया है कि वह भारत को चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट से बाहर नहीं कर रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि इस विषय पर कुछ भी आधिकारिक निर्णय नहीं लिया गया है, तो भारत को प्रोजेक्ट से दूर करने की बात ही बेहद हास्यास्पद होगी। ईरानी अफसर फ़हाद मुंतासिर के अनुसार, “जो भी स्टोरी द हिन्दू में प्रकाशित हुई, वो सरासर गलत है, क्योंकि चाबहार पर अभी भारत के साथ किसी भी तरह के दस्तावेज़ पर कोई हस्ताक्षर नहीं हुआ है”।ऐसी स्थिति में समझौते पर अंतिम बात कहना बेमानी होगी।
जब से वाशिंगटन ने ईरान के सहयोगियों पर भी चाबुक चलाना प्रारम्भ किया है, तभी से भारत को भी मजबूरी में ईरान से थोड़ी दूरी बनाकर रखनी पड़ी है। चूंकि चीन अभी भी ईरान से तेल आयात करता है, इसलिए ईरान के पास चीन से नजदीकी बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। लेकिन ईरान भारत का साथ भी नहीं खोना चाहता। इसलिए उसने चाबहार पोर्ट पर अपने वर्तमान रुख से भारत को परखने का प्रयास किया है कि क्या वो वाकई में उसका मित्र है, या फिर अन्य देशों की तरह भारत भी ईरान का कच्चा दोस्त है।
द प्रिंट से हुई बातचीत में एक वरिष्ठ ईरानी अफसर ने बताया, “इस प्रोजेक्ट को हम खुद ही वित्तीय सहायता दे रहे हैं। पर भारत के लिए दरवाजे बंद नहीं हुए हैं। भारत के साथ हमारे रिश्तों की कोई सीमा नहीं हो सकती”।ईरान के द्वार अभी भी भारत के लिए यथावत खुले हैं।
भारत ने भी वही स्पष्ट किया है कि वह किसी भी कीमत पर इस प्रोजेक्ट को अपने हाथ से जाने नहीं देगा। टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत के दौरान तेहरान में भारतीय दूतावास से संबन्धित कुछ वरिष्ठ अफसरों ने बताया, “भारत चाबहार से जहेदान रेलवे लाइन को निर्मित करने के लिए प्रतिबद्ध है और वह ईरानी अफसरों से इसी परिप्रेक्ष्य में बातचीत करने में लगा हुआ है”।यह संभव है कि शीघ्र ही कोई सकारात्मक निर्णय आए।
अगर इन बातों का विश्लेषण किया जाए तो ईरान ने वास्तव में भारत को इस प्रोजेक्ट से बाहर नहीं निकाला है। ईरान का संदेश यह है कि भारत को ईरान को हल्के में बिलकुल नहीं लेना चाहिए, और वैसे भी चीन तो ईरान में ‘निवेश’ करने के लिए घात लगाए बैठा है। लेकिन ईरान ने भी कोई कच्ची गोलियां नहीं खेली है। वुहान वायरस के अपने कड़वे अनुभव के कारण ईरान चीन का गुलाम नहीं बनना चाहता, क्योंकि उसे भी ज्ञात है कि यदि बात हाथ से निकल गई, तो वह भी उसी तरह चीन के मायाजाल में फंस जाएगा, जैसे मालदीव, श्रीलंका, पाकिस्तान और नेपाल फँसे हैं। इस समय संपूर्ण विश्व चीन के विरुद्ध है अतः वह अपने हित का इंतजार कर रहा है।
ईरान के वैसे भी दो प्रमुख लक्ष्य है – परमाणु हथियारों में महारत हासिल करना और अमेरिकी प्रतिबंधों से मुक्त होना। इसलिए अब वह भारत की ओर उम्मीद लगाए बैठा है, क्योंकि इस समय भारत ही एक ऐसा देश है, जो अमेरिका के साथ न केवल मैत्री संबंध रखे हुए है, अपितु अमेरिका पर  प्रभाव भी डालने की क्षमता भी रखता है। हालांकि, अब नयी दिल्ली ने भी ईरान का वास्तविक संकेत समझ लिया है और वह यह है ईरान का भारत से मदद की गुहार।ईरान यही चाहता है कि भारत उसके ऊपर लगे प्रतिबंधों में ढील दिलवाए। अमेरिका ने भी चाबहार परियोजना को अपने प्रतिबंधों से मुक्त रखा है।
ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद जारीफ़ ने जनवरी में बताया था कि यदि नई दिल्ली चाहे तो वह वाशिंगटन और तेहरान के बीच के तनाव को कम करने में काफी मदद कर सकती है। अप्रैल में हिन्दुस्तान टाइम्स से बात करते वक्त ईरान के राजदूत आली चेगेनी ने कहा था, “हम आशा करते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विशेषकर भारत अमेरिकी प्रतिबंधों के विरुद्ध खड़ा होगा, जिसके कारण ईरान के निवासियों को इस महामारी के वक्त काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है।” जिस तरह से अमेरिका का झुकाव भारत की ओर बढ़ा है उसे देखते हुए ईरान को उम्मीद है कि भारत अवश्य ईरान की मदद कर सकता है और नई दिल्ली को भी उम्मीद है कि राष्ट्रपति चुनाव के बाद जियोपोलिटिकल समीकरण में बदलाव आएगा। यह सब जानते हैं कि जनरल सुलेमानी की हत्या के बाद अमेरिका और ईरान के बीच संभावित युद्ध भारत ने रुकवाया था।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि ईरान का चाबहार पोर्ट पर वर्तमान रुख किसी भी तरह से भारत को दरकिनार नहीं कर रहा है। ईरान केवल चाबहार को अपना हथियार बनाकर भारत के जरिए अमेरिकी प्रतिबंध से छुटकारा पाने का प्रयास कर रहा है क्योंकि अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था अस्तित्व के संकट से जूझ रही है।ऐसी स्थिति में अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर शीघ्रता से टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। हमें कूटनीति की सूक्ष्मता को समझने के लिए धैर्य की जरूरत है।अब भारत – ईरान संबंध नयी कसौटी पर कसे जाने हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि भारत सरकार इस पर खरी उतरेगी।

( लेखक विदेश  व रक्षा मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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