नीतीश कुमार 15 साल से बिहार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं
अभिषेक राज शर्मा जौनपुर, नीतीश कुमार 15 साल से बिहार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं,
सुशासन बाबू के नाम से विख्यात नीतीश कुमार बहुत चालाक नेता है।
नीतीश कुमार अक्सर अपने छवि को विकास के रूप में दिखाने के लिए अच्छी तरह से मार्केटिंग करते हैं।
मार्केटिंग की वजह से उनकी छवि एक विकास पुरुष, धर्मनिरपेक्ष आदि रूपों में देखा जाता है,
नीतीश कुमार अपने स्वार्थ के लिए जॉर्ज फर्नाडीज, शरद यादव और बिहार के तमाम उभरते नेताओं को चालाकी से किनारे लगा दिया था,
2014 के लोकसभा चुनाव में कट्टर हिंदुत्व चेहरे नरेंद्र मोदी के खिलाफ उन्होंने गठबंधन से किनारा करके 2015 का चुनाव लालू की पार्टी राजद के साथ महागठबंधन करके बिहार का चुनाव फतह किया।
लालू के छोटे सुपुत्र उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के लोकप्रियता को देखते हुए गलत आरोप लगाकर फिर से भाजपा के साथ सरकार बना लिया।
आप देखते हो 15 साल से बिहार में चमकी बुखार से हजारों बच्चों की जान चली जाती है, हर वर्ष बाढ़ से त्रस्त रहता है।
नीतीश जी बाढ़ का दौरा हर वर्ष अवश्य करते हैं, आश्वासन,वादा फिर वही मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।
किसान खेती छोड़ कर अन्य राज्यों में मजदूरी के लिए पलायन कर जाता है, वहां पर बिहार के पुराने अपराधिक इतिहास के कारणों से काफी जलील होना पड़ता है।
अपराध के मामले में थोड़ा सा कमी आई है मगर अपराध अपने चरम सीमा पर है,
सुनने में आता है कि कहीं कहीं सुनवाई नहीं होती
जिससे अपराध के ग्राफ का रिकॉर्ड कहां मिलेगा।
पिछले दिन बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे जी एक पत्रकार को गंदी गंदी गालियां बक रहे थे।
क्या बिहार में यही लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का सम्मान है।
वही पांडे जी जो सोशल मीडिया पर हमेशा छाए रहते हैं यूं कहें तो उनको भी शायद अपने भविष्य की तलाश है।
क्या यही लोकतंत्र की खूबसूरती है क्या यही नीतीश कुमार के बिहार का विजन है।
बिहार की जनता सब समझती है मगर नीतीश कुमार के मार्केटिंग के आगे सब के दुख दर्द और भ्रष्टाचार अव्यवस्था और पत्रकारों के प्रति डीजीपी की बात काफी छोटी हो जाती है।
भूख,अशिक्षा और विकास के कार्य कई मुद्दे जिनके
कई अधूरे सवाल रह गए हैं, जिनका जवाब नीतीश कुमार के पास नहीं है
अभिषेक राज शर्मा जौनपुर