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काठमांडू, फागुन २३– नेपाल के कथित नेतागण अभी मंत्रालय, पद कुर्सी की होड़ में लगे हैं । उन्हें जनता से कोई सरोकार नहीं है । कुछ लगे हैं अपनी कुर्सी को कोई बचाने में और कोई लगे हैं नए कुर्सी की तलाश में । कहते हैं देश के विकास में हमेशा राजनीति का बहुत बड़ा हाथ रहा है । किसी भी देश की राजनीति अगर सुदृढ़ और मजबूत है तो उस देश को प्रगति करने से कोई नहीं रोक सकता है । लेकिन हमारे देश नेपाल की एक अलग ही नीति है । यहाँ एक पद, एक कुर्सी को लेकर सबकुछ मान्य हो जाता है । एक तरह से यह भी कह सकते हैं कि सबकुछ ताख पर रख दिया जाता है । एक पद की भूख के साथ एक गंठबंधन टूटता है और दूसरा बनता है । राष्ट्रीय सभा अध्यक्ष को लेकर जो मनमुटाव शुरु हुआ उसका अंत गठबंधन के टूटने से हुआ । लेकिन किसी पार्टी ने देश, जनता, भ्रष्टाचार,विकास को लेकर अपनी सोच नहीं दिखाई । सब एक कुर्सी के लिए बेचैन दिखें ।
देश की राजनीति ने एकबार फिर नया मोड़ लिया है । एक गठबंधन को तोड़ दूसरे से नाता जोड़ लिया है । और फिर सभी दल अपनी अपनी जगह तलाशने में लग गए हैं । सभी इस दौड़ में लग गए हैंं कि किसे कौन सा मंत्री पद चाहिए । प्रचण्ड और ओली की तो बात ही छोड़ दी जाए इसमें कोई एक दल या व्यक्ति नहीं छुटा है । लेनदेन, खरीद बिक्री चल रही है । राजनीति या फिर पार्टी सिद्धांत को ताख पर रखते हुए अपने स्वार्थपूर्ति में लगे हुए हैं । इसमें कोई पीछे नहीं है । फिर चाहे रवि लामिछाने हों, या फिर सीके राउत । सब अपने अपने दांव में हैं । सोमवार को तीन नए मंत्रियों ने शपथ ली बिना किसी मंत्री पद के क्योंकि मंत्री पद खाली नहीं है । जो कांग्रेस के मंत्री पद पर थे उनसे राजीनामा लिया जाएगा या फिर वे ही स्वेच्छा से राजीनामा देंगे उसके बाद इन तीनों को मंत्री पद दिया जाएगा । ये है हमारे देश की राजनीति ।
वैसे देश में अभी भी गठबंधन की ही सरकार है । फरक केवल इतना कि अभी नेपाली कांग्रेस शामिल नहीं है ।
देश के वर्तमान अवस्था की अगर बात करे तो बहुत ही नाजुक अवस्था है । देश में गरीबी, अशिक्षा, अस्थिरता है लेकिन हमरा ध्यान इस ओर नहीं है । सच कहें तो देश बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रहा है । ये समय देश के विकास को ध्यान में रखने का था । लेकिन हम कहाँ पहुँच रहे हैं तो केवल और केवल अपने स्वार्थ की ओर । अपने और अपने संबंधी को, रिश्तेदार को और स्वयं को आगे बढ़ना है । जो अपने अनुकूल हो व्यवस्था वैसी ही बनानी है । देश और जनता का कोई ख्याल नहीं । अभी देश का हर वर्ग किसी न किसी पीड़ा से गुजर रहा है । देश के कोने कोने से हर क्षेत्र के लोग परेशान हैं और अपनी परेशानी, अपनी पीड़ा अपनी आँसूओं को लेकर एक आशा और विश्वास के साथ काठमांडू में आंदोलन कर रहे हैं कि देश की सरकार उनकी बातों को सुने । देश में कभी किसानों का आंदोलन, कभी मीटरब्याज पीडि़तों का आंदोलन, कभी न्यान की मांग को लेकर आंदोलन, न जाने किन किन बातों को लेकर आंदोलन किया जा रहा है । लेकिन सरकार और हमारे प्रतिनीधियों का इस ओर जरा सा भी ध्यान नहीं है । उनकी पीड़ा को महसूस करने वाला कोई नहीं हैं । सरकार और देश के राजनीतिक दल केवल अपने अपने स्वार्थ के पीछे लगे हैं । एक होड़ सी लगी है कुर्सी पाने की ।
नए गठबंधन के साथ अब खुलकर बात की जा रही है पद को लेकर जैसे माओवादी को राष्ट्रीयसभा अध्यक्ष पद की चाहत तो एमाले को उपाध्यक्ष की चाहत । वैसे अभी इस नए गठबंन में इस पद के लिए सहमति हो गई है । अगर ये दोनों पार्टी पद के लिए मर रहे हैं तो रास्वपा ही क्यों पीछे रहे ? आखिर इसने भी तो इंतजार किया ही है अब समय आया है तो कम से कम चार मंत्रालय भी अगर नहीं मिला तो फिर क्या मिला ? बात यही खत्म नहीं होती है यहाँ तो गृह मंत्रालय खुलकर मांगी जा रही है । रास्वपा को मालूम है कि एमाले भी अपना दाव खेल रही है लेकिन ये पूरी दमखम के साथ है कि हम तो गृह मंत्रालय लेकर ही छोड़ेंगे ।
इसी तरह नेकपा (एकीकृत समाजवादी) की सचिवालय बैठक आज (बुधवार) की सुबह होने वाली है । इस बैठक से ही निर्णय किया जाएगा कि वें सरकार में शामिल होंगे या नहीं । मंगलवार की रात स्वयं प्रधानमंत्री प्रचण्ड और एमाले अध्यक्ष ओली माधव नेपाल से मिलने उनके निवास स्थान पर पहुँचे थे । प्रधानमंत्री चाहते हैं कि नेपाल भी सरकार में शामिल हों । लेकिन नेपाल ने कहा कि पहले हम बैठक करेंगे उसके बाद ही निर्णय कर आपको बताएंगे । वैसे ये दांत केवल दिखाने के हैं जैसे हाथी के होते हैं । दिखाने के और,खाने के और जैसी बात है । शामिल तो होंगे ही साथ ही मनचाहा मंत्रालय की भी मां करेंगे ।
सरकार के नए गठबंधन के साथ ही जबरदस्त होड़ शुरु हो गई है । इसमें जनमत भी पीछे नहीं है । इस पार्टी ने भी दांव फेंकना शुरु किया । तुरंत सचिवालय की बैठक बुलाई और मिलकर निर्णय लिया कि हमें संघीय सरकार में अच्छा मन्त्रालय मिले साथ ही मधेश प्रदेश के मुख्यमन्त्री का पद भी मिले । ये सिर्फ कहने की बात नहीं है इसपर उन्होंने अड़ान लिया हुआ है । गठबंधन पुराना हो या नया कोई फरक नहीं पड़ता क्योंकि सारा खेल पद का है कुर्सी का है और कुछ नहीं ।

 



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