हमको खुद ही लड़ना होगा : पुष्पलता सिंह
मैं पुष्पलता सिंह नई दिल्ली से हूँ, और शास्त्रीय संगीत की अध्यापिका हूँ, मेरे पति डिफेंस में कार्यरत थे जो अभी सेवानिवृत हैं । दो बेटे एक बेटी है तीनों शादी शुदा हैं । लेखन में मेरी रुचि विवाह से पहले से ही थी । कहानी, उपन्यास, लेख लिखती थी पर कभी छपवा नहीं पाई, और बच्चों को काल्पनिक कहानी बनाकर सुनाती, फिर एक दिन खयाल आया की क्यों ना इन्हें शब्दों में उतार दूँ ।
फिर समाज की कुरीतियों पर लिखने का मन हुआ तो लेख लिखने लगी और ऐसे ही अपनी कल्पनाओं से कुछ मोती उठाकर उन्हें कविता और कहानी का रूप देने लगी । इसकी कोई शिक्षा नहीं ली, अपनी भावनाओं को और कल्पनाओं को शब्दों में बाँधती चली गई । परिवार का साथ मिला ।
शादी के बाद सबके हिस्से का समय निकालने से जो समय मिलता तो उसमे संगीत का रियाजÞ और लेखन करती, अब बच्चे बड़े हो गए हैं तो खुद को संभाल लेते हैं । औरत होने के नाते खुद को स्थापित करना आसान तो नहीं पर कोई मुश्किल भी नहीं है, ये हर औरत पर निर्भर करता है कि किससे कितनी बात करनी है और कितनी दूरी रखनी है, सभी महिला पुरुष अच्छे होते हैं हम किसी को गÞलत साबित नहीं कर सकते, जबतक हम कोई गलती न करें ।
सदियों से समाज पुरुष प्रधान देश रहा है, अब पुरुषों को भी समझना होगा की औरत किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है । आज जमाना बदल गया है नारी पुरुष के कंधे से कंधा और कदम से कदम मिलाकर चलती है, नारी अंतरिक्ष तक जा पहुची है, उसे किसी की पहचान की आवश्यकता नहीं है, वो अपनी पहचान बना सकती है ।
मुझे कभी ऐसा नहीं लगा की मैं किसी से कम हूँ या कमजोर हूँ ये तो हमारी मानसिकता पर निर्भर करता है । महिला हो या पुरुष हो एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए और सबसे बड़ा है विश्वास, जो सेतु का कार्य करता है । मेरा तो देश की सभी महिला बहनों से यही कहना है, की अबला बनने से बहतर है की शक्ति बनना चाहिए खुद की और समाज की ताकत बनो,, हर स्त्री को, एक बालक को जन्म देने से बड़ा कोई भी दर्द नहीं हो सकता, अगर ये पुरुष प्रधान देश है तो हमको खुद ही लड़ना होगा । आज नारी ने पुरुष के साथ कदम बढ़ाया है और मुकाम पाया है, अच्छे औहदो पर जाकर अपनी पहचान को खुद बनाया है और भारत का मान बढ़ाया है । अपने विचारों में शुद्धता रखकर एक निर्मल नदी की तरह मर्यादा में बहे । मेरी तरफ से सभी बहनों को अनंत शुभकामनाएँ ।