हाइकू
हाइकू -मुकुन्द आचार्य हिमाली हवा भ्रिष्टाचार के मिमता डोर दिेह सराय जिरा जवानी किल क्या होगा – चल्लाना ही है विेश्या ही तो है निव द्वार का तिुझे पाना है किैसे आऊँ मैं सिुबह शाम लिोहे के चने भिगवान हैं |
दर्द टूटे दिल का :-सुनील जैन, दिल्ली तेरी हर खुशी में, शामिल रहूँगा मैं, देख लाल जोडÞे में सजी है तू और मुबारक देने वालों की कतार में शामिल हूँ मैं लब खामोश होंगे मगर दिल देगा तुझे सदा तुझ से दूर हूँ, मगर नहीं हूँ, तुझ से जुदा काश उस रोज लाल जोडÞे में सजी, मेहंदी वाले हाथ उठा कर, कह देती मुझे अलविदा कुछ कदम साथ चले थे हम तुम, पर अब मेरी जिंदगी का बीता किस्सा बन गई है तू मुबारक हो, शहर के नामी घराने का हिस्सा बन गई है तू जब से तू किसी और की हर्ुइ है भटक रहा हूँ मैं दर-बदर पर इस हवेली के साये में बैठ कर कुछ सकूँ मिला क्या यही हवेली है तेरा नया पता – तेरे दर को छू कर आती है जो बादे सबा पोंछ जाती है मेरे बहते अश्कों को कौन कहता है तू हो गई है मुझ से जुदा ! |
यादों के झरोखे से
जब कोई भी मां छिलके उतारकर |