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हकीकत से रूबरू कराती एक फिल्म : अमिय भूषण

दी कश्मीर फाइल्स

अमिय भूषण, 27 मार्च । कला केवल मनोरंजन नही अपितु भावनाओं के अभिव्यक्ति का भी मसला है। इसे फ़िल्म दी कश्मीर फाइल्स से पुष्ट किया है।वही इसने वर्षों से बेचे जा रहे झूठ को भी बेनकाब किया है।जिसके बाद से वामी इस्लामी गठजोड़ सकते में है।केजरीवाल सरीखे अराजक नेता इस पर व्यंग्य कर रहे है।जबकि कश्मीरी मुस्लिम नेता इसे खारिज करने में लगे है। किंतु फ़िल्म चहुओर सराही जा रही है।यह एक अहिंसक अल्पसंख्यक समुदाय के उत्पीड़न की सत्य घटना है।जिन्हें भयंकर यातनायें दी गई।



रिलीज के बाद यह फ़िल्म अब इस्लामिक अतिवाद के विरुद्ध एक साक्ष्य और संदेश दोनों है।जिस फिल्म को प्रचार के लिए टेलीविजन मे जगह और स्क्रीन वितरक नहीं मिल रहे थे वो अब ब्लॉकबस्टर सुपर डुपर हिट हो चुकी है।दुनिया भर मे इसके चर्चे हो रहे है।फ़िल्म ने भाषाई सीमाओं को भी लांघ यह सफलता प्राप्त की है।भारत के अहिंदी भाषी प्रान्तों से लेकर गैर हिंदी भाषी देशों में भी इसने झंडे गाड़े है।न्यूजीलैंड मे इसपे रोक लगी तो पूर्व उप राष्ट्रपति विंस्टन पीटर्स ने इसे स्वतंत्रता पर हमला बताया।वही पड़ोसी मुल्क नेपाल मे तो यह भारत की तरह सफल है। यहाँ फ़िल्म पिछले शुक्रवार को लगी थी।पहले जहाँ प्रदर्शन को लेकर एक संकोच था वही पत्रकार बुद्धिजीवीयों के पहल से ये अब सिनेमाघरों तक आई है।जिसमें एक सक्रिय भूमिका नेपाल के इकलौते हिंदी ऑनलाइन Thehimalini.com तथा हिंदी पत्र हिमालनी के संचालक सच्चिदानंद मिश्र की भी रही है। दीगर हो की नेपाल मे शासन और प्रभुत्वशाली तबके के नाते हिंदी सरकारी मान्यता और प्रोत्साहनों से वंचित है।किंतु पहली बार इस फिल्म ने बहुत कुछ बदल दिया है।यहाँ फिल्म देख कर निकले लोग न्याय के पक्ष में प्रदर्शन कर रहे है।हाल ही में एक ऐसा बड़ा प्रदर्शन नेपाल के वित्तीय राजधानी बीरगंज मे भी हुआ है।वही बात अगर टेलीविजन की करे तो जो इतिहास रामानंद सागर की रामायण और बीआर चोपड़ा के महाभारत ने रचा वैसा ही जादू विवेक रंजन अग्निहोत्री करते दिख रहे है।महज एक अदद समीक्षा को तरसती फ़िल्म के पक्ष में हजारों कलमें उठी है।

सोशल मीडिया पर न केवल फिल्म ट्रेंड कर रही है अपितु सड़कों पर भी चर्चे पुरजोर है।भावनाओं के उबाल को आप नुक्कड़ से बाज़ार तक देख सुन सकते है।वही वेदना के प्रवाह को पिक्चर हॉल से टेलीविजन स्टूडियों तक महसूस किया जा सकता है।फिल्मी गणितज्ञों के गुणा गणित को उलटने वाली यह दूसरी भारतीय फ़िल्म है।इससे पहले ऐसा कमाल केवल जय संतोषी माँ सिनेमा ने किया था।बेहद कम संसाधन बिना कोई स्टारकास्ट के बने इस सिनेमा से कई तय मान्यताओं को भी ध्वस्त किया है। मसलन इस्लाम मोहब्बत का मजहब है।वही मस्जिदें केवल अमन के पैगाम परोसती इबादतगाह है।फिल्म ने तथाकथित कश्मीरियत की भी पोल खोल कर रख दी है।हिंदू यहाँ भेड़ और मुस्लिम सदैव से भेड़िये थे।वही इस कश्मीरियत का जमुहरियत यानी लोकतंत्र से कभी कोई वास्ता नहीं रहा है।अगर होता तो ना हथियार उठते और ना ही कश्मीरी मे हिंदुओं का नरसंहार होता।बात इसके इंसानियत की करे तो वो कब की मर चुकी है।यहाँ के बहुसंख्यक मुस्लिम अवाम को केवल हिंदू औरतों के साथ कश्मीर चाहिये था।हिंदू पुरुषों के लिए तो इनका नारा रालिव,त्सालिव और गैलिव था।इस्लाम अपनाओ भाग जाओ या मरने को तैयार हो जाओ।तुम्हारे बाद तुम्हारा हर कुछ हमारा है।यह फ़िल्म वास्तविक घटनाओं के साथ इस सत्य को भी उजागर करती है।वही भारत मे जारी छद्म धर्मनिरपेक्षता की पोल पट्टी खोलती है।इस फ़िल्म की तुलना स्टीवन स्पीलवर्ग की शिंडलर्स लिस्ट से हो रही।शिंडलर्स लिस्ट यहूदी नरसंहार पर आधारित एक ऐतिहासिक ड्रामा है।जिसने दर्जन भर अकादमी पुरस्कारों के साथ सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ फिल्मों मे स्थान बनाया है।बदलते वक्त मे लोग अब काल्पनिक रूमानी इश्क और तथ्यों के तोड़ मरोड़ वाली फिल्मों से ऊब गये है।वो ऐतिहासिक घटना और सत्य के साक्षात्कार का दृश्यावलोकन करना चाहते है।

इन दिनों वाइकिंग्स:वलहल्ला नामक ऐतिहासिक टीवी ड्रामा बेहद लोकप्रिय हो रहा है।यह यूरोप के मूर्तिपूजक वाइकिंग्स समुदाय और उनके धर्म की संघर्ष गाथा है।इसमें ईसाइयों के क्रूर अमानवीय चरित्र को दिखाया गया है।जबकि इसे देखने दिखाने वाले दोनों यूरोपियन अमेरिकन है।इसके उलट भारत में एक वर्ग कश्मीर फाइल्स को एक समुदाय के खिलाफ बता रहा है।वही इसे सामाजिक द्वेष का कारण बता कोर्ट द्वारा रोक का भी प्रयास किया गया है।फिल्मों प्रचार के लिए चर्चित एक टीवी शो पे इन्हें नही बुलाया गया।पहले कारण प्रसिद्ध कलाकारों का ना होना बताया गया।वही बाद में इसके हास्य मंच होने की दलील दी गई जो बेहद शर्मनाक है।कला तो बस माध्यम है इसके लिये लोकप्रिय कलाकार से अधिक जनप्रिय विषयों का मतलब है।जहाँ तक प्रसिद्ध कलाकारों का प्रश्न है तो अनुपम खेर और पल्लवी जोशी किसी परिचय के मोहताज नहीं है।बात हास्य की हो तो इससे भी पीड़ा करुणा घृणा को दर्शाया जा सकता है।महान कलाकार चार्ली चैप्लिन ने तो वेदना विस्थापन पाशविकता को सदैव ऐसे ही दिखाया है।

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अब जब फ़िल्म आ चुकी है तो अगली कड़ी और इसपे आधारित वृस्तृत टीवी ड्रामा की बात उठी है।दूसरे नरसंहारों के ऊपर भी चलचित्र की माँग हो रही है।इस बीच प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में इस फ़िल्म की चर्चा किया है।जिसके बाद फिल्म की बढ़ती लोकप्रियता और सामाजिक स्वीकार्यता को देख फ़िल्म एवं मनोरंजन जगत से भी बधाई संदेश आये है।कई प्रसिद्ध अभिनेता,अभिनेत्री और निर्माता निर्देशकों ने इस पर अपने मंतव्य शुभकामनाओं संग प्रेषित किये है।जहाँ तक आने वाले वक्त में फ़िल्म या टीवी ड्रामा की बात है तो ऐसे कई विषय है।इस फिल्म के पात्रों के आपसी संवाद से भी मुद्दे लिये जा सकते है।किंतु सर्वाधिक उत्सुकता कश्मीरी इतिहास का पहला नरसंहार जगाता है।निर्देशक अगली कड़ी के तौर पर शाहमीर वंश के शासन और हिंदू उत्पीड़न को ले सकते है।उन्हें कश्मीरी इतिहास के खलनायक शेख अब्दुल्ला की हकीकत से भी लोगों को रूबरू कराना चाहिए।अब जब प्रधानमंत्री मोदी ने भारत विभाजन और उत्पीड़न की बात छेड़ी है तो निश्चित ही इसपे पहल होनी चाहिए।देश स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है।यह अवसर स्वतंत्रता और विभाजन के कारण परिणाम और जख्मों को जानने का है।नोआखाली के पचहत्तर तो मोपला नरसंहार के सौ वर्ष हुए है।यह वक्त गोआ के गुनहगार जेवियर और पुर्तगीज की सच्चाई से भी रूबरू कराने का है।बात नरसंहारों की हो तो केरल और बंगाल का जिक्र निश्चित आना चाहिए।आप बारह हजार हिंदुओं के कत्लगाह नोआखाली से लेकर काल पहाड़ के आतंक पर सिनेमा बना सकते है।तभी बंगाल का सच पता चलेगा।अगर बलात मतांतरण जैसे अनछुए विषय पे दर्शकों को दिखाना हो तो गोआ और सिंध की सच्चाई से सबो को साक्षात्कार कराना चाहिए।संस्कृतियों के निगलने की बात हो तो निश्चित ही पूर्वोत्तर भारतीय राज्य के ब्रिटिश शासन और ईसाई मिशनरियों के क्रियाकलाप पर पहल करनी चाहिए।जबकि सभ्यताओं के नेस्तनाबूद पर पश्चिमोत्तर प्रांत रहे अफगानिस्तान से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता है। सांस्कृतिक गौरव राष्ट्रीय चेतना संचार के दौर में गौरवशाली अतीत और राष्ट्रीय नायकों पर निश्चित ही ड्रामा बनना चाहिए।इस फ़िल्म की सफलता से न केवल इसके अवसर खुलेंगे अपितु फिल्में भी अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों को पूरा करती नज़र आएंगी।

अमिय भूषण

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