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प्रकाश प्रसाद उपाध्याय/राजविराज:क्रिसमस के आगमन पर होनेवाली चहल-पहल, गिरिजाघरों की सजावट और कैरोल की गूँजती ध्वनि के साथ ही दरवाजे पर नए वर्षकी दस्तक सुनाई पडÞने लग जाती है । लोगों में इन उत्सवों को मनाने का उत्साह देखते ही बनता है । क्रिसमस-ट्री, बिजली के छोटे-छोटे बल्ब और शान्त्ाा क्लाँज से सजे बाजारों में नए-नए कार्डर्ााकी खरीदफरोख्त से वातावरण उल्लासमय हो जाता है । क्रिसमस एक धर्मविशेष का पावन पर्व है तो नया वर्षविश्व के समस्त जनों का एक हर्षऔर उल्लास के पर्व के रूप में प्रकट होता है । नेपाल जैसे मुल्क में भी जहाँ सरकारी कामकाज और दैनिक क्रियाकलापों में विक्रम संवत् का प्रचलन होता है, ग्रिगेरियन कैलेण्डर के अनुसार आने वाला यह पर्व बडÞे ही उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है । फिर भी ग्रिगेरियन कैलेण्डर का प्रचलन भी समान उत्साह के साथ होता दिखता है ।
क्रिसमस पर्व के कुछ ही दिनों पश्चात् आने वाला नया वर्षका उल्लास हमें याद दिलाती है, दीपावली के कुछ दिनों के बाद ही मनाई जाने वाली पावन पर्व छठ के अनुष्ठान की, जिसमें एक ओर देवी लक्ष्मी की पूजा समस्त हिंदू धर्मावलम्बी करते हैं और दीपमालिका के साथ घर ड्योढियों को सजाते हैं तो दूसरी ओर सूर्योपासना के रूप में छठ पर्व उतने ही उत्साह, धार्मिक आस्था और भक्त्िाभाव के साथ मनाया जाता है । इस अवसर पर तालाबों, नदियों और विभिन्न जलाशयों में व्रत करने वाले और उनके परिवार जनों की उपस्थिति, दीपमालिका और पण्डालों की सजावट तो अलौकिक दृश्य ही उत्पन्न करता है । इस प्रकार हम ग्रिगोरिन कैलेण्डर के अनुसार मनाए जाने वाले उपर्युक्त दोनों पवोर्ंं और विक्रम संवत के पञ्चांग के अनुसार मनाए जाने वाले दीपावली और छठ पवोर्ं को विभिन्न आस्थाओं की अभिव्यक्ति के अतिरिक्त विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों और समाज के विभिन्न वर्गों को आपसी स्नेह, सद्भाव और प्रेम के बंधन में जोडÞने के सूत्रों के रूप में पाते हैं ।christmas
नए वर्षके आगमन का स्वागत करने की परंपरा पश्चिमी देशों के अलावा एशिया और अप्रिmका में भी प्रचलन में है । चीन, जापान और अन्य बौद्ध धर्मावलम्बी देशों में नए वर्षका स्वागत उनके अपने कैलेण्डरों के अनुसार होता है । नेपाल में सरकारी स्तर पर नए वर्षका प्रारम्भ १ जनवरी को न होकर विक्रम संवत् के अनुसार १४ अप्रैल को होता है । हालाँकि विश्वव्यापीकरण के कारण नेपाली जनता जनवरी के पर्ूव संध्या से ही नए वर्षको अंकमाल करने निकल पडÞती है । भारत में नए वर्षका प्रारम्भ १ जनवरी के दिन से होता है । लेकिन बंगाल और आसाम राज्य की जनता १४ अप्रैल को ‘नूतन वर्ष के रूप में नए वर्षका स्वागत करती है । आसाम की जनता तो इस अवसर को ‘बिहू’ के रूप में मनाती है । महिलाएँ नए-नए परिधानों में नाचगान करती हैं और शुभकामनाओं का आदान प्रदान करती हैं । समान रूप से दक्षिण भारत के राज्यों कि जनता की भी अपनी मान्यता के अनुसार नए वर्षको मनाने की परंपरा है । फिर भी भारत के सभी राज्यों की जनता ग्रिगोरियन कैलेण्डर के अनुसार मनाए जाने वाले नए वर्षको समान उत्साह और उल्लास के साथ मनाती है । घरों में नए-नए कैलेण्डरों को लटकाते हैं र्।र्
इस्वी संवत के कैलेण्डर को ग्रिगोरियन कैलेण्डर के रूप में जाना जाता है । क्योंकि इस कैलेण्डर का नामकरण इटली में जन्मर्ेर् इर्साई धर्म के महान गुरु -पोप) ग्रिगोरी १३ ने तत्कालीन कैलेण्डर में संशोधन करने का काम किया था । उसी समय से यह कैलेण्डर ग्रिगोरियन कैलेण्डर के रूप मे सुविख्यात हुआ ।
प्राचीन काल के रोमवासी अत्यंत धर्मभीरु थे । वे विभिन्न देवी-देवताओं और भूत-प्रेतों को मानते थे । उनकी यह भी मान्यता थी कि प्रकृति में विद्यमान भूत-प्रेत मानव जाति के ऊपर अपना प्रभाव डÞालते हैं । अतः वे विभिन्न धार्मिक कृत्यों में संलग्न होते थे । उस काल में प्रायः युद्ध हुआ करता था । अतः वे युद्ध और न्याय के लिए भी देवी-देवताओं की विशेष रूप से पूजा किया करते थे । जुपिटर, मार्स और क्विरिस उनको शर्ीष्ा त्रिमर्ूर्तियाँ थीं । अपनी इसी मान्यता के आधार पर इस कैलेण्डर में पडÞने वाले महीने और दिनों का नामकरण विभिन्न देवी-देवताओं के नामों पर की गई । जैसे जनवरी, जो वर्षा पहला महीना है, रोमन देवता जेनस के नाम पर पडÞा । इसी प्रकार दूसरा महीना फरबरी का नाम फेबरा से पडÞा । मार्च महीने का नाम रोमनों के युद्ध-देवता मार्स के नाम पर डाला गया । रोमन देवी मैय्या के नाम पर मई महीने का नामकरण हुआ । अन्य रोमन देवी जूनों, जो महिलाओं की रक्षक मानी जाती है, के नाम पर जून महीने का नामकरण हुआ । इस प्रकार अधिकांश महीनों का नामकरण रोमन देवी-देवताओं के नाम पर किए गए हैं तो कुछ महीनों का नाम संख्याओं पर भी आधारित पाए जाते हैं । जैसे सेप्टेम्बर -जिसका अर्थ सात होता है) । अक्टूबर -अर्थात आठ), नोवेम्बर -अर्थात नौ) और दिसम्बर -अर्थात दस)। लेकिन जब कैलण्डर का निर्माण किया गया तो इन महीनों की संख्या को कैलण्डर में स्थापित करने की पृथक प्रक्रिया अपनाई गई, जिससे सेप्टेम्बर नौंवा महीना हुआ तो अक्टूबर १०वाँ, नोवेम्बर ग्यारहवाँ और दिसम्बर १२वाँ महीना हुआ ।
चूँकि भारत अनेक वर्षों तक ब्रिटेन द्वारा शासित रहा और वहाँ की सरकार्रर् इर्साई धर्म उन्मुख थी, अतः भारत में उन्होंने ग्रिगोरियन कैलेण्डर को प्रचलित किया । क्रिस्तानी समाज में पोप का अत्यधिक प्रभाव रहा है ।
नए वर्षके आगमन पर नए-नए कैलेण्डरोंं और डायरियों की खरीदफरोख्त की र्सवत्र आवश्यता महसूस की जाती है । क्योंकि कैलेण्डर से हमें विभिन्न महीनों की तारीख ही नहीं उन महीनों में आने वाले विभिन्न तीज-त्योहारों की भी जानकारी मिलती है । यही आवश्यकता हमें पुराने कैलेण्डरों को दीवारों से हटाने को विवश करती है । कैलेण्डर तो बदल जाते हैं पर उनमें अंकित महीनों के क्रम, तारीखों और दिनों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं मिलते । जैसे जनवरी का महीना ३१ दिन का होता है तो वर्षदिन के १२ महीने यथावत् रहते हैं । हाँ यदि परिवर्तन दिखता है तो इस वर्षके जनवरी महीने में पडÞनेवाली पहली तारीख का दिन का पिछले वर्षके उसी महीने के दिन में पडÞनेवाली तारीख के दिन से भिन्न होना ।
यह ऐसा परिवर्तन है, जो र्सवमान्य है । इसी लिए तो संसार भर के लोग पुराने साल के परिवर्तन पर खुशियाँ मनाते हुए कहते हैं -नया वर्षशुभ हो, मंगलमय हो या हैप्पी न्यू इयर ।





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