नहीं बता पाया तुम्हें कि तुम्हीं तो मेरा आदि, मेरा अंत हो। : बसन्त चौधरी
स्मृति के मुहान पर

बसन्त चौधरी
वो हर क्षण जो साथ गुजारे थे हमने
आज भी शिद्दत से
कहीं सुरक्षित है मेरे भीतर
यद्यपि तुम नहीं हो मेरे साथ कहीं भी
फिर भी मेरी सुधियों पर
बिखरा है तुम्हारी यादों का
साम्राज्य विस्तृत होकर।
नहीं अलग कर पाया हूँ मैं
खुद को तुम्हारी मासूम
हँसी से जो आज भी सिहराती
है मेरे मन को।
पर कभी यह सब
कह नहीं पाया,
नहीं बता पाया तुम्हें कि
तुम्हीं तो मेरा आदि मेरा अंत हो।
आज भी मिलन की आस
जमी है यादों की परतों तले
और मैं चिर–मिलन की
प्रतीक्षा में निःशब्द
खडा हूँ स्मृति के मुहान पर ।
लगता है सदियां बीत गयी
व्यक्त करने के लिए भी तो
कहां हैं शब्द,जो बना सकें, वाक्य
इसीलिए तो आज भी हूं
निःशब्द !
काव्य संग्रह वक्त रुकता नहीं से
