मनकामना, जहाँ मन की इच्छा पूरी होती है
हिमालिनी प्रतिनिधि:‘मन’ अर्थात् हृदय, ‘कामना’ अर्थात् इच्छा । वह जगह जहाँ आपकी इच्छा पर्ूण्ा होती है, वह है मनकामना मंदिर । प्राकृतिक सुरम्य वादियाँ, छोटी-बडÞी पहाडिÞयाँ और पहाडÞ की चोटी पर अवस्थित माँ मनकामना का मंदिर । शहरी कोलाहल से दूर, आँखों को सुकून देती वादियाँ आपका मन बरवश अपनी ओर खींचती हैं । काठमान्डू से मनकामना तक का सफर एक आनन्ददायक अनुभूति से होकर तय होता है ।
मनकामना मंदिर का अपना एक इतिहास है । १७वीं शताब्दी के राजा रामसिंह की महारानी लीलावती के साथ, मनकामना की स्थापना की कहानी जुडÞी है । जब राजा रामसिंह का निधन हुआ तो लीलावती उसके साथ ही सती होने को तैयार हर्ुइ, उसी समय उसने अपने परम भक्त लखन थापा को कहा कि, ‘चिन्ता मत करो मैं फिर आउँगी ।’ महारानी के पर्ुनर्जन्म की बात सिर्फलखन थापा जानते थे । माना जाता है कि मनकामना देवी के रूप में लीलावती का ही पर्ुनर्जन्म हुआ है । बात चाहे जो भी रही हो पर भक्ति, आस्था से जुडÞी भावना होती है, जहाँ तर्क या कर्ुतर्क के लिए जगह नहीं होती । त्रिशूली और मर्स्याङदी नदी को पार कर, अन्नपर्ूण्ा और मनास्लु हिमाल का अवलोकन करते हुए मनकामना मंदिर तक का रास्ता तय होता है । मंदिर का मुख्य द्वार चिम्केश्वरी पर्वत की तरफ है । माना जाता है कि यहाँ आकर मन की सभी इच्छाएँ पर्ूण्ा हो जाती हैं । यहाँ भक्तगण की बढÞती भीडÞ को देखकर अनायास ही इस बात पर यकीन करने का मन कर जाता है । प्रत्येक वर्षपुनः दर्शन की प्रतिज्ञा के साथ यहाँ भक्त आते हैं और संतुष्ट होकर जाते हैं ।
लोकविश्वास और पौराणिक कथा के अनुसार शाहवंशीय गोर्खाली राजा का दर्ीघ शासन भी मनकामना माँ के आशर्ीवाद से ही सम्भव हो पाया था । इस मंदिर से जुडÞी एक और कथा प्रचलित है । कहा जाता है कि खेत में हल चलाने के क्रम में एक किसान के द्वारा किसी पत्थर में चोट लग गई । उस पत्थर से रक्त और दूध बहने लगा । जो रुक ही नहीं रहा था । इस बात की जानकारी लखन थापा को जब हर्ुइ तो, वह वहाँ पहुँचा । उसके बाद तांत्रिक के सहयोग से विधिनुसार पूजा अर्चना करके देवी को पुकारा गया फिर कहीं जाकर रक्त और दूध का बहना रुका । देवी ने राजा से अनुरोध किया कि उसका मंदिर निर्माण करे । तत्पश्चात् मंदिर का निर्माण हुआ और उसकी देखभाल का जिम्मा लखन थापा को सौंपा गया । उसके बाद से आज तक उसकी ही सन्तति वहाँ की देखभाल और पूजा पाठ की जिम्मेदारी का निर्वाह कर रही हैं ।
मंदिर का निर्माण पैगोडÞा शैली में हुआ है, इसकी छत चार तह में बनी है । मंदिर का प्रवेश द्वार दक्षिण पश्चिम में अवस्थित है । शनिवार और मंगलवार के दिन यहाँ काफी भीडÞ होती है । इस मंदिर में पशुबलि भी दी जाती है । कभी-कभी इसकी अधिकता के कारण यहाँ का परिसर रक्तमय हो जाता है ।
आज के वातावरण में जहाँ नेपाली जनता भविष्य के प्रति भयभीत और आशंकित है उनके भी आकर्षा का केन्द्र यह मंदिर बना हुआ है । अपनी आशंकाओं के निवारण हेतु जनता ही नहीं नेता भी मंदिर जाते हैं और शांति की कामना करते हैं ।
मनकामना की यात्रा अधिकांशतः धार्मिक विश्वास के ही कारण की जाती है, किन्तु प्राकृतिक दृश्य के अवलोकन हेतु भी यहाँ की यात्रा की जा सकती है । रमणीय दृश्य, मंदिर के परिसर से दिखाई पडÞते हिमाल की ऊँची-ऊँची श्रृंखलाएँ मन को मोहती हैं और अपनी ओर खींचती हैं । सभी मौसम में यहाँ का सौर्न्दर्य निखर कर सामने आता है ।
एक समय था, जब मनकामना की यात्रा अत्यधिक कष्टकर थी । पाँच-पाँच घन्टे की पैदल यात्रा वह भी सीधी चढर्Þाई की । गन्तव्य तक पहुँचने में पूरा एक दिन लग जाता था । परन्तु अब वो समय गुजर चुका है । अब तो केबल कार के द्वारा यह यात्रा इतनी सहज हो गई है कि बार-बार जाने का मन करे । केबल कार के द्वारा दस मिनट में उस पार जाया जा सकता है । इस सुविधा के कारण सिर्फभक्तजन ही नहीं पर्यटकों का भी मनचाहा स्थल बन गया है मनकामना । ख्यात्रि्राप्त आस्टि्रयाली डप्पलमायर कम्पनी के द्वारा केबलकार का निर्माण सम्भव हो पाया है और यह शत प्रतिशत सुरक्षित है । काठमान्डू से कुरिनटार केबलकार तक पहुँचने में बस से तीन से चार घन्टे लगते हैं और पोखरा से बस यात्रा के द्वारा सिर्फदो घन्टे लगते हैं । यहाँ मंदिर के आस-पास कई होटल और लाँज हैं जहाँ यात्री रुक सकते हैं । खाने-पीने की भी अच्छी व्यवस्था है । मारवाडÞी और भारतीय होटल भी यहाँ उपलब्ध हैं । मनकामना तक जाने के लिए सिर्फसडÞक साधन ही उपलब्ध हैं । एक दुखद पहलू यह है कि इतने महत्वपर्ूण्ा मंदिर की सही देखभाल न तो मंदिर न्यास, न पर्यटन बोर्ड और न ही सरकार की ओर से हो पा रही है । मंदिर की अवस्था दिन प्रतिदिन जर्जर होती जा रही है, जिसके लिए समय रहते ध्यानाकर्षा की आवश्यकता है ।