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नई तकनीक के साथ भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रासंगिकता बढ़ी है : डाॅ.सुधांशु त्रिवेदी



दिनांक 9 मार्च हिंदी साहित्य भारतीय के अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन का उद्घाटन करते हुए राज्य सभा सांसद एवं भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डाॅ. सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि वर्तमान तकनीकी विकास के समय में भी भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रासंगिकता बढ़ी है। हम मानवीय मूल्यों और आदर्शों के साथ विकास की बात करते हैं। हमारी सनातन परंपरा के अलावा ‘वसुधैव कुटुम्बकम ‘ का भाव और कहीं नहीं है।भारतीय संस्कृति में प्रेम एक आदर्श है। यहाँ ब्रेक अप की अवधारणा नहीं है। यहाँ तो साँसों के ब्रेक अप के बाद भी संबंध मानने की परंपरा है। हमारे यहाँ जो शून्य गणित में एक अंक है वही साहित्य में अनुभूति का विषय बन जाता है।हम भीतर- बाहर का एक साथ उन्नयन चाहते हैं।
इस अवसर पर उद्घाटन सत्र और हिंदी साहित्य भारती के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ.रवीन्द्र शुक्ल ने कहा कि सनातन ही शाश्वत है,वही अनादि है,शेष दूसरे पंथ हैं। वे पूजा पद्धति पर आधारित किसी संप्रदाय विशेष अथवा समुदाय के लिए बने हैं। उनका कोई न कोई प्रवर्तक है।इस सत्र का प्रारंभ डॉ लता चौहान तथा डॉक्टर सुनीता मंडल एवं अन्य सहयोगियों द्वारा सरस्वती वंदना, ध्येय गीत एवं संकल्प गीत तथा अतिथियों के करकमलों से दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ।
इस अवसर पर जाहन्वी के संपादक श्री भारत-भूषण चड्ढा एवं साधना टीवी के संचालक श्री राकेश गुप्ता को संस्कृति साधक सम्मान तथा ताशकंद विश्वविद्यालय, उज़्बेकिस्तान से पधारीं डॉ नीलोफर खोजाइवा को साहित्य साधक सम्मान प्रदान किया गया।
इसके पूर्व 8 मार्च को मानव बन जाए जग सारा, यह पावन संकल्प हमारा” के उद्देश्य के साथ देश- विदेश से आए अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य भारती के प्रतिनिधियों का परिचय एवं संवाद सत्र हंसराज कालेज,नई दिल्ली के प्रेक्षागार में संपन्न हुआ। इस मौके पर उपस्थित सभी प्रतिनिधियों ने एकमत से इस बात को रेखांकित किया कि वर्तमान
अंतरराष्ट्रीय माहौल में भारतीय संस्कृति और सुधैव कुटुंबकम की संकल्पना विश्व को शान्ति – सौहार्द और भाईचारे का संदेश दिया जा सकता है।

आयोजन के दूसरे सत्र में आचार्य देवेंद्र देव, अरुण सज्जन तथा राकेश कुमार जी, मंजू पाण्डेय, ठाकुर सिंह पोडियाल, शिवशंकर सोनी,पद्मश्री विष्णु पंड्या, प्रतिभा त्रिपाठी की पुस्तकों का विमोचन मंचासीन अतिथियों के करकमलों से किया गया।
इस विराट आयोजन का तीसरा सत्र ‘ भारतीय ज्ञान परंपरा और साहित्य ‘ विषय पर आयोजित था। इस अवसर पर अध्यक्ष के रूप में महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 शाश्वतानंदजी गिरि महाराज और प्रमुख अतिथि के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख माननीय श्री स्वांत रंजन जी उपस्थित थे। इस अवसर पर दोनों विभूतियों को भारतीय ज्ञान परंपरा को आधार बनाकर लिखे गए अपने आलोचना ग्रंथ ‘ जयशंकर प्रसाद महानता के आयाम ‘ की प्रति भी भेंट की गई । मैंने भारतीय ज्ञान परंपरा पर अपना वक्तव्य देते हुए हिंदी साहित्य भारती के अंतरराष्ट्रीय प्रभारी, प्रख्यात आलोचक और मुंबई विश्वविद्यालय के वरिष्‍ठ प्रोफेसर डाॅ. करुणाशंकर उपाध्याय कहा कि जिस देश का नाम ही भारत अर्थात प्रकाश एवं ज्ञान के प्रति सन्नद्ध राष्ट्र से हो,उसकी ज्ञान परंपरा की समृद्धि का क्या कहना ! हमारे वेद,उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक, वेदांग, रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथ तथा कालिदास, तुलसीदास और जयशंकर प्रसाद जैसे रचनाकारों का साहित्य इसका संश्लेषण है। हमारी सभ्यता का आरंभ सरस्वती तट पर विकसित वैदिक सभ्यता से होता है जो सबसे प्राचीन है।हम आरंभ में ही ब्रह्मांड व्यापी शांति की कामना करते हैं। भारतीय अवतारवाद से प्रभावित होकर ही डार्विन ने विकासवाद का सिद्धांत दिया। हम रामायण, महाभारत काल के अस्त्र- शस्त्रों से आज के हथियार तुलनीय हैं।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख श्री स्वांत रंजन जी ने कहा कि राष्ट्र का आधार भूमि, जन,शासन और संप्रभुता है। भारतीय ज्ञान परंपरा परिवार के माध्यम से जीवन मूल्यों का प्रशिक्षण देती है। वर्तमान विमर्श के युग में भी यह सार्वभौम-शाश्वत जीवन मूल्यों और लोकमंगल के भाव के कारण और भी आवश्यक है।अध्यक्ष के रूप में अपना आशीर्वचन देते हुए हिंदी साहित्य भारती के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य और महामण्डलेश्वर शाश्वतानंद जी गिरि महाराज ने ब्रह्म के स्वरूप का निर्वचन करते हुए देह और देही के संबंध पर प्रकाश डाला। आपने कहा कि हमारी ज्ञान परंपरा अंतर्जगत और बाह्यजगत के सूक्ष्म एवं विराट परिदृश्य को विश्लेषित करती है। इस सत्र में हिंदी साहित्य भारती के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ.रवीन्द्र शुक्ल, प्रो.प्रभा पंत,महाराष्ट्र के अपर पुलिस महानिदेशक श्री कृष्ण प्रकाश समेत अनेक विभूतियां उपस्थित थीं।
इसके उपरांत विराट कवि सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें सर्वश्री डॉ रवींद्र शुक्ल, आचार्य देवेंद्र देव, कुलदीप अंगार, डॉ देवेंद्र तोमर मुरैना मध्य प्रदेश, प्रतिभा त्रिपाठी, डॉ सुनीता मंडल सहित अनेक रचनाकारों ने प्रभावशाली काव्य पाठ कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम का सफल संचालन डॉक्टर विनय कुमार सिंह जी ने किया।
मंच पर प्रमुख रूप से श्री बैद्यनाथ लाभ , पदम श्री विष्णु पांड्या, श्री विनोद कुमार मिश्र, आचार्य देवेंद्र देव, मौजूद रहे। इस अवसर पर सभागार में हिंदी साहित्य भारती के केंद्रीय सह संगठन मंत्री डॉ देवेंद्र तोमर, ऋचा शुक्ला,लेखक आनंद उपाध्याय, निशांत शुक्ला, संजय राष्ट्रवादी तथा नीरज सिंह सहित विदेश एवं देश के प्रत्येक प्रांत से पधारे हुए अतिथि साहित्यकार पत्रकार बुद्धिजीवी तथा गणमान्य नागरिक मौजूद रहे।
10 मार्च को आरंभ हुए हिंदी का वैश्विक परिदृश्य नामक सत्र में प्रख्यात आलोचक प्रोफेसर करुणाशंकर उपाध्याय ने आँकड़ों सहित बताया कि हिन्दी विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। अब वह भारत के बाहर फीजी के अलावा संयुक्त अरब अमीरात की भी आधिकारिक भाषा है। भारतीय पेशेवरों की संख्या को देखते हुए यह भी संभव है कि वह आगामी वर्षों में इंग्लैंड अमेरिका की भी आधिकारिक भाषा बन जाए।इस सत्र को सर्वश्री माधवेन्द्र प्रसाद पाण्डेय,डॉ अरुण कुमार सज्जन,ने भी संबोधित किया।
इसके बाद वित्तीय प्रबंधन विषय को लेकर संपन्न हुए सत्र को संबोधित करते हुए मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी ,भोपाल के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा कि वित्त का प्रबंध करना बहुत आसान है जबकि वित्त का सदुपयोग करना बहुत कठिन है।इस अवसर पर सर्वसम्मति से हिंदी साहित्य भारती के नए सदस्यों के लिए रुपए 500 /- सदस्यता राशि तय की गई ।इस सत्र को हंसराज कॉलेज की प्राचार्य डॉ. रमा शर्मा, लेखाकार मयूर अग्रवाल, सहित अनेक विद्वान वक्ताओं ने संबोधित किया।
कार्यक्रम के एक विशेष सत्र में सभी मंचासीन अतिथियों का सम्मान किया गया साथ ही उपवेशन कार्यक्रम में शामिल सभी प्रतिभागियों को रामलला के मंदिर के विग्रह को स्मृति चिन्ह के रूप में भेंट किया गया।अगला सत्र जिज्ञासा समाधान का था जिसमें सभी की जिज्ञासाओं का शुक्ल जी ने समाधान किया। इस सत्र में वीरेन्द्र याज्ञिक ने अत्यंत महत्वपूर्ण वक्तव्य दिया।
हिंदी साहित्य भारती की तीन दिवसीय उपवेशन के समापन सत्र में सुदर्शन टीवी के संस्थापक श्री सुरेश चव्हाण को संस्कृति साधक सम्मान 2023-24 , प्रोफेसर कमलप्रभा कपानी उड़ीसा को हिन्दी साधक सम्मान 2023-24, डॉ के साईं लता चेन्नई तमिलनाडु हिंदी साधक सम्मान 2023-24,जय वर्मा इंग्लैंड को संस्कृति साधक सम्मान 2023-24,से विभूषित किया गया। सुदर्शन टीवी के संस्थापक ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यह कि विश्व गुरू के आसन पर कौन सा राष्ट्र आसीन होगा?यह इस डिजिटल युग में इस बात पर निर्भर करेगा कि किस राष्ट्र की ट्रेंडिंग अधिक है,किस विचार की ट्रेंडिंग अधिक है। यह तब संभव है जब हम जागरुक रहकर अपनी संस्कृति और अपनी राष्ट्रीयता के लिए सकारात्मक भाव से सोचेंगे और समाज को उचित अनुचित का बोध कराएंगे। इस सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि श्री विनोद उनियाल, मंत्री उत्तराखंड सरकार ने कहा कि ऐसा कोई सपना नहीं है जिसे देखा जाए और साकार न किया जा सके। हर सपना साकार करने के लिए दृढ़ संकल्प शक्ति के साथ उसे साकार करने का प्रयास किया जाना चाहिए। हिंदी साहित्य भारती ने ‘ मानव बन जाए जग सारा ‘ का जो सपना देखा है,वह अवश्य साकार होगा।
इस अवसर पर केन्द्रीय मार्गदर्शक महामण्डलेश्वर शाश्वतानंद गिरि जी महाराज, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा के निदेशक ,डाॅ. सुनील कुलकर्णी, साध्वी ममता , कार्यक्रम संयोजक डॉ. रमा, केन्द्रीय व अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रवींद्र शुक्ल सहित देश- विदेश से पधारे हुए अतिथि, विद्वान वक्ता, विश्व- विद्यालयों के विभागाध्यक्ष, साहित्यकार, बुद्धिजीवी, पत्रकार तथा गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
इस अवसर पर डॉ. शर्मा तथा आभार प्रदर्शन महामंत्री राजीव शर्मा जी द्वारा किया गया।इस आयोजन में देश-विदेश के दो सौ प्रतिभागी- साहित्यकार उपस्थित थे।



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