प्रशासन की सख्ती और कोरोना की मस्ती में कोई रहस्य तो नही ? कैलाश महतो
कोरोना महाराज के आगमन से सारा ट्राफिक क्लियर हैं । सडकों पर किसी की अगर दर्शन होती है तो वो दिन में केवल सन्नाटा, प्रहरी और रात को प्रहरी और तस्कर
काठमाण्डौ में मेडिकल की तैयारी कर रहे एक छात्र से आज अचानक मुलाकात हुई । दर असल उनसे हमारे परिवार में हमारा अक्सिजन रेट नाप देने के लिए अनुरोध किया गया था । बातों ही बातों में विद्यार्थियों के भविष्य पर चिन्ता जताते हुए उन्होंने कहा कि इस बात को वे लोग भी नहीं समझ पा रहे हैं कि गत साल से ही अपने कर्म क्षेत्र में रहे कोरोना ने सरकारी लकडाउन, नाकावन्दी और निषेधाज्ञा से पूर्व किसी भी र्याली, सभा, सम्मेलन, भोज, पिकनिक, विवाह, आन्दोलन, पार्टी, नाच घर, शराब खाना, पाठशाला, मेला, बाजार आदि में दखल नहीं दी ।
उसने न किसी आन्दोलनकारी, न कोई भाषणवाज, न कोई नेता और न किसी शराबी को कुछ बिगाड पाया । मगर सरकारें ज्यों ही फरमान जारी कीं, लकडाउन लागू की, कोरोना की मस्ती हर अस्पताल में, हर क्लिनिक और स्वास्थ्य संस्थानों में कोहराम मचाने का मानों उसने इजाजत पत्र पा लिया हो । हर घर में, हर मन में, हर देश में, हर भेष में, हर उम्र में, बडे तिब्र में उसने अपना प्रसिद्धि, परिचय और शासन की आदेश कर दी है और उसका पालन करना दुनियाँ के सारे राज्य और सरकार की प्रणाली बन गई है ।
कोरोना की गरिमा की ताकत का अन्दाजा इससे बडी आसानी से लगाया जा सकता है कि उसके आगमन की समय और सूची भी दुनियाँ के सारे सरकार और मेडिकल क्षेत्र को अग्रिम जानकारी रहती है ठीक उस तरह जिस तरह किसी राष्ट्राध्यक्ष या सरकार प्रमुख की यात्रा और कार्यक्रम तिथि तय और पूर्व घोषित होती है ।
उतना ही नहीं, वह किस देश में, किस भेष में, कितने दिन के लिए और किस उम्र के लिए आने बाला है, वह विश्व स्वास्थ्य संगठन और सरकारों को कोरोना के सचिवालय द्वारा पूर्व जानकारी कर दी जाती है और बेचारी जनता की सेवा, उसके जन धन की रक्षा, शिक्षा और रोजगार की चिन्तक सरकारें अपनी जनता के लिए लकडाउन और निषेधाज्ञा कर घर में ही रहकर कोराना से बचने के लिए लकडाउन के अवधि तक भूख प्यास का व्रत कर परमात्मा से प्रार्थना करने को कहती हैं ।
सरकार का मतलव ही होता है – जनता के प्रति उत्तरदायी व जिम्मेवार कानुनी विधायिका । जिम्मेवारी तो सरकार हर रुप में निर्वाह करेगी ः वह चाहे भ्रष्टाचार के माध्यम से हों, महंगाई के माध्यम से हों, तस्करी के माध्यम से हों, लकडाउन और निषेधाज्ञा के माध्यम से हों, नंगे प्रशासन के माध्यम से हों, अत्याचार और विभेद के माध्यम से हो या, रोग, व्याधी और महामारी फैलाने के माध्यम से ही क्यों न हों ।
भारतीय सीमा से सटे अमानीगंज गाँव के एक गरीब ने लगातार हमें कल्ह रात से फोन कर उनके परिवार को भूख से बचाने के लिए अनुरोध कर रहे हैं । समाजसेवी दिनानाथ यादव के अनुसार लकडाउन के बाद उनके जैसे दर्जनों घरों के चुल्हे जलना बन्द हो गये हैं । उनके बच्चे लोगों के बगीचें मे जाकर कच्चे आम और केले खाकर दिन बिता रहे हैं । बडे बुजुर्ग भूख से दम तोडने के हालात में हैं । शौचालय में जाकर पिसाब करने के आलावे खाली उनके पेटों से कुछ निकलने बन्द हो रहे हैं ।
कोई भी उपाय से किसी जनप्रतिनिधी को हों, प्रदेश सरकार से हों या केन्द्र सरकार से हों, कम से कम उनके जीवन रक्षा के लिए कुछ करने का अनुरोध आ रही हैं । जनप्रतिनिधियों को कमिशन और भ्रष्टाचार के रकम बाहेक अन्य कुछ दिखाई नहीं पड रही है । उनके फोन नहीं उठ रहे हैं ।
कोरोना महाराज के आगमन को सरकारें इतना महत्व दे रखी हैं कि पब्लिकों से खचाखच भरे राहों के जैसे लोगों को या तो राह छोडने पडते हैं या भीआइपी की सवारी न गुजडने तक बगल में घण्टों खडे होने पडते हैं । उसी प्रकार कोरोना महाराज के आगमन से सारा ट्राफिक क्लियर हैं ।
सडकों पर किसी की अगर दर्शन होती है तो वो दिन में केवल सन्नाटा, प्रहरी और रात को प्रहरी और तस्कर । सडक और बाजार में किसी का साम्राज्य है तो वह केवल और केवल सन्नाटा, प्रहरी, तस्कर और कमिशनखोरों का । तस्कर और कमिशनखोरों का औकात फिर इतना है कि वह चाहे जो भी करें, किसी भी सामान का मूल्य चाहे वो जितना रख दें, किस माँ का लाल है कि उसका विरोध कर लें, उसका सही दाम का खोजबिन कर लें ।
अगर किसी ने खोजबिन की तो उसे खाने पिने के सामान तो क्या, उसे दवा और डाक्टर तक मिलना मुसिबत हो जोयगा । सरकार इतना सजग है कि इस कोरोना काल में भी अपने जनता को “सरकारी कर” हर हाल में चुक्ता करने को सजग करती है । इसी काल में पेट्रोलियम पद्दार्थों का मूल्य में प्रगति हो रही है ।
एक जापानी ल्याव वैज्ञानिक और रिसर्चर, जिन्होंने वुहान के ल्यावों में तकरीबन चार सालों तक काम किया है, का दावा है कि कोरोना कोई प्राकृतिक भाइरस या रोग नहीं, बल्कि यह अप्राकृतिक और मानव निर्मित भाइरस है । उनका कहना है कि अगर यह प्राकृतिक होता तो गर्म देशों में फैलने बाला यह भाइरस ठण्ड देशों में नहीं जाता ।
अगर यह ठण्डी में फैलता तो तो गर्मी में दम तोड देता । आश्चर्य की बात है कि प्राकृतिक कोई रोग या महामारी अपना भेरिएन्ट इतना कैसे बदलेगा । सबसे ताज्जुब की बात यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन, बडे बडे चिकित्सक और सरकारों को यह पहले ही पता चल कैसे जाता है कि कोरोना अपना रुप और भेष बदलेगा । पहले बूढों में आया । फिर यूवाओं में, और अब यह कि बच्चों के लिए भी अपना रुप बदलने बाला है । प्राकृतिक महामारी अगर ऐसा करता तो पृथ्वी के औषधी विज्ञान और वैज्ञानिकों को पूर्व जानकारी होना अचरज की बात है ।
एक यूट्यूव भीडियो के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बेलारुस सरकार को अपने देश में लकडाउन करने के लिए अरबों रुपये की पेशकश करने की बात तो थप आश्चर्य प्रकट करता है । सवाल यह जाहेर खुल्ले तौर पर क्यों नहीं किया जा सकता कि जिस देश और सरकार पर विश्व के शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों ने उससे हर हिसाब लेने का दावा किया था, वे आज चूप क्यों हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं कि विश्व के सारे सरकार, स्वास्थ्य संठगन, स्वास्थ्य विज्ञान, स्वास्थ्य वैज्ञानिक, सारे उद्योगपति तथा व्यापारी मिलकर कोरोना और लकडाउन के लिए अघोषित स्वागत द्वार निर्माण किये हों ? प्रशासन की सख्ती और कोरोना की मस्ती में मिली भगत होने की कोई रहस्य तो नही ?