मगर चुप न रहो !
सच ही कहा गया है, सृजन या तोर् इश्वर कर सकता है या फिर औरत । र्!र् इश्वर को तो किसी ने देखा नहीं । और मानव का सृजन करने के बावजूद औरत को समाज में वो सम्मान मिला नहीं ! लेकिन अब बहुत हर्ुइ सम्मान पाने की लडर्Þाई, पितृसत्तात्मक समाज की मूढÞता इस कदर है कि उनसे सम्मान पाने की लडर्Þाई लडÞने से अच्छा तो यह है कि उनकी कुंठा पर हंसा जाए, व्यंग्य किया जाए, डांस किया जाए, थोडÞा रोया तो थोडÞा चिल्लाया जाए, गुस्से का इजहार किया जाए, प्रतिकार किया जाए । । लेकिन हर हाल में बस और बस’बोला जाए’।! दुनिया के २०० देशों की एक करोडÞ स्त्रियों ने अपनी आवाज उठाने की शुरुआत उस दिन से की जिसे इस भूमंडलीकृत संस्कृति में वेलेंटाइन डे कहते हैं । । वेलेंटाइन डे, मतलब प्रेम दिवस ! करुणा, ममता और गरिमा की साम्राज्ञियों ने अपने अंदर के प्रेम को’बोल कि लब आजाद हैं तेरे’में बदल दिया, ढाल दिया !
दिल्ली के संसद मार्ग पर सैकडÞों लडÞकियां, किशोरियां, युवतियां और महिलाएं अपनी बुलंद आवाज में ये संदेश दे रही थीं कि वेलेंटाइन डे का मतलब केवल हमें फूल देना नहीं, हमारा सम्मान करना भी है, हमें प्रेम देना ही नहीं, हमारी गरिमापर्ूण्ा पहचान को स्वीकार करना भी है । ये महिलाएं’वन बिलियन राइजींग’अर्थात १०० करोडÞ महिलाओं की जागरूकता अभियान का हिस्सा थीं, जो विश्व भर के २०० शहरों में १४ फरवरी को आयोजित हुआ था ।
संसद मार्ग पुलिस स्टेशन के ठीक सामने सडÞक के बीचों बीच एक बडÞा सा बोर्ड साफ संदेश दे रहा था,’ बस, औरतों पर हिंसा अब और नहीं ।’ सडÞक के दोनों ओर कपडÞों के लाल, नीले, गुलाबी रंग के बैनरों पर स्त्रियों ने अपनी भावनाओं का इजहार किया था । उन भावनाओं में उनके स्त्रीत्व की मजबूत झलक थी ।
आधुनिक विश्व के सबसे बडÞे रहस्यदर्शी ओशो ने कहा था,’ यदि महिलाएं चाहें लें तो पूरी दुनिया में कहीं युद्ध ही न हो । क्योंकि हर युद्ध में किसी न किसी स्त्री का बेटा, किसी का पति तो किसी का भाई मरता है ।’ लगता है उस प्रबुद्ध पुरुष की पुकार आज जाकर दुनिया भर की महिलाओं के कान में पडÞी है । महिलाओं ने बैनर पर लिखा था,’ ‘हम हर तरह के युद्ध को’न’कहते हैं- वो युद्ध चाहे घर के बाहर हो या चाहे घर के भीतर ।”प्रेम दिवस पर महिलाओं का संदेश स्पष्ट था कि पुरुष अपनी सोच में बदलाव लाएं, हम अब और हिंसा सहन नहीं करेंगे ।