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डा. श्वेता दीप्ति
आः धरती कितना देती है10308074_268914916614683_4737627309944499759_n
यह धरती कितना देती है ! धरती माता
कितना देती है अपने प्यारे पुत्रों को !
रत्नप्रसविनी है वसुधा, अब समझ सका हूँ !
इसमें सच्ची ममता के दाने बोने हैं,
इसमें जन की क्षमता के दाने बोने हैं
इसमें मानव ममता के दाने बोने हैं,
जिससे उगल सके फिर धूल सुनहली फसलें
मानवता की-जीवन श्रम से हँसे दिशाएँ !
हम जैसा बोयेंगे वैसा ही पायेंगे !
सुमित्रानन्दन पंत ।



ये
पृथ्वी हमें कितना देती है, बस देती ही जाती है, पर हम इसे क्या दे रहे हैं – पृथ्वी को हमारे शास्त्रों में सबसे पहले नमन किया जाता है । हिन्दु धर्म में गायत्री मंत्र सबसे अधिक शक्तिशाली मंत्र माना जाता है जिसकी शक्ति एवं ऊर्जा को देश-विदेश में स्वीकारा गया है । इसमें भी पृथ्वी की महत्ता वणिर्त है । कहने का तार्त्पर्य यह कि पृथ्वी को हमेशा पूजनीय माना गया है । विगत २२ अप्रील को पृथ्वी दिवस मनाया गया । भले ही सैन प|mांन्सिसको के जान मेक कोनेला ने पृथ्वी को नमन करने के लिए २१ मार्च १९६९ में युनेस्को की बैठक में सुझाव दिया था किन्तु हिन्दु संस्कृति ने हमेशा ही पृथ्वी को पूजा है । पृथ्वी दिवस हर वर्ष२२ अप्रील को मनाया जाता है । यह पृथ्वी के प्रति हर व्यक्ति को दायित्व समझाने का दिवस है । करोडÞों वर्षों से पृथ्वी ने अपने बचाव और संतुलन के कई मार्ग खोजे किन्तु मानव जाति ने हमेशा उसके मार्ग को अवरुद्ध किया । एक बडÞे बाँध की योजना अपने दस वर्षों के निर्माण के दौरान लाखों करोडÞों वर्षों में पनपे स्थानीय परिस्थितियों को स्वाहा कर देती है । नदियाँ मार दी जाती हैं, वन नष्ट हो जाते हैं और पृथ्वी को अनगिनत जख्म दिए जाते हैं । परिणामतः पहाडÞ डूब जाते हैं, गाँव के गाँव गर्त में समा जाते हैं । पृथ्वी के ऊपर मानव जाति ने इतने दवाब बना रखे हैं कि उसमे असामान्य रूप से विचलन की परिस्थिति उत्पन्न हो गई है । जिसके कारण आए दिन प्राकृतिक आपदा से विश्व जूझ रहा है । फिर भी हमें होश नहीं है कि हम क्या कर रहे हैं । टुकडÞे टुकडÞे में धरती ने यह संकेत देना शुरु कर दिया है कि अब ज्यादा समय मानव जाति की मनमानी नहीं चलने वाली है । नदियाँ सूख रही हैं हमारे बीच पानी का अभाव होता जा रहा है । किसी गीत की एक पंक्ति याद आ रही है, ‘जल जो न होता तो ये जग जाता जल’ और ये अवश्यंभावी नजर आ रहा है । आखिर कब तक – कल को देखते और सोचते हुए पृथ्वी दिवस मनाने की अवधारणा सचेतकों के मन में आई होगी पर, एक प्रश्न तो है कि क्या किसी एक दिन को पृथ्वी दिवस मना लेने से पृथ्वी का वह दर्द कम हो जाएगा जो हम मानव निरंतर उसे दे रहे हैं – इसके लिए क्या समस्त मानव जाति को सजग नहीं होना चाहिए –
२२ अप्रील १९७० को पृथ्वी दिवस ने आधुनिक पर्यावरण आंदोलन की शुरुआत की । लगभग २० लाख अमेरिकी लोगों ने एक स्वस्थ, स्थायी पर्यावरण के लक्ष्य के साथ इसमें भाग लिया । हजारों काँलेजों और विश्वविद्यालयों ने पर्यावरण के दूषण के विरुद्ध पर््रदर्शनों का आयोजन किया । वे समूह जो तेल रिसाव, प्रदूषण करने वाली फैक्टि्रयाँ और ऊर्जा संयन्त्रों, कच्चे मल-जल, विषैले कचरे, कीटनाशक, खुले रास्तों, जंगल की क्षति और वन्य जीवों के विलोपन के खिलाफ लडÞ रहे थे उन्होंने महसूस किया कि वे समान मूल्यों का र्समर्थन कर रहे हैं । २०० मिलियन लोगों का १४१ देशों में आगमन और विश्वस्तर पर पर्यावरण के मुद्दों को उठाकर, पृथ्वी दिवस ने १९९० में २२ अप्रील को पुनः चक्रीकरण के प्रयासों को उत्साहित किया और रियो डी जेनेरियो में १९९२ के संयुक्त राष्ट्र पृथ्वी सम्मेलन के लिए मार्ग बनाया । सहस्राब्दी की शुरुआत के साथ ही ग्लोवल वार्मिंग पर ध्यान केन्द्रित किया गया और स्वच्छ ऊर्जा को प्रोत्साहन दिया गया । २२ अप्रील २००० का पृथ्वी दिवस पहले पृथ्वी दिवस की उमंग और १९९० के पृथ्वी दिवस की अन्तर्रर्ाा्रीय जनसाधारण कार्यशैली का संगम था । २००० में इन्टरनेट ने पूरी दुनिया को पृथ्वी दिवस के साथ जोडÞ दिया । पृथ्वी दिवस वह दिन है जो सभी राष्ट्रीय सीमाओं को अपने आप में समाए हुए है, सभी पहाडÞ, महासागर और समय की सीमाएँ इसमें शामिल हैं और पूरी दुनिया के लोगों को एक गूँज के द्वारा बाँध देता है । यह प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने के लिए समर्पित है ।
आज जहाँ पृथ्वी दिवस की आवश्यकता महसूस की जा रही है, विश्व को बचाने के लिए, वहीं इसी सर्न्दर्भ में विश्व बंधुत्व हेतु समग्र मानव जाति को एक सूत्र में बाँधने के लिए एक विश्व गीत की भी आवश्यकता महसूस हो रही है । वह गीत जो मानव मन में प्रेम, सद्भाव और भाईचारे के भाव को उत्पन्न करे और सभी को एक ही बन्धन में जोडÞ दे । इसी सर्न्दर्भ में काठमान्डू स्थित भारतीय राजदूतावास के प्रेस, सूचना तथा संस्कृति विभाग के प्रथम सचिव तथा युवा कवि के प्रयासों की चर्चा की जा सकती है । आपने विश्व गीत की रचना की है जो अन्तर्रर्ाा्रीय स्तर पर सराही भी गई है । अँग्रेजी भाषा में लिखे गए इस गीत को कई अन्तर्रर्ाा्रीय भाषाओं में भी अनूदित किया गया है । हाल में एक ब्राजीलियन पत्रिका में दिए गए साक्षात्कार में इनसे सवाल किया गया कि आपने विश्व गीत की आवश्यकता क्यों महसूस की तो आपका जवाब था कि, ‘मैंने जब ‘ब्लु मार्वल’ जो विश्व का सबसे खूबसूरत चित्र है और जिसे १९७२ में अपोलो १७ से स्पेस से लिया गया था, को देखा तो मैं शांत नहीं बैठ पाया । इस चित्र को कैनवास पर उकेरा जाता रहा है लेकिन मैंने इसे शब्दों में उकेरना चाहा और यह शब्द चित्र कविता के रूप में मेरे द्वारा अभिव्यक्त होते गया । २००९ में जब मैं सेंट पर्ीर्टस वर्ग रसिया में था तो बहुत वर्षतक मैं इस कविता में घूमता रहा और विचलित होता रहा । अंततः २०१३ में काठमान्डू, नेपाल में इसे संगीतबद्ध किया जा सका । पहले यह अँग्रेजी में था किन्तु बाद में यह अरबी, चाइनिज, प|mेन्च, रसियन, स्पैनिश, पोर्चुगिस आदि कई मुख्य भाषाओं में अनूदित हुआ । मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरा यह गीत इतना सराहा और स्वीकारा जाएगा । मुझे प्रसन्नता है कि मै अपनी कोशिश में सफल हुआ हूँ । ‘ अभय कुमार का मानना है कि एक विश्व समुदाय का विश्व नागरिक कई मायनों में सृष्टि और समाज के प्रति जिम्मेदार होता है । उसका मस्तिष्क विश्व के लिए सोचता है और वह सम्पर्ूण्ा विश्व को एक नजरिए से देखता है । उसकी जिम्मेदारी पृथ्वी और समाज के लिए होती है । उसकी सोच जातीय पक्षपात से रहित होती है । सम्पर्ूण्ा विश्व में आपसी सद्भाव की गंगा बहाने के लिए विश्व गीत की गूँज आवश्यक है जो समस्त मानव जाति को एक ही बन्धन में बांधे और जो हर एक के मन में यह भाव जगाए कि सम्पर्ूण्ा सृष्टि उसकी है, जिसके संरक्षण की जिम्मेदारी सबकी है । जिसकी सुरक्षा और सर्म्वर्द्धन ही उसका कर्त्तव्य है ।
इसी सर्न्दर्भ में उल्लेखनीय है कि वालीवुड एक्ट्रेस मनीषा कोइराला और नेपाल की बौद्ध धर्मावलम्बी एनी चौइंङ ने भी अभय कुमार द्वारा रचित विश्व गीत की सराहना करते हुए इसकी आवश्यकता पर जोर दिया है । यूनेस्को ने भी इस ओर अपनी पहल शुरु कर दी है । भारतीय नेता कपिल सिब्बल और शशि थरुर ने भी माना है कि विश्व गीत की अपरिहार्यता आज के सर्न्दर्भ में आवश्यक है । निस्सन्देह अभय कुमार का प्रयास सराहनीय है आप बधाई के पात्र हैं और उम्मीद है कि उनके द्वारा रचित गीत को विश्व स्तरीय मान्यता प्राप्त होगी ।
विश्व संरक्षण, विश्व सद्भाव, विश्व वन्धुत्व और विश्व एकता के लिए पृथ्वी दिवस और विश्व गीत की अनिवार्यता को नकारा नहीं जा सकता । आवश्यकता सिर्फदृढÞ संकल्प और सोच की है जो मानव जाति को इस ओर बढÞने की प्रेरणा दे सके ।



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