नेपाल में फैलती अमेरिकी शक्ति, MCC और SPP का प्रभाव : कैलाश महतो
कैलाश महतो, परासी । अमरिकी लगानी के MCC और SPP परियोजनाओं के कारण नेपाल में उभरे तहलका भरा तूफान आज भी लोगों ने ठीक से भूला भी नहीं है कि उसका असर अब दिखने की बात सुनी जा रही है । दरअसल बात यह है कि अमेरिका द्वारा नेपाल के विकास और समृद्धि खातिर पेश की गई MCC परियोजना अनुसार के काम शुरु होने से पूर्व ही अमेरिकी कुटनीति और सैन्य अड्डा संचालन के परिदृश्य दिखने लगे हैं ।
MCC परियोजना जब नेपाल में लागू करने की बात चली थी, तो उसके पक्ष और विपक्ष में लोग अपने अपने तर्क और दावों के साथ सडकोंतक आ खडे हुए थे । MCC के रकम जम्मा ५५ अर्ब की है । बात गलत ना हो तो उस अमेरिकी परियोजना को सफल करने हेतु परियोजना के विरोध में रहे लोगों समेत को अमेरिका ने उस परियोजना के रकम से ज्यादा रकम उन विरोधी नेताओं पर खर्च किया है । अन्ततः अमेरिका की जीत हुई और उसके तुरन्त बाद SPP नामक परियोजना की बात चली, जो भले ही असफल रहा, मगर MCC सफल रहा । ज्ञात हो कि अमेरिका का SPP अगर सफल हुआ होता, तो आज अमेरिकी सैनिक नेपाल में खुल्लम खुल्ला सडकों पर मार्च पास कर रही होती ।
अमेरिका है, कोई चान चुने देश नहीं । उसका अपना विदेश नीति है । उस नीति से वह दुनिया पर राज करने का सूत्र बनाता है । वह अपने लाभ और सुरक्षा के लिए दुनिया के हर सुरक्षा का कत्ल कर सकता है । उसके लिए दुनिया का मानव अधिकार, विधि और विधान तथा विधि का शासन उसके अपने सुरक्षा और सन्तुष्टि से ज्यादा कुछ नहीं है । वह हर काम अपने लाभ के आधार पर करता है । समान्य अवधारणा यही है कि अमेरिका जिस देश में घुसता है, इसकी तवाही और बर्बादी निश्चित है । उसने जापान, भियतनाम, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, सिरिया, इराक, युक्रेन जैसे देशों में वही किया है ।
अमेरिका को यह बर्दाश्त कतई नहीं कि उसके हैसियत को कोई चुनौती दें । वह हर उस देश और व्यक्ति को अपना शिकार बनाता है, जो उसके सामने उसे आंख दिखाये ।उसी में से एक चीन है, जिसे वह बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है । चीन को अमेरिका कितना नियन्त्रण कर पाता है, वह तपसिल की बात है । मगर उसके चक्कर में नेपाल को तवाह होना तय है ।
MCC के जरिये अमेरिका ने नेपाल के बझांग, दार्चुला, मुगु, बाजुरा और हुम्ला को अपने गिरफ्त में लेने की खबर चौंकाने बाला है । भ्रष्ट नेपाली शासकों के कारण देश असुरक्षित ही नहीं, विदेशी शक्तियों की यह रणनीतिक युद्ध भूमि भी बनने के कगार पर है । दुनिया जानती है कि अमेरिका हत्या, हिंसा और दमन का नायक है । उसके बिना उसका अस्तित्व ही नहीं है । उसके मानव अधिकार में भी दमन और ईर्ष्या होता है । हत्या हिंसा पैदा करना ही उसका समग्र पहचान है ।
अपने रणनीति के अनुसार शान्त किसी देश को भी अशान्त करने के लिए अमेरिका वहाँ किसी विद्रोही व्यक्ति या संगठन को खडा करता है, उस पर लगानी करता है, विध्वंस करवाता है और फिर उसे नियन्त्रण करने के नाम पर वहाँ घुसपैठ करता है । उसके बाद वहाँ स्थायी हत्या हिंसा का बाजार खोलता है । फिर अपना सामरिक हथियार का दूकान चलाता है ।
जानकारी के अनुसार अमेरिका ने बझांग के “माझा” में अमेरिकी सैन्य शिविर खडा करने जा रहा है । राज्य इसे रोकने के स्थिति में नहीं है । नेपाल में फिलहाल सादा पोशाक में १३ अमेरिकी सैनिक सक्रिय हैं । वहाँ UN लिखा हुआ गाड़ियों का प्रयोग होता है । १३ अमेरिकी सैनिकों के क्याम्प को इस ढंग से सिलबन्द किया गया है कि वहाँ स्थानीय लोगों को समेत आने जाने पर प्रतिबन्ध लगाया गया है । स्थानीय लोगों द्वारा किये जाने बाले यार्सा गुम्बा संकलन लगायत के अन्य जडीबूटी तथा चीन नियन्त्रित तिब्बत के “ताक्लोकोट” से होने बाले अन्न लगायत के व्यापार समेत को रोका गया है । स्थानीय लोगों को उसके घर पाल्तु जानवरों समेत जो चरन से बंचित किया गया है । वहाँ केवल दलाई लामा के अनुयायी और समर्थकों को आने जाने का अनुमति है ।
श्रोत को मानें तो बझांग के “सुनीकोट” में अमेरिकी सेना द्वारा सोना का उत्खनन कार्य भी किये जाने की आशंका है । कारण बझांग, मुगु, बाजुरा, मुस्ताङ्ग लगायत के पहाडी जिले सोने और यूरेनियम के भण्डार माने जाते हैं । आश्चर्य की बात यह है कि अमेरिका को सहयोग करने में राज्य और उसका प्रशासनिक निकाय भी अप्रत्यक्ष रुप में सहयोगी हैं । बझांग जिला प्रशासन कार्यालय में अमेरिकी कृयाकलापों के विरुद्ध निवेदन देने बाले बझांगी जनता का वहाँ के CDO द्वारा निवेदन दर्ता करने से परहेज करना और MCC का अन्तर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ब्रुक्स द्वारा देश के गृह मंत्री नारायण काजी श्रेष्ठ से मुलाकात कर उन्हें अमेरिकी परियोजना के लिए सुरक्षा और जमीन उपलब्ध कराने की अनुरोध सुना जाना काफी है ।
अमेरिकी सैनिक द्वारा हरेक १५ दिनों में बझांग भेजे जाने बाले चामल के बोरों में बाइबिल समेत भेजा जाना अमेरिकी साजिश का खुल्ला खेल है । जाहेर है कि अमेरिका वहाँ के लोगों में दानापानी बांटकर उन्हें अपने पक्षधर बनाने और उनके धर्म को परिवर्तन करवाने में जुट चुका है । थप आश्चर्य की बात तो यह है कि अमेरिकी सैन्य क्याम्प स्थापना कार्य में स्थानीय लोगों में डर त्रास फैलाते हुए अमेरिकी सैन्य टुकड़ी को सहयोग करने में शेर बहादुर देउवा के खास माने जाने बाले विष्णु ऐडी और विराट कठायत तथा माधव नेपाल की पार्टी नेतृ रंजिता धामी हैं । सुना यहाँ तक जा रहा है कि रंजिता धामी स्थानीय महिलाओं को सिन्दुर, पोते, चूडी, लहठी, श्रृंगार, आदितक न लगाने की उर्दी जारी करती रहती हैं ।
जैसा कि अमेरिका यही करता है कि किसी शान्त देश में कोई अपना समूह खडा कर वहाँ का राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, प्रशासनिक और सामरिक गतिविधियों में विघ्न डालकर पून: उसे अपने अनुसार का बनाने और अपने लाभ के लिए उसे प्रयोग करता रहा है, शंका यह करना कोई अतिशयोक्ति नहीं कि हो ना हो – नक्कली भूटानी शरणार्थी बनाने में भी अमेरिका का ही हाथ हो और नेपाली नेताओं को फंसाकर नेपाल में सैन्य गतिविधि संचालन में उन नेताओं को बाध्य किये गये हों ।
स्रोत के अनुसार वैशाख २, २०८० के दिन रुस ने नेपाल के विकास और साझेदारी के लिए १४ प्रस्ताव दिये हैं, जिसका सकारात्मक जबाव उसने २ जेष्ठ, २०८० तक मांगा था । परन्तु आजतक नेपाल ने रुस को कोई जबाव नहीं दे पाया है । तकरीबन ६ साल पूर्व भी रुस ने नेपाल में विशाल हाइड्रो पावर संचालन का प्रस्ताव किया था । लेकिन नेपाल ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और वह परियोजना वैसे ही शिथिल पड गया । रुस ने आज भी इस प्रस्ताव को आगे कर रखा है कि अगर नेपाल सहमत हो, तो वह नेपाल में पूरब-पश्चिम रेल मार्ग के साथ ही रुस से डाइरेक्ट तेल लाकर नेपाल को सहयोग कर सकता है ।
नेपाल जैसे गरीब बनाये गये देश को अमेरिका लगायत विश्व के सम्पूर्ण विकसित और सम्पन्न देशों के सहयोगों का सम्मान और सत्कार करना चाहिए । मगर यह पाठ लेना बहुत जरुरी है कि सहयोग कहीं ऐसा न हो जाये कि नेपाल यूक्रेन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भियतनाम और सिरिया न बन जाये । क्योंकि अमेरिका को समझना अपने आपको फसाद में डालना होता है । जैसे कि यह समझना बडा कठीन है कि वह युक्रेन को सहायता कर रहा है, या अपना हथियार बेच रहा है, या अपने को विश्व रणनीतिकार समझ रहा है, या वह रुस को आर्थिक और सामरिक रुप में कमजोर कर रहा है, या विश्व को हिदायत दे रहा है ।
युक्रेन को वह हर बार यह हिदायत देता रहा है कि उसके द्वारा युक्रेन को दिये का रहे हथियार रुस के भूमि पर किसी भी हाल में प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए । तो फिर वह कैसा युद्ध है कि अपने जमीनी भविष्य के लिए भी अमेरिकी निर्देशन को पालन करते जायें और केवल defensive होकर लडते रहें और अपना सारा जमीन खोते जाये ?
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