Fri. Apr 19th, 2024

Himaliniकैलास दास , जनकपुर,११सितम्वर। जनकपुर के रेल्वे स्टेशन के नजदीक रही ‘सिसबन्नी’ मे पन्नी और बोरे की झोपडी बनाकर रह रहे आदिवासीयो को जब हम फोटो खिचने के लिए क्यामरा आँन किया तो उन्होने कहा, ‘फोटो खिच्ने से अच्छा कुछ खाने के लिए दे दो भाई साहब ! फोटो लेकर आपको फायदा होगा, लेकिन हमारी दिनचर्या तो ऐसे ही रहेगी । हमे कोई नही देखने वाला है ।’
जब हमने उनसे कहा कि ऐसी गन्दगी और जंगल जैसी जगह मे आपको डर नही लगता है । तो उन्होने कहा, इसी जंगल और गन्दगी मे हमारी जन्म होती है और मरण भी । दिन भर माँगते है और रात मे इसी बोरे की बनी झोपडी मे सोते है ।
पन्नी और कागज इक्कटा कर इट के चुल्हो पर खाना बना रही महिला कभी भी अपने आप को महसुस नही किया कि राजतन्त्र, गणतन्त्र और लोकतन्त्र क्या है ? सभासद्, नेता और भद्रभलादमी कौन है ? वह कहती है जब हम लोग अच्छे जगहो पर निवास करना चाहते हैं तो कभी वहाँ के लोग हमे भगा देते है तो कभी पुलिस की डण्डे खाना पडता है । हम आदिवासी को अभी तक किसी ने नागरिक नही सम्झा है । अगर हमे इस देश का नागरिक सम्झा होता तो किसी कोने मे हमे भी जगह मिल जाता ।
अगर आप लोग हमे सहयोग करना चाहते हैं तो हमारी बात को उस जगह पहुँचा दिजिए जहाँ से हमारी अधिकार सुनिश्चित हो सके ।



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