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दशहरा का अन्तिम दिन, यानी माँ भगवती की विदाई : कंचना झा

कंचना झा, काठमांडू, ५ अक्टूबर – समस्त हिन्दूओं का महान त्योहार दशहरा का आज अन्तिम दिन । यानी माँ भगवती की विदाई । मंदिरों में माँ के जाने से एक तरह से उदासी फैल जाती है । इन दस दिनों में लोग श्रद्धा और भक्ति सहित जो उनकी पूजा अचंना कर रहें थे उनमें भी ठहराव आ जाता है । माँ भगवती के विदाई के समय सभी की आँखें भींगी रहती हैं । जैसे बेटी की विदागरी की जाती है वैसे ही माँ भगवती को भी हम खोंइछा भरकर , और समदाउन गाकर विदा करते हैं कि फिर वो अगले वर्ष इसी तरह आए ।
वैसे तो दशहरा की चहल पहल कोजाग्रत पूर्णिमा तक रहता है । लेकिन आशिन शुक्ल प्रतिपदा से शुरु होनेवाला यह त्योहार का सबसे महत्वपूर्ण दिन आज का ही माना जाता है । नौ दिन तक माँ भगवती की आराधना के बाद दसवां दिन देवी का विसर्जन किया जाता है । इसी तरह पूजा घर या मन्दिर में कलस्थापन के दिन बोए गए जंयती को आज ही काटा जाता है । संबृद्धी के प्रतिक जयन्ती को घर के सभी बड़े अपने से सभी छोटों को आशिर्वाद देते हुए जंयती लगा देते हैं । आज के दिन पूजापाठ के बाद नीलकण्ठ चिडिया के दर्शन करने की भी मान्यता रही है । कहते हैं कि जो नीलकण्ठ का दर्शन करते हैं वो पाप मुक्त हो जाते हैंं और उसे साक्षात शिव का दर्शन हो जाता है । पहाड़ी समुदाय में भी आज के दिन का बहुत महत्व है । देवी के विसर्जन के बाद सभी घर के बड़ों के हाथ सँ टीका, आशिर्वाद ग्रहण करते हैं और जमरा(जयन्ती) लगाया या टीका लगाना कहा जाता है ।
हिन्दू धर्म की खासियत ही यही रही है कि हम साल भर किसी न किसी त्योहार को मनाते हैं लेकिन दशहरा का अपना अलग ही महत्व है । दस दिन तक मनाये जाने वाले क्ष्स त्योहार में माँ भगवती के विभिन्न रुपों की पूजा की जाती है । शैलपुत्री, ब्रह्रमचारिणी, चन्द्रघण्टा,कुष्माण्डा,स्कन्दमाता,कात्यायनी, कालरात्री, महागौरी और नौवां दिन सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है । दुर्गापूजा में दुर्गा सप्तशती के पाठ का विशेष महत्व है । वैसे ये सब आस्था और विश्वास की बातें हैं जिनको जैसे करना होता है वो वैसे करते हैं । कुछ लोग प्रत्येक दिन मात्र पूजा करते हैं , कुछ नवरात्रा का व्रत लेते हैं । व्रतो भी अपने अनुसार किया जाता है कोई दिनभर नीराहार रहकर रात को खाना खाते हैं तो कोई दिनभरि व्रत करके रात को फलहार मात्र करते हैं । ये माँ भगवती की असीम कृपा है जो वो सबकी पूजा को स्वीकार करती हैंं और सब उनका व्रत करने में सफल होते हैं ।
बड़ा दशैं, नवरात्रा, दशमी और दशहरा के नाम से इस त्योहार को जाना जाता है । कहा जाता है कि जब धरती पर आसुरी शक्ति बढ़ गई तब माता दुर्गा भवानी विभिन्न रुपों में आकर आसुरी शक्ति कोे नष्ट करती हैं । दशहरा के पूजा की महिमा को रामायण से जोड़ा गया है । कहते हैं भगवान श्री राम इसी दिन रावण से युद्ध करने से पहले माँ शक्ति की पूजा अर्चना की थी साथ ही संग्राम में विजयी भी हुए । उनकी जीत का जश्न हम विजया दशमी के रुप में मनाते आ रहें हैं ।
समय के साथ इस त्योहार के पूजापाठ में भी बहुत बदलाव आ गया है । अब पूजापाठ में भी राजनीति प्रवेश कर गई है । जबकि ये तो विशुद्ध धार्मिक कर्मकान्ड है । इन त्योहारों के पीछे सामाजिक, सांस्कृतिक मान्यता भी रही है । अपनी भाषा, रहन सहन, संस्कृति से जुड़ना बहुत जरुरी है । अम आधुनिकता के पीछे लगकर अपनी ही संस्कृति को पीछे छोड़ रहें हैं । हमारे अभी के बच्चें अपनी पूजापाठ, गीत नाद खानपान में पीछे पड़ रहें हैं । आवश्यकता इस बात की है कि अपनी संस्कृति अपनी सभ्यता, अपनी परम्परा को जीवन्त रखने का हर संभव प्रयास हमें और आपको करना चाहिए ।

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