सूर्य षष्ठी व्रत का इतिहास: History of Surya Shashthi fast, Chhath parv
*षष्ठांशां प्रकृते: शुद्धां सुप्रतिष्ठाण्च सुव्रताम्।*
*सुपुत्रदां च शुभदां दयारूपां जगत्प्रसूम्।।*

*श्वेतचम्पक वर्णाभां रत्न भूषण भूषिताम्।*
*पवित्ररुपां परमां देवसेनां परां भजे।।*
ब्रह्म पुराण के अनुसार छठी मैया, सूर्यदेव की बहन हैं और सूर्योपासना से वह प्रसन्न होकर घर परिवार में सुख-शांति प्रदान करती हैं। षष्ठी देवी को ही छठ मैया कहा गया है। षष्ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है, जो निसंतानों को संतान प्रदान करती हैं। संतान को दीर्घायु प्रदान करती हैं।
ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड में बताया गया है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को ‘देवसेना’ कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्ठी है। पुराण के अनुसार, ये देवी सभी ‘बालकों की रक्षा’ करती हैं और उन्हें लंबी आयु देती हैं।
*षष्ठी देवी को ही स्थानीय भाषा में छठी मैय्या कहा गया है।*
षष्ठी देवी को ‘ब्रह्मा की मानसपुत्री’ भी कहा गया है, जो नि:संतानों को संतान देती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं।
पुराणों में इन देवी का एक नाम
कात्यायनी
भी है। इनकी पूजा नवरात्र में षष्ठी तिथि को होती है। यही कारण है कि आज भी ग्रामीण समाज में बच्चों के जन्म के छठे दिन षष्ठी पूजा या छठी पूजा का प्रचलन है।
*विधिपूर्वक छठ व्रत न करने पर मिलता है कुफल*
नियम पूर्वक व्रत करने पर वह व्रत सम्पूर्ण फल देता है अन्यथा उसका कुफल भी प्राप्त होता है। ऐसा पुराणों मे उल्लेख है कि राजा सगर ने सूर्य षष्ठी व्रत का परिपालन सही समय से नहीं किया परिणामस्वरूप उनके साठ हजार पुत्र मारे गये। यह व्रत सैकड़ों यज्ञों का फल प्रदान करता है।
पंचमी के दिन भर निराहार रहकर सायं या लोकप्रचलित एकाहार (फलाहार या हविष्य अन्नाहार प्रथानुसार आधार ग्रहण कर) व्रत करके दूसरे दिन षष्ठी को निराहार व्रत रहें। सायं काल सूर्यास्त के दो घंटा लगभग पूर्व पवित्र नदी, उसके अभाव में तालाब या झरना में, जिसमें प्रवेश करके स्नान किया जा सके, जाकर संकल्प करके भगवान सूर्य का पूजन कर ठीक सूर्यास्त के समय विशेष अर्घ्य प्रदान करें।
व्रत से मिलते हैं सभी सुख
स्कन्द पुराण में कहा गया है कि यह व्रत सर्वत्र इस रूप में विख्यात एवं प्रशंसनीय है कि यह सभी प्राणधारियों के मनोवांछित फल को प्रदान करता है तथा सभी सुखों को प्रदान करता है।
ऋषि के आदेश पर माता सीता ने कार्तिक की षष्ठी तिथि पर भगवान सूर्य देव की उपासना मुंगेर के कष्टहरणी गंगा तट पर छठ व्रत किया था।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, लंका के राजा रावण का वध करने के बाद श्रीराम जब पहली बार अयोध्या पहुंचे थे. उस समय भगवान श्रीराम और मां सीता ने रामराज्य की स्थापना के लिए छठ का उपवास रखा था और उस समय सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठ व्रत की शुरूआत द्रौपदी से मानी जाती है।
*क्यों मनाया जाता है छठ पूजा का महापर्व? जानिए इसका इतिहास और महत्व:*
छठ पूजा के दिन सूर्य देवता और छठी मईया की पूजा विधि विधान से की जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं इस पर्व को कब से मनाना शुरू किया गया. भगवान सूर्य की आराधना कब से की जाने लगी. इसका इतिहास बहुत ही पुराना बताया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, छठ पूजा को सतयुग से जोड़ कर देखा जाता है. ऐसी कई कथा मिलती है जिसमें राजा प्रियवंद, भगवान राम, पांडवों के अलावा दानवीर कर्ण की कहानी का जिक्र मिलता है, तो चलिए छठ के शुभ अवसर पर इन कहानियों के बारे में जानते हैं.
*राजा प्रियवंद ने की थी पूजा*
एक पौराणिक मान्यता के अनुसार, राजा प्रियवंद निः संतान थे और उस वजह से परेशानी में थे. इस समस्या को लेकर उन्होंने महर्षि कश्यप से बात की. उस समय महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराया. इस यज्ञ में बनाई गई खीर को राजा प्रियवंद की पत्नी को खिलाई गई. उसके बाद उनके यहां एक पुत्र का जन्म हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ, इस वियोग में राजा ने भी अपने प्रण त्याग दिए. उसी समय ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना ने राजा प्रियवंद से कहा की, मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं. इसलिए मेरा नाम षष्ठी भी है. अगर तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार करो. उसके बाद राजा ने षष्ठी के दिन विधि विधान से पूजा पाठ किया और उसके बाद उनके यहां पुत्र की प्राप्ति हुई।
*श्रीराम और सीता ने बिहार के मुंगेर नगर में ऋषि मुद्गल के आश्रम में गंगा घाट पर किया था सूर्य षष्ठी व्रत और दिया था सूर्य को अर्घ्य*
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, लंका के राजा रावण का वध करने के बाद श्रीराम जब पहली बार अयोध्या पहुंचे थे. उस समय भगवान श्रीराम अपने पूर्व दोष को समाप्त करने के लिए मुद्गल क्षेत्र जो आज मुंगेर के नाम से जाना जाता है। वहां ऋषि मुद्गल के आश्रम से प्रभु श्री राम और माता सीता ने रामराज्य की स्थापना के लिए छठ का उपवास रखा था और उस समय सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी.
*द्रौपदी ने किया था छठ व्रत*
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठ व्रत की शुरूआत द्रौपदी से मानी जाती है. द्रौपदी ने पांडवों के अच्छे स्वास्थ्य और उनके बेहतर जीवन के लिए छठी मईया का व्रत रखा था. उसके बाद पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल गया था.
*दानवीर कर्ण ने की थी पूजा*
महाभारत के अनुसार, दानवीर कर्ण सूर्य के पुत्र थे और वो हमेशा सूर्य की पूजा करते थे. इस कथा के अनुसार सबसे पहले कर्ण ने ही सूर्य की उपासना शुरू की थी. वह रोज स्नान के बाद नदी में जाकर अर्घ्य देते थे।
शास्त्रों के अन्य कथाओं के अनुसार
मां षष्ठी देवी, मां कात्यायनी का ही रूप हैं और मां कात्यायनी, दुर्गा का छठा अवतार हैं। शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा के प्रार्थना से श्री दुर्गा देवी ने कात्यायन ऋषि के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, इस कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ गया। और इनका बाल्यकाल अगस्त्य ऋषि के आश्रम में सूर्य के साथ भी हुआ था। षष्ठी तिथि के अलावा नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी देवी की पूरे श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है। जो ब्रह्मा के निवेदन से देवसेना होकर देवताओं को विजय दिलाई। पुनः महादेव के आदेश से इनका विवाह देव सेनापति स्वामी कार्तिकेय के साथ संपन्न हुआ।
कैसा है षष्ठी देवी कात्यायनी का स्वरूप –
दिव्य रुपा कात्यायनी देवी का शरीर सोने के समाना चमकीला है। चार भुजा धारी मां कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिये हुए हैं। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। इनका वाहन सिंह हैं। देवी कात्यायनी के नाम और जन्म से जुड़ी एक कथा प्रसिद्ध है।
क्यों पड़ा देवी का नाम कात्यायनी –
एक कथा के अनुसार एक वन में कत नाम के एक महर्षि थे उनका एक पुत्र था जिसका नाम कात्य रखा गया। इसके पश्चात कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने जन्म लिया। उनकी कोई संतान नहीं थी। मां भगवती को पुत्री के रूप में पाने की इच्छा रखते हुए उन्होंने पराम्बा की कठोर तपस्या की।
महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया। कुछ समय बीतने के बाद राक्षस महिषासुर का अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया। तब त्रिदेवों के तेज से एक कन्या ने जन्म लिया और उसका वध कर दिया। कात्य गोत्र में षष्ठी तिथि को जन्म लेने के कारण देवी का नाम षष्ठी देवी कात्यायनी पड़ गया। इनके साथ ही सप्तमी तिथि को ऋषि अगस्त्य के घर भगवान सूर्य का भी जन्म हुआ और दोनो का अध्ययन एक साथ ऋषि अगस्त्य के आश्रम में हुआ। इसी कारण षष्ठी देवी का सूर्य के साथ भाई बहन का संबंध हो गया बाद में माता षष्ठी आयु और भगवान सूर्य आरोग्यता के कारक हुवे। इसी रूप में इनकी पूजा सूर्य के साथ होती है।
*हे” माता षष्ठी, देवसेना, कोशिकी आप भगवान भास्कर, श्री हरि विष्णु, माता महालक्ष्मी, श्री गणेश, पार्वती महादेव के साथ सब मेरे व्रत पूजन और विशेष प्रार्थना से मेरे सभी अपनों पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखना।” आज भैया दूज से छठ व्रत के पारणा तक के व्रत पूजन से आज से मेरे सभी अपनों को उत्तम आयु आरोग्यता, सुख सौभाग्य, संतति संतान, नौकरी आजीविका, पद प्रतिष्ठा, ऋण रोग शोक से मुक्ति और सर्व मनोकामना पूर्णता प्रदान करें।छठी मईया, श्री सूर्य देव श्री लक्ष्मी नारायण, राधा कृष्ण, शिव पार्वती एवं श्री गणेश माता सरस्वती के साथ हम सबके सपरिवार में उत्तम संतान सुख सबमें अटूट प्रेम पवित्र समर्पण, अनुपम त्याग बनाए रखें। सबके ऊपर षष्ठी माता श्री सूर्य भगवान, श्री हरि विष्णु के साथ माता महालक्ष्मी के निरंतर शुभद आशीष के लिये मेरी विनम्र प्रार्थना….*
*शास्त्र संग्रह*
*आपका साथ, आपका विकाश, एवं आपके कुशलता के कामना में , सदैव तत्पर आपका…*
*हरि ॐ गुरुदेव..!*
*ज्योतिषाचार्य*
*आचार्य राधाकान्त शास्त्री*
कार्यालय
शुभम बिहार यज्ञ ज्योतिष आश्रम*
*राजिस्टार कालोनी, पश्चिम करगहिया रोड, वार्ड:- 2, नजदीक कालीबाग OP थाना, बेतिया पश्चिम चम्पारण, बिहार, 845449,*
*सहायक शिक्षक:- राजकीयकृत युगल प्रसाद +2 उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भैसही, चनपटिया,बेतिया बिहार*
*वार्तालाप:-*,
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एवं
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*वार्तालाप का समय:-*
*प्रातः 5 बजे से 8 बजे तक एवं दोपहर 3 बजे से रात्रि 10 बजे तक!*
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*(अहर्निशं सेवा महे)*
*!!भवेत् सर्वेषां शुभ मंगलम्!!*