गुल्जारे अदब व्दारा नेपालगन्ज मे गजल गोष्ठी
नेपालगन्ज,(बाँके) पवन जायसवाल, चैत्र ८ गते ।
गुल्जारे अदब बाँके ने स्थानीय महेन्द्र पुस्तकालय नेपालगन्ज में मासिक गजल गोष्ठी शनिवार को सम्पन्न किया है ।
अवधी साँस्कृतिक विकास परिषद् बाँके जिला के अध्यक्ष सच्चिदानन्द चौवे के प्रमुख आतिथ्य में सम्पन्न हुई मासिक गजल गोष्ठी में सैययद असफाख रसूल हाशमी, मोहम्मद अमीन ख्याली, मोहम्मद यूसुफ आरफी, अदब के अध्यक्ष अब्दुल लतीफ शौक, सचिव मोहम्मद मुस्तफा अहसन कुरैशी, मोहम्मद जमील अहमद हाशमी, मेराज अहमद मेराज, मेहताब खाँ, अवधी साँस्कृतिक प्रतिष्ठान बाँके जिला के अध्यक्ष बिष्णुलाल कुमाल, नेपाल हिन्दी प्रतिष्ठान बाँके शाखा के अध्यक्ष शयामानन्द सिंह, राजु सिद्दीकी, कौशल आनन्द, आमोद तिवारी, मोहम्मद उमर कबाडी लगायत उर्दू साहित्यकारों ने साहिल भी ऐतबार के काबिल नही रहा” मिसरे पर शैर वाचन किया था ।
मासिक गजल गोष्ठी उर्दू साहित्यकार मौलाना नूर आलम मेकरानी के अध्यक्षता में सम्पन्न कार्यक्रम को संचालन अदब के सचिव मो. मुस्तफा अहसन कुरैशी ने किया था ।
नियमित मासिक गजल गोष्ठी २०३३ साल श्रावण १ गते से ही आयोजन करते आ रहा है ।
इसी तरह अवधी साँस्कृतिक विकास परिषद् के अध्यक्ष सच्चिदानन्द चौवे ने वाचन किया गजल ः–…………………………………….
साहिल भी ऐतबार के काबिल नहीं मिसरा पर वाचन किया …
होता वो कामयाब जो गाफिल नहीं रहा
हासिल किया जो इल्म वो जाहिल नहीं रहा
मझधार के तूफ“ से दिल इतना दहला कि
साहिल भी ऐतबार के काबिल नहीं रहा
गीता,कुरान, गुरु ग्रन्था, वायविल लिखे
ऐसा जहा“ में कोई , आकिल नहीं रहा
नवजात बालकों का निर्मम कतल किया
उस कंस जैसा आज तक कातिल नहीं रहा
जिस शाख को था काटता उस पे ही था बैठा
उस कालिदास सा कोई जाहिल नहीं रहा
मिलता है न्याय एक सा दरबार में जिसके
उस धर्मराज सा कोई आदिल नहीं रहा
का“टों से भरी जिन्दगी ‘आनन्द’ से जिया
पूर्णावतार जैसा– कामिल नहीं रहा
धोखे से कतल किया राज परिवार को
उस कतली जैसा कोई वुजदिल नहीं रहा ।।
अदबका सचिव मो. मुस्तफा अहसन कुरैशी वाचन गरेको शैर…….
तालीम इतना आम हो, ए दावा कर सकें
कोई हमारे मुल्क में जाहिल नहीं रहा
जिसको मिली है, ढील समझता है वो यही
उसका जहा“ में कोई, मुकाबिल नहीं रहा ।।
सैययद असफाख रसूल हाशमीले …………………………..
साहिल भी ऐतबार के काबिल नहीं रहा भन्ने मिसरामा वाचन गरेका थिए….
वजमे सुखन में कोई भी जाहिल नहीं रहा ।
मुनसिफ भी ऐतबार के काबिल नहीं रहा ।।
मेयार क्या है बन्दे खुदा का तो देखिये ।
एक आह के निकलने से काफिल नहीं रहा ।।
मेरा पता तो पूछ लिया और कुछ न पूछ ।
बन्दा हू“ तेरा तेरे ही काबिल नहीं रहा ।।
सब कुछ लुटाके राहे खुदा में बचा न कुछ ।
रखते सफर मेरा कोई कुशकिल नहीं रहा ।।
कशती हमारी डूबी तो साहिल के आस पास ।
साहिल भी ऐतबार के काकिल नहीं रहा ।।
मर मर के जीता रहता था तीरे नजर से जो
कैसे कहू“ हुजूर वह बिसमिल नही रहा ।।
मुझको सजायें मौत दो या सर जुदा करो ।
सय्यद के पास उस का ही जब दिल नहीं रहा ।।