प्राकृतिक विपदा, त्रासदी और सरकार की असक्षमता : डा. श्वेता दीप्ति
डॉ श्वेता दीप्ति, काठमांडू, 30 सेप्टेंबर 024 । ये पहली बार नहीं हुआ है जब देश में कोई आफत आई है । जब देश महाभूकम्प की त्रासदी को झेल रहा था तो उस समय भी देश की ऐसी ही स्थिति थी । अभिभावक विहीन देश और यहाँ की निरीह जनता । यह सच है कि आपदाएँ बता कर नहीं आती किन्तु आज का विज्ञान हमें पहले सचेत अवश्य कर देता है । और यह सचेतता हमें समय रहते सावधानी अपनाने के लिए सतर्क करती है । परन्तु हमारी सरकार ने हमें सचेत कर के अपने कर्तव्य का निर्वाह कर लिया था । शायद ये उनकी जिम्मेदारी नहीं थी कि आने वाली तबाही से बचने के लिए किसी व्यापक तैयारी की जाए । क्योंकि प्राकृतिक विपदा की जानकारी होते हुए भी सरकार की असक्षमता हमारे सामने आ गई है । जल एवं मौसम विज्ञान विभाग ने ७ गते असोज को विशेष बुलेटिन जारी कर बताया कि अगले दिन से १२ गते से सभी सात प्रदेशों में भारी बारिश की संभावना है ।
मौसम वैज्ञानिक ने पूरे नेपाल में इस मानसून अवधि के दौरान भारी बारिश की संभावना जताई थी और कहा था कि गुरुवार से रविवार तक ५६ जिलों को रेड जोन यानी हाई रिस्क जोन में रखा जाए और हाई अलर्ट रखा जाए ।
यह जानकारी सरकार के तीनों स्तरों सुरक्षा तंत्र से लेकर आपदा प्रबंधन संस्थाओं तक को मिल गई थी. लेकिन आपदा से पहले जितनी तैयारी होनी चाहिए थी, वैसा होता नजर नहीं आया जिसका प्रतिफल हम सबके सामने है । समय की भयावहता को सरकार समझ नहीं पाई और अपनी पुरानी शैली में ही तैयारिया शुरु की थी ।
गुरुवार की रात से तेज बारिश शुरू हो गयी थी, लेकिन सरकार ने शुक्रवार को नदी के स्तर में वृद्धि देखने के बाद काठमांडू से रात्रि बसें बंद करने का आदेश दिया । और नदी के तटीय इलाके में रहने वाले लोगों को सतर्क रहने के लिए ‘अलर्ट संदेश’ जारी किया, तब तक इस भयंकर आपदा से निपटने के लिए बहुत देर हो चुकी थी ।
शुक्रवार और शनिवार को ललितपुर, नुवाकोट के विदुर, ललितपुर के गोदावरी और मकवानपुर के हेटौंडा के आसपास इतनी बारिश हुई कि घाटी में नदी किनारे की ज्यादातर बस्तियां शनिवार सुबह होने से पहले ही जलमग्न हो गईं थी । वैज्ञानिक तकनीक की मदद से एक सप्ताह पहले आपदा के खतरे की स्पष्ट जानकारी के बावजूद भारी क्षति हुई और बचाव व राहत का पुराना ढर्रा ही कायम रहा ।
रविवार शाम तक बाढ़ और भूस्खलन से जान गंवाने वालों की संख्या १७० तक पहुंच गई है । ४२ लोग अभी भी लापता हैं, ११० घायलों का इलाज चल रहा है । बीपी और पृथ्वी हाईवे पर सैकड़ों लोग तीन दिनों से फंसे हुए हैं । बाढ़ और भूस्खलन के कारण २० राजमार्गों में से ६९ स्थान अवरुद्ध हैं क्योंकि १६ पुल क्षतिग्रस्त हो गए हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अब तक ३,६२६ लोगों को सुरक्षित बचाया जा चुका है. काठमांडू घाटी और आसपास के इलाकों में अभी भी कई लोग बचाव का इंतजार कर रहे हैं ।
कहते हैं न कि रोम जल रहा था और नीरो वंशी बजा रहा था । देश के अभिभावक का यही हाल दिखा । देश में त्राहि मची हुई थी और देश के प्रधानमंत्री विदेश की धरती पर बोस्टन में हावर्ड विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ संवाद कर रहे थे । जबकि उन्हें आपदा की इस स्थिति में किसी भी हाल में देश आ जाना चाहिए था । यहाँ जिस कार्यवाहक के हाथों देश को सौंप कर गए थे वो कहीं से भी इस आपदा की घड़ी में उनमें वो तत्परता या गंभीरता नहीं दिखी जो दिखनी चाहिए थी । उप प्रधान मंत्री और शहरी विकास मंत्री प्रकाशमान सिंह को कार्यवाहक भूमिका दी गई थी । लेकिन ‘कार्यवाहक सरकार’ न तो संकट से पहले तैयारी कर पाई और न ही संकट के बाद पूरे देश को बचाव कार्यों में जुटा पाई ।
सरकार ही यह चेतावनी दे रही थी कि भारी बारिश होने की संभावना है तो ऐसे में जोखिम वाले इलाकों की पहचान की जा सकती थी और वहां रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाया जा सकता था । नदी में जल स्तर बढ़ने पर तटीय क्षेत्र के निवासियों को सूचित करने के लिए एक तंत्र बनाया जा सकता था । लेकिन सरकार ने ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया ।
आपदा जोखिम न्यूनीकरण और प्रबंधन प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अनिल कुमार पोखरेल ने खुद शुक्रवार रात ब्रिटेन के लिए उड़ान भर लिया । उन्होंने निजी और पारिवारिक काम दिखाकर प्राधिकरण की कमान संयुक्त सचिव बसंत अधिकारी को सौंप दी और विदेश चले गये । ऐसे में कोई सीईओ नहीं था जो नियमित रूप से प्राधिकरण समन्वय के लिए पर्याप्त काम नहीं कर सकता था । जब संभावित जोखिमों का कोई आकलन नहीं हो पाया तो, तो उसके अनुसार तैयारी करने की तो कोई बात ही नहीं थी । शनिवार सुबह रेस्क्यू के दौरान यह स्पष्ट दिखा । नदी किनारे की बस्तियां डूबने के बाद तीनों सुरक्षा एजेंसियों के सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया था, लेकिन उनके पास पर्याप्त नावें और लाइफ जैकेट तक नहीं थे । तैयारी ही नहीं बचाव में भी सरकार ने तीनों स्तरों पर मजबूत पहल नहीं की । शुक्रवार की रात से देश में बाढ़ और भूस्खलन से प्रभावित होने के बावजुद सुबह कार्यालय समय शुरू होने तक अधिकांश जिम्मेदार अधिकारी सिंह दरबार में मौजूद नहीं थे । शनिवार सुबह १० बजे गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव के नेतृत्व में कमांड पोस्ट की पहली बैठक हुई । बैठक में गृह मंत्री रमेश लेखक और गृह सचिव गोकर्णमणि दावाड़ी भी मौजूद थे । सभी की बातें सुनने के बाद उन्होंने तत्काल राहत एवं बचाव के निर्देश दिए । बैठक में सड़क विभाग से लेकर स्वास्थ्य विभाग तक के अधिकारी शामिल हुए और आपदा के खतरे पर चर्चा की । फिर गृह मंत्री ने केंद्रीय सुरक्षा समिति की बैठक की । उस बैठक में भी देश के हालात और गृह मंत्री के निर्देशों के बारे में ब्रीफिंग हुई थी ।
लेकिन कार्यवाहक प्रधानमंत्री सिंह इस संकट में कहीं भी आगे बढ़ते नजर नहीं आये । उन्होंने कैबिनेट की आपात बैठक नहीं की । उन्होंने दोपहर २ बजे मंत्रियों के बीच समन्वय के लिए चर्चा का आह्वान किया । किसी तरह बैठक दोपहर २ः२० बजे शुरू हुई । संकट की घड़ी में उपस्थित लोगों में कोई जल्दबाजी नहीं थी । सभी ऐसे आराम से बैठक में शामिल हुए जैसे कोई खास गंभीर बात ना हो ।
बारिश रुक गई है पर अब सबसे अहम सवाल है कि राहत का कार्य कैसे और किस तरह से कार्यान्वयन किया जाए । भोजन, छत, दवाई इन सभी की बृहत तौर पर आवश्यकता है । हाइवे पर लोग फसे हुए हैं । उनका उद्धार करने की आवश्यकता है । आपदा प्राधिकरण के अधिकारियों के मुताबिक इसके लिए सरकार को मंत्रिपरिषद के माध्यम से वन–डोर सिस्टम के साथ प्रबंधकीय निर्णय लेने चाहिए. ।
मौजूदा व्यवस्था के मुताबिक मुख्य जिला अधिकारी तत्काल आपदा राहत के लिए १५,००० रुपये से २०,००० रुपये तक दे सकते हैं. जिन लोगों के पास वर्तमान में घर नहीं है उन्हें अस्थायी आवास के लिए तुरंत २५,००० तक दिए जा सकते हैं। जरूरत पड़ने पर वे २५ हजार रुपये और दे सकते हैं । लेकिन गृह मंत्रालय के अधिकारियों को निर्देशों का इंतजार किया जा रहा है ।
बजट को लेकर भी असमंजस की स्थिति है क्योंकि सभी जिला प्रशासन कार्यालयों के पास जिला प्राकृतिक आपदा बचाव समिति के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं । अधिकारियों के मुताबिक आपदा प्रबंधन कोष में ६ अरब का बजट है, लेकिन आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के पास बचाव कार्य पर यह राशि खर्च करने का कोई प्रावधान नहीं है ।
इस समय प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष में पैसा जमा हो सकता है । जो लोग बाढ़ पीडि़तों की मदद करना चाहते हैं वे उस फंड में पैसे जमा कर सकते हैं । लेकिन फंड में सहायता के लिए कैबिनेट बैठक से निर्णय लिया जाना चाहिए । लेकिन भ्रष्टाचार से पीडि़त इस देश में राहत कोष का क्या हश्र हो सकता है यह भी विचारणीय है । क्योंकि इस स्थिति से यह देश भूकम्प के समय गुजर चुका है ।
किसी आपदा के समय मंत्रिपरिषद् को बैठक कर आपदा से तुरंत निपटने, बचाव कार्य में भाग लेने तथा राष्ट्र सेवकों को अपना कार्य क्षेत्र न छोड़ने तथा राहत प्रदान करने के निर्देश देने चाहिए । किन्तु यहाँ तो जनता ही यह महसूस नहीं कर पा रही है कि सरकार उनके साथ है ।
राजधानी से महज १५ किलोमीटर की दूरी पर हुए झ्याप्ले भूस्खलन की घटना ने तो मर्माहत ही कर दिया है । भूस्खलन के बाद घंटो तक जानकारी नहीं मिलना और उसके बाद भी समय पर राहत का प्रयास नहीं होने के कारण होने वाली जनहानि ने तो दिल दिमाग को झकझोर दिया है । अब ता ३५ शव मिल चुके हैं जिसकी संख्या और भी बढ़ सकती है ।
इस देश की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि ये आपदाएँ कभी भी कहीं भी घटित हो सकती हैं और होती रही हैं बावजुद इसके कभी भी किसी भी सरकार में इन बातों से निपटने के लिए कोई गंभीरता या तत्परता दिखाई नहीं दी है । जिसका खामियाजा जनता अपना जीवन गंवा कर दे रही है ।